मिर्च-मसाला- रामपुर के आजम की निष्ठाएं किधर हैं?

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त्रिदीब रमण 
त्रिदीब रमण 

त्रिदीब रमण 

जब से पागल हवाओं ने हर छोटे-बड़े दीयों का काम तमाम किया है

इस आदम के जंगल ने अपना कल इन जुगनुओं के नाम किया है’

सियासत की सीरत ही कुछ ऐसी है कि यहां असल वफादारी भी नैतिक दीवालियापन के अंतःपुर में बेशर्मी से पसरी नज़र आती है। कहां तो चर्चाओं को पंख लगे थे कि भाजपा रामपुर उप चुनाव में मुख्तार अब्बास नकवी को मैदान में उतारने जा रही है। पर अचानक से एक अप्रत्याशित से नाम की घोषणा हो गई, वह नाम था घनश्याम लोधी का, जिन्हें रामपुर की जनता आजम खान का ही आदमी मानती आई है। लोधी आजम की कृपा से ही दो बार के सपा के एमएलसी रह चुके हैं, उनके बारे में यह भी एक प्रचलित धारणा रही है कि वे आजम की हिंदू सेना के सिरमौर रहे हैं। इन्हें कालांतर में आजम के ‘हनुमान’ का भी दर्जा प्राप्त था। सूत्र बताते हैं कि इससे पहले जब एक बंद कमरे में आजम की मुलाकात अखिलेश यादव से हुई तब आजम के दिलो-दिमाग में कुछ और चल रहा था। यह मुलाकात कोई दो घंटे तक चली और जब अखिलेश इस मीटिंग के बाद कमरे से बाहर निकल कर आए तो उन्होंने अपने करीबियों को संकेत दिया कि आजम अपनी पत्नी तंजीम फातिमा को मैदान में उतारेंगे। पर जैसे ही इस खबर ने भगवा फिजाओं में आकार लेना शुरू किया तो आजम के संपर्क में कुछ लोग आए, इसके बाद उनके सुर बदल गए। अखिलेश से बात कर आजम ने अपने एक करीबी आसिम रजा का नाम सुझा दिया, यह कहते हुए कि उनकी शरीके हयात रामपुर से चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं। चुनांचे रामपुर में चाहे लोधी जीते या रज़ा जीत का सुख तो आजम को ही मिलेगा। और इन बदली परिस्थितियों में ईडी चाहे लाख आजम के ऊपर नए केस बना ले, आजम की भगवा आस्थाओं का ऐलान तो पहले हो चुका है।

आजमगढ़ में सपा की सीट बचाने की मशक्कत

अखिलेश यादव ने जिन लम्हों में अपना आजमगढ़ लोकसभा सीट छोड़ने का फैसला लिया होगा उन्हें शायद ही इस बात का इल्म कहीं शिद्दत से हुआ होगा कि भाजपा आजमगढ़ की लड़ाई को उनके लिए इस कदर मुश्किल बना देगी। आजमगढ़ जिले की दस की दस सीटें सपा के कब्जे में हैं जहां उसके अपने एमएलए हैं बावजूद इसके इस सीट को बचाने के लिए सपा को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। सपा का पहला दांव ही डगमगाने वाला है, स्थानीय कार्यकर्ता चाहते थे कि यहां से पार्टी रमाकांत यादव को मैदान में उतारे जो कि एक स्थानीय नेता हैं। पर अखिलेश ने अपने परिवार से धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतार दिया है। वहीं बीएसपी ने सपा का खेल बिगाड़ने के लिए एक बिल्डर शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतार दिया है जो मुसलमानों के बीच एक लोकप्रिय चेहरा हैं, अगर वे ठीक-ठाक मुस्लिम वोट काटने में सफल हो जाते हैं तो सपा की साइकिल यहां डगमगा सकती है। पर प्रारंभिक रुझानों से पता चलता है कि इस बार मुसलमान भी हाथी के साथ जाने से हिचक रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि बहिनजी पर्दे के पीछे से भाजपा के लिए ही खेलती हैं। नूपुर शर्मा के बयान पर इस शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद जिस तरह मुस्लिम समुदाय ने उग्र प्रतिक्रिया दी है उससे नहीं लगता कि वे जाने-अनजाने कोई भी ऐसा कदम उठाएंगे जिससे भाजपा को फायदा मिले। पर लगता है दिनेष लाल निरहुआ अपने सजातीय यादव वोटरों को तोड़ने में जरूर कुछ हद तक कामयाब हो सकते हैं। अखिलेश की मासूम नादानियों ने आजमगढ़ के उप चुनाव को यकीनन दिलचस्प बना दिया है।

क्या देश को मिल सकता है कोई मुस्लिम राष्ट्रपति?

नूपुर शर्मा के बारूदी बयानों ने जिस कदर देश और देश से बाहर रह रहे मुस्लिम समुदाय को भड़काने का काम किया है और खास कर अरब देशों से जिस तरह से बेहद तीखी प्रतिक्रिया आई है उसे देखते हुए भाजपा राष्ट्रपति चुनाव में अपना तुरूप का इक्का चल सकती है। संघ और भाजपा शीर्ष से जुड़े सूत्रों से पता चलता है कि भाजपा इसके काट के तौर पर अपना मास्टर स्ट्रोक खेल सकती है। जिसके तहत किसी मुस्लिम को देश का अगला राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति बनाया जा सकता है। इस रेस में सबसे पहला नाम मुख्तार अब्बास नकवी का चल रहा है, जो राजनेता होने के अलावा कवि, लेखक व अध्येता हैं। हालिया दिनों में इनका हिंदी में तीन नॉवेल सामने आ चुके हैं, वे मृदुभाषी व मिलनसार हैं, संसदीय मामलों के मंत्री रह चुके हैं इस नाते विपक्षी दलों से भी इनके गहरे ताल्लुकात हैं। इन्हें संघ और मोदी के करीबी भी समझा जाता है। दूसरा नाम केरल के गवर्नर आरिफ मुहम्मद खान का है। जो अपने बेबाक विचारों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। इस बार भी जब नूपुर शर्मा के बयान पर कतर ने भारत सरकार से माफी की मांग की तो आरिफ ने आगे बढ़ कर इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा-’दो चार लोगों की बेवकूफियों की वजह से 5 हजार पुरानी संस्कृति को कटघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता।’ पेशे से वकील आरिफ कानून, इस्लाम और संविधान के भी मर्मज्ञ जानकार हैं। उन्हें उपनिषद, पुराण और भागवत गीता का भी उतना ही ज्ञान है। शाह बानो मामले में उन्होंने राजीव गांधी मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया था तब वाजपेयी भी उनके मुरीद हो गए थे। एक दलित नेता और कर्नाटक के गवर्नर थावर चंद गहलोत ने भी इस रेस में अभी ताजा-ताजा एंट्री ली है। हालिया दिनों में जब गहलोत दिल्ली आए तो पीएम मोदी से उनकी एक अहम मुलाकात को इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा रहा है।

केंद्र सरकार से 15 हजार करोड़ क्यों मांग रहे हैं नवीन

नवीन पटनायक ने सियासत के बारीक गुर अपने पिता बीजू नटनायक से सीखे हैं। पिछले दिनों नवीन पटनायक को जब केंद्रनीत भाजपा सरकार की ओर से यह संदेशा मिला कि उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार का साथ देना है, तो हां कहने के साथ-साथ नवीन ने ठंडे बस्ते से अपनी पुरानी मांग का वह पुलिंदा भी झाड़-पोछ कर बाहर निकाल लिया है जिसमें ओडिशा सरकार को ‘फूड सब्सिडी’ के मद में केंद्र सरकार से 10,333 करोड़ रुपए मिलने थे। यह भुगतान लंबे समय से लंबित है सो ओडिशा सरकार ने इस पर 5454.67 करोड़ का अतिरिक्त ब्याज भी जोड़ दिया है। ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार का कहना है कि ’चूंकि केंद्र सरकार ने भुगतान में इतनी देर लगाई है, इस वजह से उन्हें इतने करोड़ का अतिरिक्त ब्याज का भी बोझ उठाना पड़ रहा है।’ भाजपा के रणनीतिकार चाहते थे कि नवीन एक बार दिल्ली आकर पीएम मोदी से मिल लें, पर नवीन 28 जून को यूएई और इटली की विदेश यात्रा पर निकल रहे हैं। वेटिकन सिटी में इस बार उनका पोप से मिलने का भी कार्यक्रम है। नवीन ओडिशा के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए इन देशों की यात्रा कर रहे हैं, उन्हें दुबई में बसे एनआईआर उड़िया लोगों से मिलना है, इसके बाद वे इटली के लिए निकल जाएंगे। वैसे भी नवीन पटनायक की विदेश यात्राओं में कम ही दिलचस्पी रही है। 22 वर्षों के अपने शासनकाल में वे खुद विदेश जाने के बजाए अपने मंत्रियों और अफसरों को ही ऐसी यात्राओं पर भेज दिया करते थे। आखिरी बार वे 2012 में ‘डीएफआईडी’ के निमंत्रण पर लंदन गए थे।

शंकराचार्य की शरण में प्रहलाद पटेल

केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का पूरा परिवार ही सन् 1992 से यानी लगभग 30 वर्षों से लगातार जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का विरोध करता आया था। पर पिछले दिनों प्रहलाद पटेल ने अपने उस कदम से सबको अचंभित कर दिया जब वे अचानक अपने पिता, और अपने विधायक भाई (जो नरसिंहपुर के विधायक हैं) के साथ त्रिपुर संदुरी के दर्शन को पहुंच गए, जहां उन्होंने शंकराचार्य के भी दर्शन किए और उनका आशीर्वाद लिया। पटेल परिवार तकरीबन दो घंटे तक वहां रहा। सनद रहे कि प्रहलाद पटेल ने शंकराचार्य से ही गुरु दीक्षा ली थी, बावजूद इसके लगातार उन्होंने तीन दशक तक शंकराचार्य के विरोध की अलख जगाई। कहते हैं इन दिनों शंकराचार्य अस्वस्थ हैं, इस नाते पीएम मोदी ने फोन कर उनसे बातचीत की और उनका हालचाल पूछा, इस बात की खबर जब प्रहलाद पटेल परिवार को लगी तो वह घुटनों पर आ गया।

सिंहदेव भाजपा में क्यों नहीं गए

पिछले काफी समय से बीजू जनता दल के नेता और पूर्व सांसद कलिकेश नारायण सिंहदेव प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा से मिलने का समय मांग रहे थे, पर कुछ कारणों से उन्हें मिलने का समय ही नहीं मिल पा रहा था। इसके बाद उन्होंने ओडिशा के कुछ ब्यूरोक्रेट्स से संपर्क साध सरकार के नंबर दो अमित शाह से मिलने का प्रयास किया पर उन्हें यहां भी सफलता हाथ नहीं लगी। तब उनके संकटमोचक बनकर अवतरित हुए धर्मेंद्र प्रधान जिन्होंने सिंहदेव की मुलाकात अमित शाह से करवा दी। कहते हैं जब इस मुलाकात की खबर नवीन पटनायक को लगी तो वे बेतरह उखड़ गए, उन्होंने फोन पर ही सिंहदेव को हड़काते हुए कहा-’आपकी मर्जी आप जिस पार्टी में जाना चाहें आप जा सकते हैं, पर बोलांगिर में राज परिवार ने जिस तरह गरीबों की जमीनें हथिया रखी है, हमें उन गरीबों को न्याय दिलवाना ही पड़ेगा, मुमकिन हुआ तो हम भी योगी की तरह बुलडोजर का सहारा लेंगे।’ यह सुनने भर की देर थी कि सिंहदेव के कदम ठिठक गए।

और अंत में

कश्मीर चुनाव को लेकर पिछले दिनों भाजपा के बड़े नेताओं की एक हाईपॉवर मीटिंग आहूत थी जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद थे, इस मीटिंग में कश्मीर चुनाव की रणनीति पर विस्तार से चर्चा हुई, एक सुझाव आया कि क्यों नहीं नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्लाह को भाजपा के समर्थन में आने को कहा जाए। फारूक से बात की गई, पर उनका दो टूक कहना था-’मैं 85 साल का हो गया हूं और इस वक्त मैं अगर भाजपा के साथ आ गया तो कोई मेरी मिट्टी को भी हाथ नहीं लगाएगा, दफन तो मुझे यहां कश्मीर में ही होना है।’ इसके बाद ही फारूक अब्दुल्लाह पर कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन में कथित आर्थिक अनियमितताओं को लेकर ईडी का शिकंजा कस गया है। भाजपा अब वहां कुछ छोटे दलों और मजबूत निर्दलियों से बात कर रही है कि वे जीतने के बाद भाजपा को समर्थन दे दें। (एनटीआई-gossipguru.in)

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