समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24 फरवरी। देश में अपराधियों का पुलिस व जांच एजेंसियों से बचना मुश्किल होगा। केंद्र सरकार ने इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को लागू करने का फैसला किया। आल इंडिया बार एसोसिएशन (एआईबीए) ने केंद्र के इस कदम का स्वागत किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता और एआईबीए के अध्यक्ष डॉ. आदिश सी अग्रवाल ने कहा कि इससे देश का सुरक्षा तंत्र और मजबूत होगा।
अपराधों को सुलझाने और भारत को सुरक्षित देश बनाने में मदद मिलेगी
इस कानून से अपराधियों का पता लगाने, अपराधों को सुलझाने और भारत को सुरक्षित देश बनाने में मदद मिलेगी। वरिष्ठ अधिवक्ता और एआईबीए के अध्यक्ष डॉ आदिश सी अग्रवाल ने कहा कि कानून से जुड़े लोगों की लंबे समय से चली आ रही व्यक्तिगत मैपिंग की मांग पूरी हो रही है।
कानून की नजर से बचने वाले अपराधियों का छूटना मुश्किल
अग्रवाल ने कहा कि केंद्र सरकार क्रांतिकारी इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम लागू करने जा रही है। इससे आपराधिक न्याय के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की दिशा में लंबी छलांग लगेगी। यह कानून का पालन कराने वाली सभी एजेंसियों, प्रयोगशालाओं व अदालतों के लिए सुलभ होगा। इसके माध्यम से जहां अपराधियों का बचना मुश्किल होगा वहीं, कानून सभी के लिए समान है, यह बात दोषी या निर्दोष सभी को महसूस होगी।
प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के नेतृत्व में लागू होगा सिस्टम
अग्रवाल ने आगे कहा कि यह न्याय प्रणाली को गृह मंत्री अमित शाह और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लागू होने जा रही है। यह न केवल समय बचाएगा बल्कि सिस्टम को और अधिक मजबूत बनाएगा और अपराधियों को ट्रैक करने, अपराधों को सुलझाने और भारत को एक सुरक्षित स्थान बनाने में मदद करेगा।
मौजूदा आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ी खामी
मौजूदा आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ी खामी यह है कि महत्वपूर्ण जानकारी अलग-अलग डेटाबेस में फैली हुई है। यह न तो सुलभ है और न ही एकीकृत है। इसके अभाव में गंभीर अपराधों की जांच अंधेरे में हाथ मारने जैसी होती है। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि इसी खामी का लाभ अपराधी उठाते हैं और अलग-अलग अदालतों में वे भ्रामक व गलत जानकारियां देकर कानून व जांच एजेंसियों की पकड़ से बच जाते हैं।
इस प्रणाली से अपराधी नहीं बच पाएंगे
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि अदालतों के पास स्वयं अपराधियों का पता खोजने, आरोपी व्यक्तियों को सम्मन देने और मामले के अंतिम निर्णय तक अदालत में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने का एक कठिन कार्य है। मुकदमे के दौरान किसी भी समय, उक्त व्यक्ति केवल अपना पता बदलकर और नए पते का खुलासा न करके सिस्टम से बच सकता है। अलग-अलग नामों और पहचानों के तहत काम करने वाला अपराधी व्यवस्था को धोखा दे सकता है और ऐसे व्यक्तियों को न्याय दिलाना लगभग असंभव है। यह प्रणाली ऐसे अपराधियों को नकेल कसने में कारगार साबित होगी।
जेल से बाहर गए अपराधियों को ट्रैक करने में मिलेगी मदद
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि पुलिस के लिए सभी आरोपी व्यक्तियों की गतिविधियों और ठिकाने की लगातार निगरानी करना संभव नहीं है जो जेल में नहीं हैं। भारत के आपराधिक कानून ऐसे समय में बनाए गए हैं जब सामाजिक संबंध मजबूत थे और प्रत्येक व्यक्ति को एक समुदाय में जाना जाता था। उस समय, एक व्यक्ति जो एक अलग स्थान पर स्थानांतरित हो गया था, उसे रिश्तेदारों और इलाकों के अन्य व्यक्तियों की सहायता से ट्रैक किया जा सकता था। आज, यह अब संभव नहीं है और इसलिए, स्थानीय संकेतों के आधार पर व्यक्तियों को ट्रैक करने के लिए सिस्टम की अत्यधिक आवश्यकता है, जैसा कि अन्य विकसित देशों में इसे प्रयोग में लाया जा रहा है।