समग्र समाचार सेवा
फरीदाबाद, 26 फरवरी। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार के उस फैसले की वैधता और संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया, जिसमें डॉक्टरों के परिजनों से संबंधित मुआवजे की नीति से निजी डॉक्टरों को बाहर करने का फैसला किया गया था, जिनकी महामारी के दौरान अपनी ड्यूटी करते हुए कोरोना महामारी के कारण मौत हो गई थी। जस्टिस वी. कामेश्वर राव ने दिल्ली सरकार और याचिकाकर्ता के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद मामले को स्थगित कर दिया।
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि पीड़ित, जो एक डॉक्टर है, इस मामले में 85 साल के थे और अपना निजी क्लीनिक चला रहे थे। उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा कोविड-19 ड्यूटी के लिए न तो काम सौंपा गया था और न ही पैनल में रखा गया। वह योजना के अंतर्गत नहीं आते हैं।
दूसरी ओर, वकील अशोक अग्रवाल ने बताया कि निजी डॉक्टरों से संबंधित मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की डिविजन बेंच के समक्ष लंबित है। इसके बाद बेंच ने उन याचिकाओं के निपटारे तक मामले को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया।
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने निजी डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को ‘कोरोना वॉरियर्स’ के परिजनों को 1 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद की नीति से बाहर कर दिया था, जिनकी कोविड-19 ड्यूटी का पालन करते हुए कोरोना वायरस के कारण मौत हो गई थी।
याचिकाकर्ता, सरोज गुप्ता के पति डॉ. श्याम गुप्ता की पिछले साल अप्रैल में कोविड-19 के कारण मौत हो गई थी। सरोज ने अपनी याचिका में कहा है कि दिल्ली सरकार का निर्णय याचिकाकर्ता के पति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जैसा कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की गारंटी के तहत दिया गया है।
याचिका में आगे कहा गया है कि फरवरी/मार्च 2020 में कोविड- 19 महामारी की शुरुआत के बाद से सभी सभी सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ निजी अस्पतालों ने सभी डॉक्टरों से आग्रह किया है कि वे महामारी से निपटने के लिए अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के कारण अपनी सेवाएं प्रदान कर रोगियों की देखभाल करें।
याचिकाकर्ता के वकील अशोक अग्रवाल और कुमार उत्कर्ष ने याचिका में आगे कहा कि कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई संयुक्त रूप से एक चुनौती के रूप में निजी और सरकारी दोनों डॉक्टरों द्वारा लड़ी गई थी। इस दौरान दुनियाभर के निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी जान गंवाई। इस बीमारी ने रोजगार की स्थिति, लिंग, उम्र के आधार पर भी कोई भेदभाव नहीं किया, यहां तक कि गर्भवती स्वास्थ्य कर्मियों की भी मृत्यु हो गई थी।
याचिका में यह भी कहा गया कि सरकारी और निजी डॉक्टरों के बीच भेदभाव करने का कैबिनेट का यह निर्णय, जो कोविड-19 के प्रकोप के दौरान अपनी निस्वार्थ सेवा दे रहे थे, पूरी तरह से मनमाना, भेदभावपूर्ण, विपरीत, अन्यायपूर्ण, अनुचित, अवैध और भारत के संविधान अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। वकील ने कहा कि प्रतिवादी दिल्ली सरकार ने मनमाने ढंग से बिना सोचे-समझे यह निर्धारित किया है कि निजी डॉक्टरों का बलिदान प्रतिवादी सरकार द्वारा तैनात डॉक्टरों से कम है।