
बरेली से अपनी वापसी की यात्रा में रेल नीर की पानी की बोतल खाली होने पर उसे हमेशा के जैसे फेंकने के लिए क्रश करके एक तरफ रख दिया। अभी भी रेल यात्रा में ए.सी. कोच में बैडरोल नहीं दिए जा रहे हैं, अतः हमारे पास अपना इंतजाम था। पर बातों में मालूम पड़ा कि अब जल्द ही, अगर यात्री की जरूरत है तो मांगने पर डिस्पोजेबल बैडरोल उन्हें दिए जाएंगे, यह एक अच्छी बात थी। पर यह डिस्पोजेबल बैडरोल होने का अर्थ है कि फिर धरती पर कचरे का भार बढ़ाना। प्लास्टिक की इस बनी इस बोतल ने फिर मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा। अगर यह प्लास्टिक नाम का मैटेरियल हमारी जिंदगी में न होता तो क्या हमारी दैनिकचर्या उतनी सहज और सुगम होती जितनी अभी है? प्लास्टिक हमारी जिंदगी में इतना अधिक रच- बस गया है कि उसको अगर निकाल दें तो एक सामान्य,सुगम जीवन थोड़ा कठिन जरूर हो जाएगा। अगर एक व्यक्ति समर्थ है तो वह लकड़ी के फर्नीचर, बांस-बेंत, कांच की, आयरन की बनी चीजें घरेलू उपभोग में प्रयोग कर पाता है। पर प्लास्टिक इतना सुगम और इतनी आसानी से उपलब्ध होने वाला मैटेरियल बन चुका है जिसका प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति आसानी से अपने अनुसार कर पाता है। एक गृहणी भी अपने रोजमर्रा के अनुभवों से इसकी उपयोगिता को बता सकती है। यूं भी कहा जा सकता है कि प्लास्टिक के प्रयोग ने पेड़ों के कटने पर भी जरूर कुछ लगाम लगाई होगी। दूध के प्लास्टिक के पैकेट में पैकेजिंग से लेकर सेनेटरी पैड्स, पाइप्स, खाद्य पदार्थों की पैकिंग, पानी की बोतल, फर्नीचर, खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्या चीज ऐसी नहीं है जो कि प्लास्टिक के बिना पूरी है। सर्दी, गर्मी, बारिश, पहाड़, मैदान, समुद्री इलाका सभी जगह प्लास्टिक अपने पूरे दमखम के साथ अपना सिक्का जमा हुए है। पर क्या इतना सब होने के बावजूद भी प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त है? क्या यह अन्य समस्याओं की जड़ नहीं? वास्तु के अनुसार भी प्लास्टिक नकारात्मक ऊर्जा का संचार करने वाला होता है। क्या यह जगह- जगह बिखरी खाली पानी की बोतल, चिप्स के पैकेट या अन्य प्लास्टिक की बनी चीजों के इस्तेमाल के बाद इधर उधर फेंक देने में प्लास्टिक की गलती है या हमारी। प्लास्टिक तो नहीं कहता कि मुझे जलाओ और प्रदूषण फैलाओ। प्लास्टिक जितना उपयोगी है, उससे भी कहीं अधिक उसका गलत तरह से अपशिष्ट प्रबंधन उसकी बेहतरी को गलत साबित कर देता है। प्रकृति के रोष से अगर बचना है, उसके धैर्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना है तो प्लास्टिक को दोषी न ठहराएं प्रदूषण के लिए, पर्यावरण अस्वच्छता के लिए। उसकी रीसाइक्लिंग करके उसके सही अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान दें नहीं तो यह धरती, यह प्रकृति अगर किसी भी तरह से हमारे प्रतिकूल व्यवहार से बची भी रह गई तो वह ऐसी ही होगी जैसे इस समय कोविड-19 से या किसी अन्य बीमारी से ठीक हुआ इंसान, जो कि बच तो जाता है पर अस्त-व्यस्त और बदहाल हो जाता है। इसलिए प्रकृति को, प्राकृतिक तरीकों को अपनाना बहुत जरूरी है।