समग्र समाचार सेवा
श्रीनगर, 14मई। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने शनिवार को कहा कि शांति तभी कायम होगी, जब लोगों की गरिमा और अधिकारों को मान्यता दी जाएगी और उनकी रक्षा की जाएगी। सीजेआई ने श्रीनगर में एक नए उच्च न्यायालय भवन परिसर की आधारशिला रखने के बाद यह टिप्पणी की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परंपरा के निर्माण के लिए केवल कानून ही पर्याप्त नहीं हैं.इसके लिए उच्च आदर्शों के लोगों को कानून के ढांचे में जीवन का संचार करने की आवश्यकता होती है. सीजेआई रमना ने कहा कि न्याय से इनकार अंतत: अराजकता की ओर ले जाएगा. इससे जल्द ही न्यायपालिका की संस्था अस्थिर हो जाएगी क्योंकि लोग इससे इतर न्याय तंत्र की तलाश करेंगे. शांति तभी कायम होगी, जब लोगों की गरिमा और अधिकारों को मान्यता दी जाएगी और उनकी रक्षा की जाएगी. भाषण में, उन्होंने कवि अली जवाद जैदी और प्रसिद्ध उर्दू कवि रिफत सरफरोश को अपनी भावनाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए उद्धृत किया।
जस्टिस रमना ने इस बात पर जोर दिया कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के कामकाज के लिए यह जरूरी है कि लोग महसूस करें कि उनके अधिकारों और गरिमा की रक्षा की जाती है और उन्हें मान्यता दी जाती है। उन्होंने कहा कि विवादों का त्वरित न्यायनिर्णय एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है. सीजेआई ने कहा कि किसी देश में परंपरा का निर्माण करने के लिए केवल कानून ही काफी नहीं है. इसके लिए उच्च आदर्शों से प्रेरित अमिट चरित्र के लोगों को कानूनों के ढांचे में जीवन और भावना का संचार करने की आवश्यकता होती है. उन्होंने आगे कहा कि प्रिय न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों, आप हमारी संवैधानिक योजना में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. आम आदमी हमेशा न्यायपालिका को अधिकारों और स्वतंत्रता के अंतिम संरक्षक के रूप में मानता है।
न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि दुख की बात है कि आजादी के बाद आधुनिक भारत की बढ़ती जरूरतों की मांगों को पूरा करने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचे में बदलाव नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि हम अपनी अदालतों को समावेशी और सुलभ बनाने में बहुत पीछे हैं. अगर हम इस पर तत्काल ध्यान नहीं देते हैं, तो न्याय तक पहुंच का संवैधानिक आदर्श विफल हो जाएगा. देश भर में न्यायिक बुनियादी ढांचे की स्थिति संतोषजनक नहीं है. अदालतें किराए की इमारत से बड़ी दयनीय परिस्थितियों में काम कर रहे हैं।