आज की बात- न्याय का आधा तीतर आधा बटेर

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उदयपुर (राजस्थान) में कन्हैयालाल की निर्मम हत्या नें तथाकथित भाई चारे का चारा हमें दिखा दिया है। दूसरी ओर नूपुर शर्मा द्वारा देश के विभिन्न स्थानों पर उनके विरुद्ध दायर किये गए मामलों की सुनवाई दिल्ली की किसी कोर्ट में करने के आवेदन को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। न्यायपालिका के निर्णय पर सोशल मीडिया में तरह तरह की बातें आ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट एक मानवीय व्यवस्था है। ईश्वरीय व्यवस्था नही। माना कि उसका सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन न्यायाधीशों द्वारा जब अवांछित टिप्पणी की जाय जो उनके पदीय गरिमा के अनुकूल न हों तो नागरिकों को अपनी बात कहने का अधिकार है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी है। इस पर ठंडे दिमाग से विवेचन करना चाहिए। भारतीय अनपढ़ लोक जीवन मे भी कहा जाता है कि क्रोध में न्याय और प्रेम में धाय (कुछ देने का वादा) नही किया जाना चाहिए।
क्या न्यायाधीशों ने उन लोगों को बढ़ावा नही दिया जो नूपुर शर्मा का गला काटना चाहते हैं। क्या टिप्पणियों के मार्फत भारतीय न्याय व्यवस्था ने शरिया कानून की आवश्यकता को बढ़ावा नही दिया? सनातन धर्म के माननेवालों का क्या अपराध है कि उनके भगवान शिव के शिवलिंग पर अशोभनीय टिप्पणी होती रहे और वे बेबस होकर सुनते रहें। क्या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए व्यक्तिगत टिप्पणी करने के लिए कोई मर्यादा है? अथवा आम भारतीय न्याय देवता की टिप्पणियां सुनता रहे। क्योंकि न्याय देवता न जाने किस बात को नाक का सवाल बना ले। दर असल यह सब एक दिन में नही हुआ। इस माहौल को बनाने में 60 साल लगे। कुछ लोग ऐसी पारिस्थितिकी (इको) बना चुके हैं वहां निर्णयों को न्याय कहा जाने लगा है। भारत के कुछ सेकुलरिये, कुछ सनातन विरोधी वामी, कामी और चामी जिन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को कुचलने के लिए अनेक छल किये उन्होंने भारत के सामने वह प्रश्न खड़ा कर रख दिया जिसकी मानवतावादी सोच के भारतीय लोग समझ नही पाए। इस बात को एक दूसरे दृष्टिकोण से भी देखने की आवश्यकता है। भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां राष्ट्र को सम्पूर्ण रूप से सरकार पर छोड़ दिया। आम जनता बैठ गई तमाशा देखने। लोकतंत्र में जानतां के पास विरोध दर्ज कराने की शक्ति है लेकिन उस शक्ति का उपयोग गलत कामों के लिए होता है। रेल रोकने, गाड़ियों को जलाने, पत्थर फेंकने जैसे कामों में यह शक्ति प्रदर्शित होती है। इस तरह के काम वामपंथी, सेकुलर जमात, लिबरल जमात और भाड़े के लोग करते हैं। CAA, NRC, किसान आंदोलन, अग्निवीर योजना का विरोध वही लोग करते रहे जो भारत को कमजोर करना चाहते हैं। इस तरह के आंदोलनों के लिए अनेक विदेशी एजेंसियां हैं जो अपार धन उपलब्ध कराती हैं।
धर्मांतरण का प्रयास है कि भारत को कमजोर किया जाय। ऐसे ही यूरोपीय देशों से इसाई मिशनरीज को मिलने वाला धन भारत को कमजोर करने के लिए काफी है। जिन लोगों का अमानवीय दृष्टिकोण है, वे अपनी जनसंख्या बढ़ाकर भारत को कमजोर कर रहे हैं। बेवकूफ बनाने के लिए भाई चारा और गंगा जमनी तहजीब की बात की जाती है, यह जुमले खतरनाक हैं, सनातन संस्कृति को समाप्त करने के प्रबल उपकरण हैं। जब कन्हैया लाल को जिव्ह किया जा रहा था तब वह भाई चारा और गंगा जमनी संस्कृति कहाँ चली गई थी। नूपुर शर्मा को जिस तरह अपमानित किया जा रहा है, क्या उस तस्लीम रहमानी पर भी कुछ कार्यवाही होगी जिसने उकसाने का काम किया था। क्या मीडिया चैनलों पर भी कोई कार्यवाही होगी जो अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिए समाज में वैमनस्य स्थापित करने वाले विषयों को डिबेट के लिए लाते हैं। यह भी देखा जाना चाहिए जब हिन्दू धर्म के देवी देवताओं का अपमान किया जाता है, जब शिवलिंग पर जूते मारे जाते है तब भी ऐसी ही हरकते होती हैं। क्या किसी भी शास्त्र में लिखी बात को कहना अपराध है अगर है तो उस मजहब के उन लोगों पर भी कार्यवाही हो जिन्होंने पूर्व में यही बातें कही हैं और वे सोशल मीडिया में हैं। क्या शरिया कानून का भय हिंदुओं को नही दिखाया जा रहा है? भारत की न्यायव्यवस्था शरिया कानून से चलती है या भारतीय संविधान से?
यह स्थिति भारत की संस्कृति और समाज के लिए चेतावनी की घंटी है। इसके लिए तीन बिंदुओं पर काम करना आवश्यक है।

1. संविधान में से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटा कर उसकी मूल स्थिति में ही रखा जाय

2.समान नागरिक संहिता लागू हो

3.शिक्षा का राष्ट्रीयकरण हो

4. मदरसों में दी जा रही शिक्षा का आधुनिकीकरण हो

5.राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत, सांविधान और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान के लिए नियमों का पालन अनिवार्य हो

6. मीडिया चैनलों को उन सभी भड़काऊ कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए उत्तरदायी बनाया जाय, जिनके प्रसारणों के बाद समाज में वैमनस्य बढ़ा हो अथवा समाज में अनैतिकता बढ़ी हो या बढ़ने की संभावना हो। आधा तीतर आधा बटेर सिस्टम को समाप्त किया जाना चाहिए।

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