शिक्षा के क्षेत्र में भारत की गौरवशाली परंपरा को बहाल करने की जरूरतः उपराष्ट्रपति

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा

हरिद्वार19 मार्च। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आज कहा कि शिक्षा, प्रशासन और न्यायपालिका में मातृभाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। उन्होंने मैकालेवादी शिक्षा प्रणाली से आजादी को आवश्यक बताया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सदियों की गुलामी ने भारतीय परंपरा में शिक्षा और शिक्षण के गंभीर विमर्श को भुला दिया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के दिव्य प्रकाश में ही व्यक्ति खुद को खोज पाता है, समाज के प्रति स्वस्थ नजरिया विकसित कर पाता है और समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बनता है। उपराष्ट्रपति आज गायत्री तीर्थ के स्वर्ण जयंती के अवसर पर हरिद्वार में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड रिकॉन्सिलिएशन के उद्घाटन के अवसर पर कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

समाज का एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित रह गया

उन्होंने कहा कि सदियों की गुलामी से, महिलाओं सहित समाज का एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित रह गया। शिक्षा जो हर समुदाय का हक था वो एक वर्ग में सिमट कर रह गई। उन्होंने कहा कि अच्छी और सच्ची शिक्षा से समाज के सभी वर्गों को जोड़ना आवश्यक है तभी शिक्षा का लोकतंत्रीकरण संभव हो सकेगा।

बुजुर्गों से संस्कारों की शिक्षा प्राप्त करें

उपराष्ट्रपति ने कहा कि आजादी के अमृत काल में यह अपेक्षित है कि हम प्राचीन शिक्षा पद्धति को, समुदायों मैं निहित ज्ञान परंपरा को खोजें, उन पर शोध करें और उसे आधुनिक संदर्भों में प्रासंगिक बनाएं। उन्होंने कहा कि बच्चे अपने पारिवारिक परिवेश, अपने परिवार के बुजुर्गों से संस्कारों की शिक्षा प्राप्त करें। अपने चतुर्दिक प्राकृतिक परिवेश से सीखें। शनायडू ने कहा कि एक बेहतर भविष्य के लिए प्रकृति और संस्कृति से शिक्षा लेना जरूरी है।

हम अपने मूल संस्कारों से मार्गदर्शन लें

उन्होंने अहवाहन किया कि  हम अपने मूल संस्कारों से मार्गदर्शन लें। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य शिक्षा का भारतीयकरण करना है। नायडू ने कहा कि हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। शिक्षा के भारतीयकरण पर  उन्हीं लोगों को आपत्ति है जो गुलामी मानसिकता को बनाए रखना चाहते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने मां, मातृभूमि और मातृभाषा का सदैव सम्मान करने का आग्रह किया।

भगवान बुद्ध और सम्राट अशोक को स्मरण किया

शांति को विकास के लिए आवश्यक शर्त बताते हुए उपराष्ट्रपति ने इस संदर्भ में भगवान बुद्ध और सम्राट अशोक को स्मरण किया। उन्होंने कहा कि भारत  सम्राट अशोक का देश है जिसने मानवता के लिए धम्म घोष को युद्ध घोष से अधिक श्रेयस्कर माना। भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिपादित पंचशील हमारी वैश्विक नीति का आधार है। उन्होंने कहा कि भारत के एशिया के प्रायः सभी देशों के साथ ऐतिहासिक सांस्कृतिक संपर्क रहा है। दक्षिण एशिया के देश इतिहास और सभ्यतागत संस्कार साझा करते हैं। जरूरी है कि हम इस क्षेत्र की भाषाई, सांस्कृतिक विविधता के बावजूद, प्रायः परस्पर शांतिपूर्ण सौहार्दपूर्ण सह अस्तित्व का भाव के प्रति जागरूक रहें।

हम तकनीकी आधारित तानावग्रत सामाजिक माहौल में जीने को विवश

उन्होंने कहा कि आज हम तकनीकी आधारित तानावग्रत सामाजिक माहौल में जीने को विवश हैं।  जीवन की    तेज गति समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रही है। हर व्यक्ति तनावग्रस्त है। ऐसे संघर्षपूर्ण माहौल में शांति ही विकास की आवश्यक शर्त है। उन्होंने कहा कि भारत शांति की भूमि है, विश्व का आध्यात्मिक केंद्र है जिसके सनातन संस्कारों में विश्व शांति और कल्याण की कामना की गई है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि समाज में चतुर्दिक शांति से हर वर्ग को लाभ होगा। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा विश्व के अनेक संस्थानों के साथ मिलकर, विश्व भर में योग और ध्यान को प्रचलित बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि योग मानवता को भारत की अप्रतिम भेंट है जिस पर पूरी मानवता का अधिकार है।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.