असमः मुसलमानों से छिन सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा!

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समग्र समाचार सेवा

इम्फाल, 31 मार्च। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि कोई भी समुदाया अल्पसंख्यक है या नहीं, इसका आकलन राज्य या जिले की कुल आबादी के आधार पर होनी चाहिए। असम विधानसभा में बजट सत्र के दौरान सरमा ने कहा, “कोई समुदाय अल्पसंख्यक है या नहीं, यह उसके धर्म, संस्कृति या शैक्षिक अधिकारों के लिए खतरों पर निर्भर करता है। अगर ऐसा कोई खतरा नहीं है, तो उस समुदाय को अब अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला

भाजपा विधायक मृणाल सैकिया द्वारा असम में समुदायों को अल्पसंख्यक माने जाने वाले सवाल का जवाब देते हुए सरमा ने कहा कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 में दी गई परिभाषाओं के अनुसार, “कोई भी सीधे तौर पर यह नहीं कह सकता है कि मुसलमान, बौद्ध या ईसाई अल्पसंख्यक हैं, क्योंकि वे एक विशेष राज्य में अल्पसंख्यक हैं।”

परिभाषा वास्तविकता पर आधारित होनी चाहिए

सरमा ने कहा, “कोई समुदाय अल्पसंख्यक है या नहीं इसकी परिभाषा उस विशेष राज्य या जिले में मौजूदा वास्तविकता पर आधारित होनी चाहिए। यह चिंता का विषय है और वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट भी इस पर सुनवाई कर रहा है।”

केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में कहा है कि छह समुदायों (ईसाई, सिख, मुस्लिम, बौद्ध, पारसी और जैन) को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया है। साथ ही वैस राज्य और केंद्र शासित प्रदेश, जहां हिंदुओं की संख्या कम है, वहा उन्हें अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।

असम के कई जिलों में हिंदू भी अल्पसंख्यक: सरमा

सरमा ने कहा, “असम के संदर्भ में बराक घाटी में बंगाली बोलने वालों को भाषाई अल्पसंख्यक नहीं कहा जा सकता है। वहीं, असमिया, रेंगमा नागा और मणिपुरी बोलने वाले वहां भाषाई अल्पसंख्यक हैं। ब्रह्मपुत्र घाटी के कुछ हिस्सों में बंगाली भाषी भाषाई अल्पसंख्यक होंगे।” उन्होंने कहा, “लंबे समय से भारत में यह भावना थी कि देश भर में सभी मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। लेकिन अब इस परिभाषा को चुनौती दी गई है।

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