गज़ल: खारे सागर में मिल गई होगी

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©️डॉ कविता”किरण”

खारे सागर में मिल गई होगी
कितनी प्यासी “किरण” नदी होगी

हमने सपने में भी न सोचा था
ज़िंदगी इतनी बेसुरी होगी

बीसवीं ने दिखा दिए तारे
कैसी इक्कीसवीं सदी होगी

रात-भर ख़्वाब सो नहीं पाए
नींद आंखों में चुभ रही होगी

दिले नादां ज़रा संभल जाओ
वरना दुनिया में किरकिरी होगी

आप जो मेरी बात रख लेंगे
मेरे दिल को बड़ी ख़ुशी होगी

कल “किरण” रोशनी के पन्नों पर
तेरी भी दास्ताँ लिखी होगी

©️डॉ कविता”किरण”

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