राष्ट्रप्रथम- अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा

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पार्थसारथि थपलियाल
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पुराणों में वर्णित केदारखंड (गढ़वाल) और मानसखंड (कुमाऊं) क्षेत्र को समग्र रूप में उत्तराखंड कहा जाता है। 1947 में अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति के बाद ब्रिटिश गढ़वाल भारत संघ में मिल गया। 1949 में टिहरी नरेश मानवेन्द्र सिंह ने टिहरी का विलय भारत में किया । विशिष्ठ भौगोलिक स्थिति के कारण उत्तर प्रदेश से देवभूमि उत्तराखंड का विभाजन नवंबर 2000 में किया गया।
उत्तराखंड के चार पवित्र धाम- यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम इसी भूमि में हैं। पंच बदरी, पंच केदार, पंच प्रयाग इसी भूमि में हैं। अलकनंदा और भागीरथी का पवित्र संगम देवप्रयाग, रैभ्य ऋषि की तपस्थली ऋषिकेश, हरि का हरिद्वार इसी भूमि में हैं। देवभूमि उत्तराखंड में पुण्य र्जात के लिए सनातन धर्मी उत्तराखंड की तीर्थ यात्रा सदियों से करते आये हैं। औरंगजेब के काल मे कुछ धर्मांतरण उत्तराखंड में भी हुआ लेकिन वह नगण्य के बराबर था।
सन 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे जिलों देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर में मुस्लिम जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई है। यह जनसंख्या स्थानीय संस्कृति को दुष्प्रभावित करती है। इनका भाईचारा केवल मुस्लिमों के साथ होता है। उत्तराखंड में राज्यस्थापना के समय 3.4% मुसलमान थे जो बढ़कर लगभग 14% हो गए। सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर और बरेली के मुसलमान बड़ी संख्या में उत्तराखंड में बस गए। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल जनसंख्या एक करोड़ एक लाख थी। इस जनसंख्या का 4.78 प्रतिशत मुसलमान हरिद्वार में रहते थे। यह आंकड़ा बदल गया है। पिछले 10 वर्षों में हरिद्वार में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 40% बढ़ी है। यही हाल उधमसिंह नगर जिले का भी है। 2001 में उधमसिंह नगर में मुस्लिम जनसंख्या 2 लाख 55 हज़ार थी जो बढ़कर 4 लाख 31 हज़ार हो गई।
उत्तराखंड के लोगों में उच्च शिक्षा होने तथा स्थानीय उपयुक्त रोजगार की कमी के कारण अत्यधिक पलायन हुआ। उत्तराखंड की लगभग 50 लाख जनसंख्या पलायन कर चुकी है। 3 हज़ार से अधिक गांव जनविहीन हो गए। सभी छोटे काम धंधों पर हरिद्वार से बद्रीनाथ तक इसी समुदाय का एकाधिकार हो गया। फलों के व्यापारी, सब्जियों के व्यापारी, कपड़े और बर्तन बेचनेवाले (फेरीवाले), नाई, मोची, बिजली के कारीगर, राजमिस्त्री, लकड़ी का काम करनेवाले, फर्नीचर, आदि का काम करनेवाले अधिकतर नजीबाबाद का मुस्लिम समुदाय है। इस समुदाय ने धीरे धीरे अपना विस्तार करना आरम्भ कर दिया है। इस्लाम धर्मियों की यह एक चाल होती है, वे शुरू में बेटा बन जाते हैं धीरे धीरे अपने कारनामों से दूसरे लोगों को इतना परेशान कर देते हैं कि स्थायी निवासियों को छोड़कर जाना पड़ता है। हाल के वर्षों में उत्तराखंड में लव जिहाद और अपहरण के मामलों में बहुत बड़ी बढ़ोत्तरी हुई है। उत्तराखंड में जगह जगह पर मजारें बनाई गई हैं। यह धर्म विशेष के विस्तार का पहला चरण है। उत्तराखंड सरकार किसी गलत फहमी में है या कोई अन्य कारण। अभी तक आशाओं के अनुरूप नही पाई गई, केवल धंधेबाजी में अग्रणीय है। जब किसी राज्य में अधिकारी घूस लेते हों तो उस राज्य पर यह सिद्धांत लगता है- यथा राजा तथा प्रजा। (नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार पर अभी अध्ययन चल रहा है, उस पर बात कभी दूसरे समय),
हमारे जनप्रतिनिधि यदि जनाक्षाओं पर खरे नही उतरते हों तो उनके बारे में मैं अपने शब्द व्यर्थ नही करना चाहता… वर्तमान मुख्यमंत्री धामी जी युवा हैं, ऊर्जावान हैं, भारतीय संस्कृति में पले बढ़े हैं, अभी तक आम आदमी की तरह लगे हैं, उनसे उम्मीद है कि वे देवभूमि उत्तराखंड का वैदिक महत्व समझें। सनातन संस्कृति का घर समझें। उत्तराखंड का सांस्कृतिक वातावरण संरक्षित करने का कष्ट करें। कई बार मन मे यह प्रश्न भी उठता है कि उत्तराखंड को योगी देने वाली देवभूमि क्या उत्तराखंड को एक और योगी दे पाएगी।
महाकवि कालिदास रचित महाकाव्य कुमार संभव की ये पंक्तियां हमे हिमालय के लिए सदा प्रेरित करती रहेंगी-
अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:। पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः।।

लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)

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