वीर सावरकर..कहानी ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की…जिनके प्रशंसक और निंदक दोनों समान रूप से है

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स्निग्धा श्रीवास्तव
वीर सावरकर यानि विनायक दामोदर सावरकर हिंदुत्वके प्रेमी तो थे ही साथ ही वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता भी थे। वे ऐसे व्यक्ति थे जिनके प्रशंसक और निंदक समान रूप से हैं। उनके समर्थक उन्हें हिंदू राष्ट्रवाद का शलाका पुरुष मानते हैं, तो विरोधी उन्हें वैचारिक आधार पर सबसे बड़ा विभाजनकर्ता।
सावरकर के ‘हिंदुत्व’ की अवधारणा ने ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ की विचार धारा को प्रबल किया। उन्होंने हिंदू जीवन-पद्धति को अन्य पद्धतियों के मुकाबले श्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत कर हिंदुत्व को राष्ट्रवाद की भावना से जोड़ा. सावरकर ने भारत में हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा को पुख्ता कर दक्षिणपंथी राजनीति को एक नई दिशा दी

वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1830 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर ग्राम में हुआ था। उनकी माता का राधाबाई सावरकर और पिता दामोदर पंत सावरकर थे। 1901 में इनका विवाह यमुनाबाई से हुआ था। सावरकर के तीन संताने थी जिनके नाम थे विश्वास सावरकर, प्रभाकर सावरकर और प्रभात चिपलूनकर। 24 फरवरी 1966 को उनकी मृत्यु हुई।

वीर सावरकर अपनी विचारधारा को लेकर हमेशा स्पष्ट रहें। बचपन से ही क्रांतिकारी विचारधारा के सावरकर के हृदय में राष्ट्र भावना कूट-कूट कर भरी थी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा नासिक के शिवाजी स्कूल से हुई। वर्ष में 1902 में स्नातक के लिए पुणे के फर्गुसन कॉलेज में दाखिला लिया। पुणे में उन्होंने अभिनवभारत सोसायटी का गठन किया और बाद में स्वदेशी आंदोलन का भी हिस्सा बने। वर्ष 1906 में बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गए और वहां पर उन्होनें आजाद भारत सोसाइटी का गठन कर, अपनी राजनीतिक गतिविधि को बढ़ायी. वर्ष 1909 में सावरकर के सहयोगी मदनलाल धींगरा ने वायसराय लार्ड कर्जन की असफल हत्या के प्रयास के बाद सर विएली की गोली मारकर हत्या कर दी। इसी दौरान नासिक के तत्कालीन ब्रिटिश कलेक्टर ए.एम.टी जैक्सन की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्या के आरोप में आरोपी सावरकर को 13 मार्च 1910 को लंदन में कैद कर लिया गया। वहां की अदालत में उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए 50 साल की सजा सुनाई जिसके बाद कालापानी की सजा देकर अंडमान के सेल्यूलर जेल भेज दिया गया।
वीर सावरकर 1911 से 1921 अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहने के काफी यातनाएं झेली। इस दौरान दीवारों पर कील और कोयले से कुछ शब्द लिखें और उन्हें याद किया। जेल से छूटने के बाद अपनी इन्हीं शब्दों को कविता के रूप में 10000 पंक्तियों में पिरोया।
आजादी के बाद 8 अक्टूबर 1951 में उनको पुणे विश्वविद्यालय द्वारा डी.लीट की उपाधि दी गयी। 1970 इनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।

वीर सावरकर का व्यक्तित्व हमेशा ही विवादास्पद रहा-

1. पहली,कालापानी की सजा से मुक्ति पाने के लिए 1911 में उन्होंने खुद ब्रिटिश सरकार के सामने याचिका लगायी थी। इसके बाद वह अंग्रेजी सरकार के माफीनामा पर सशर्त राजी हो गए थे।
2. दूसरी बार 1949 में गांधी हत्याकांड में 8 लोगों समेत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

वीर सावरकर के जीवन की खास बातें
1. 1901 में विनायक दामोदार सावरकर ने यमुनाबाई से शादी की, जो रामचंद्र त्रयंबर चिपलूनकर की बेटी थीं।
2. 1923 में सावरकर ने हिंदुत्व शब्द की स्थापना की। कहा कि भारत केवल उन्हीं का है, जिनके पास यह पवित्र भूमि और उनकी पितृभूमि है।
3. वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक हिंदुत्व में दो राष्ट्र सिद्धांत की स्थापना की। जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों को दो अलग-अलग राष्ट्र कहा गया। 1937 में हिंदू महासभा ने इसे एक प्रस्ताव के रूप में पारित किया।
4. वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव दिया था। जिसे राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने माना था।
5. सावरकर पहले राजनीतिक बंदी थे। जिन्हें फ्रांस पर बंदी बनाने के कारण हेग के इंटरनेशनल कोर्ट में मामला पहुंचा।
6. वे पहले क्रांतिकारी थे। जिन्होंने देश के विकास का चिंतन किया। बंदी जीवन समाप्त होते ही कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
7. वीर सावरकर ने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले के कविताएं लिखी थी। फिर उन्हें याद किया। जेल से छुटने के बाद पुनः कविताओंको लिखा।
8. सावरकर द्वारा लिखी गई पुस्तक द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 एक सनसनीखेज किताब रही।
9. वे विश्व के पहले ऐसे लेखक थे। जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को 2 देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया था।
10. उनकी स्नातक उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज सरकार ने वापस ले लिया था।
11. वीर सावरकर पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे। जिन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी।

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