समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 8जुलाई। वर्तमान समय बहुत पार्टी उभर कर सामने आई है। यूपी में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद एक के बाद एक नेता बीजेपी में शामिल हो रहे है। अब राष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतारा है। मुर्मू आज राष्ट्रपति चुनाव के लिए लखनऊ आ रही हैं और वे भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों से समर्थन मांगेंगी। राज्य में भाजपा और सहयोगियों के साथ बहुजन समाज पार्टी भी मुर्मू का समर्थन कर रही है। जबकि सपा और रालोद विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी की नजरें जीत के लिए जरूरी संख्याबल के लिए गैर-बीजेपी वोटों पर टिकी हैं। खासतौर पर राजभैया के दो विधायक और सपा के सहयोगी दलों के विधायक बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए बीजेपी ने इन दलों को जोड़ने की रणनीति तैयार की है। बताया जा रहा है कि बीजेपी सपा के सहयोगी दलों में सेंधमारी के लिए तैयार है तो अब सबकी नजर सुभापसा अध्यक्ष ओपी राजभर पर टिकी हुआ है।
सुभासपा अध्यक्ष ओपी राजभर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और ओमप्रकाश राजभर के यशवंत सिन्हा की मौजूदगी में सपा की बैठक में शामिल नहीं होने से नाराज हैं, कई सवाल खड़े करते हैं। राजभर ने कहा कि उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था। जिससे साफ है कि वह अखिलेश यादव से नाराज हैं। इसलिए राजभर को लेकर बीजेपी की उम्मीद बढ़ गई है।
द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार घोषित करने के बाद भाजपा ने दलित-पिछड़ा और महिला उत्थान के नाम पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। इसलिए मौका देखकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सबसे पहले अपने समर्थन का ऐलान किया। जबकि सपा और रालोद विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। फिलहाल बीजेपी की नजर सूबे में सुभासप और राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के विधायकों पर है।
दरअसल ओपी राजभर और अखिलेश यादव के बीच जंग जारी है. वहीं अखिलेश यादव ने यशवंत सिन्हा की बैठक में राजभर को न बुलाकर संकेत दिए हैं। वह उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह से राजभर कई दिनों से अखिलेश यादव पर निशाना साध रहे हैं। अखिलेश यादव भी इस बात को लेकर असहज हैं। इसलिए आने वाले दिनों में राजभर और अखिलेश यादव के गठबंधन में दरार आ सकती है। वहीं राजभर द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देकर एनडीए में अपनी जगह बना सकते हैं। हालांकि राजभर पहले भी बीजेपी के सहयोगी रहे हैं।