कांग्रेस के गले की फांस बनी 12 दिसंबर की रैली

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त्रिदीब रमण।
’नासमझ सन्नाटों को कुछ यूं डपटा बोलती हवाओं ने
झन्न से टूट कर बिखर गए लफ्ज़ जो कैद थे फिज़ाओं में’
कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को जब से पार्टी ने आंदोलन कमेटी की बागडोर सौंपी है उनका विद्रोह फिर से आकार लेने लगा है, एक दिन यूं अचानक उन्होंने ऐलान कर दिया कि कांग्रेस पार्टी 12 दिसंबर को दिल्ली के द्वारका में महंगाई के खिलाफ एक विशाल रैली करेगी। उनके ऐलाने जंग के बाद कांग्रेस की भी तंद्रा टूटी, राहुल ने जानना चाहा कि अभी दिल्ली में रैली करने का क्या औचित्य, वह भी द्वारका में, न समय अनुकूल है, न माहौल, मौसम और पॉल्यूशन दोनों ही आंखें दिखा रहे हैं। अगर यह रैली पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान में होती तो भीड़ जुट भी सकती थी, वह एक भीड़-भाड़ वाला इलाका है चलते-फिरते लोग भी आ जाते हैं। हरियाणा सरकार बार्डर पार कर रैली में शामिल होने वाले वाहनों को रोकेगी, दिल्ली की केजरीवाल सरकार की भी पूरी कोशिश होगी कि रैली में भीड़ न जुटे, क्योंकि दो-तीन महीनों में ही दिल्ली में निकाय चुनाव होने हैं जहां आप अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में दोनों दल आमने-सामने हैं तो गांधी परिवार ने फैसला लिया कि फिलहाल इस रैली को रद्द कर दिया जाए। ऐसे में परिदृश्य पर अवतरित हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उन्होंने सोनिया-राहुल को सुझाया कि रैली के रद्द होने से पार्टी कैडर में सही संदेश नहीं जाएगा, सो गहलोत ने इस रैली को हाईजैक कर लिया और इसे लेकर वे जयपुर चले गए। जहां कांग्रेस की सरकार है और प्रस्तावित रैली में भीड़ जुटाने में भी पूरी सरकारी मशीनरी को झोंका जा सकता है। जबकि राहुल की ऐन वक्त तक यही राय थी कि ’इस रैली को राजस्थान के बजाए यूपी या पंजाब ले जाना चाहिए,’ पर वक्त की कमी को देखते हुए गहलोत ने हाईकमान के समक्ष अपनी बात मनवा ही ली, अब इस रैली में सोनिया-राहुल और प्रियंका तीनों ने शामिल होने की सहमति दे दी है, चतुर गहलोत ने सचिन पायलट की उड़ान पर तो निशाना साध ही दिया है।

दिल्ली के इस नए पॉवर ब्रोकर का ज़लवा
’ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ के उद्घोष को ललकारता दिल्ली के लूटियंस जोन में एक नए पॉवर ब्रोकर का अभ्युदय हुआ है। कभी वे अपने रेस्टोरेंट बिजनेस के लिए जाने जाते थे, अब खाने-खिलाने के लिए तेजी से मशहूर हो रहे हैं। दिल्ली के एक बेहद पॉश इलाके में एक बड़े दूतावास से लगा इनका घर इन दिनों शानदार पार्टियों के लिए ख्यात हो रहा है। पार्टियां ऐसी जो ’पेज थ्री’ पार्टियों का मुकद्दर तय कर दे। शहर के बड़े व्यवसायी, विदेशी राजनयिक, न्यायमूर्ति गण से लेकर आईएएस, आईपीएस और आईआरएस अफसरों को आप यहां ठुमकते-बहकते-लचकते देख सकते हैं। पिछले दिनों इनकी ही एक पार्टी में बॉलीवुड के मशहूर सिंगर मीका ने समां बांध दिया समां कुछ ऐसा बंधा कि मेजबान की धर्मपत्नी भी अपनी लय खोती नज़र आईं। काम कोई भी हो इन दिनों ये शख्स हर मर्ज की दवा हैं, मंत्रालयों से लेकर जांच एजेंसियों तक में इनकी पकड़ और दखल की मिसाल देखी जा सकती है।

पंजाब में दल-बदल का मौसम
पंजाब में दल-बदल के मौसम ने दस्तक दे दी है। सूत्रों की मानें तो पंजाब कांग्रेस के एक बड़े नेता सुनील जाखड़ के पाला बदलने की आहटें सुनाई देने लगी हैं। सूत्र यह भी बताते हैं कि जाखड़ को उम्मीद थी कि कैप्टन को हटाने के बाद हाईकमान सीएम की कुर्सी उन्हें सौंपेंगे, पर चन्नी के दलित कार्ड ने उनकी महत्वाकांक्षाओं को धराशायी कर दिया। जाखड़ के बारे में बताया जा रहा है कि कैप्टन की पहल पर भाजपा शीर्ष से उनकी कई राऊंड की बात हो चुकी है। उन्हें बस चुनाव के अधिसूचना का इंतजार है। कैप्टन अमरिंदर के मुख्यमंत्रित्व काल में मंत्री रहे और चन्नी के कैबिनेट के खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के मंत्री भारत भूषण आशु के बारे में कहा जा रहा है कि वे कभी भी पाला बदल कर कैप्टन के साथ आ सकते हैं। कैप्टन भी लगातार ऐसे नेताओं की शिनाख्त में जुटे हैं जिन्हें अगर कांग्रेस टिकट नहीं देती है तो वे पाला बदल कर उनके साथ आ जाएं। वैसे भी कैप्टन को अब लगता है कि तीनों कृषि कानूनों के निरस्त हो जाने के बाद किसानों की नाराज़गी भाजपा से कम हो गई है।

क्या रंग बदल रहे हैं नीतीश

बिहार विधानसभा में ‘ड्राई स्टेट’ का माखौल उड़ाती दारू की खाली बोतल मिलने से खासा हंगामा बरपा, नीतीश कुमार ने अब तक खुलासा नहीं किया था कि वह कौन सी घटना थी जिसने उन्हें बिहार में शराब बंदी लागू करने के लिए प्रेरित किया था। सो, नीतीश कुमार ने पिछले दिनों इस राज से पर्दा उठाते हुए साफ किया कि ‘जब वे पटना में रह कर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे तब वे एक प्राइवेट लॉज में रहते थे। लॉज के इर्द-गिर्द गरीबों की बस्ती थी, जब महीने की पहली तारीख को इन्हें तनख्वाह मिलती थी तो वे मीट-मछली के साथ छक कर दारू पीते थे, खूब हंगामा करते थे, आपस में लड़ाई-झगड़ा करते थे और शराब के नशे में देश की तत्कालीन पीएम को गालियां निकाला करते थे, इस पर उनका दिल जार-जार रोता था और उनके मन में आता था कि ’इन उपद्रवियों को कैसे जेल की हवा खिलाई जाए।’ जब उनके हाथ में बिहार की बागडोर आई तो उन्होंने अपने उस पुराने संकल्प को मूर्त रूप देने का प्रयास किया।’ दिवंगत इंदिरा गांधी की तारीफ में इतने कसीदे, क्या नीतीश 2024 में रंग बदल सकते हैं?

मनीष तिवारी की नज़र कहां हैं

इस गुरुवार को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के मल्टीपरपस सभागार में कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी की चर्चित पुस्तक ’10 फ्लैश प्वाइंट्स 20 ईयर्स’ का लोकार्पण था, पर हैरानी की बात है इस समारोह से कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने दूरियां बना लीं, जो आए वे जी-23 के अहम चेहरों में शुमार होते हैं-जैसे आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा आदि। आए तो जनार्दन द्विवेदी भी और पवन खेड़ा भी, पर उनके आने या न आने का ज्यादा औचित्य नहीं। पर कैप्टन अमरिंदर सिंह के कई खासमखास नेताओं को वहां चहल-कदमी करते जरूर देखा जा सकता था। इससे क्या समझा जाए कि डॉ. मनमोहन सिंह और राहुल गांधी पर लगातार निशाना साधने वाले तिवारी क्या दिल्ली में कैप्टन के सबसे दुलारे चेहरे हैं। तिवारी की ‘टीम राहुल’ के अजय माकन और रणदीप सुरजेवाला से एकदम नहीं पटती है। 2019 में भी जब राहुल मनीष को पंजाब से लोकसभा का टिकट देने में आनाकानी कर रहे थे तो भाजपा की ओर से उन्हें पवन बंसल के खिलाफ चंडीगढ़ से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव मिला था, पर इस खबर के बाहर आते ही कांग्रेस ने उन्हें आनंदपुर साहिब से टिकट दे दिया था। मनीष को कांग्रेस में आगे बढ़ाने वाले अहमद पटेल नहीं रहे तो क्या 2024 में मनीष लौट कर भगवा आस्थाओं को शिरोधार्य कर सकते हैं? वैसे भी चंडीगढ़ से चुनाव लड़ने की उनकी पुरानी इच्छा है।

ममता के निशाने पर क्यों हैं कांग्रेस
ममता बनर्जी को कांग्रेस के देदीप्यमान नक्षत्र राहुल गांधी फूटी आंखों नहीं सुहाते, यह झगड़ा तब और बढ़ गया जब राहुल ने ममता के घोर विरोधी अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में कांग्रेस का नेता बनवा दिया। साथ ही बंगाल में कांग्रेस की बागडोर भी उन्हें सौंप दी।। सीताराम येचुरी से राहुल की इतनी दोस्ती को भी ममता पचा नहीं पा रहीं। सो, भाजपा के सुर में सुर मिलाते ममता ने यह भी कह दिया कि ‘राहुल तो ज्यादा विदेश में ही रहते हैं।’ जुलाई में ममता दिल्ली आईं तो उन्होंने सिर्फ सोनिया से मिलने का समय मांगा पर उस मीटिंग में थोड़ी देर के लिए राहुल भी मौजूद थे। ममता जब मुंबई जाकर शरद पवार से मिली तो उन्होंने यूपीए के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए, पूछा-’कौन सा यूपीए?’ वहीं महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार को कांग्रेस के 43 विधायकों का समर्थन हासिल है। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी यूपीए को मना नहीं कर पा रहे क्योंकि उनकी सरकार को भी कांग्रेस के 18 विधायकों का समर्थन हासिल है। बिहार उप चुनाव में भले कांग्रेस और राजद अलग-अलग लड़े हों पर स्वयं लालू यादव यूपीए के अस्तित्व पर सवाल खड़े नहीं करते। तमिलनाडु में भले ही डीएमके की सरकार बहुमत में हो पर एमके स्टालिन 18 विधायकों के समर्थन के लिए कांग्रेस के शुक्रगुजार हैं। वहीं सिर्फ ममता और शरद पवार को यूपीए का अस्तित्व खटक रहा है, क्या ये दोनों विपक्षी पार्टियों के एक नए गठबंधन को नए नाम से सामने लाना चाहते हैं?

…और अंत में
पंजाब के नए जनमत सर्वेक्षण वहां हंग असेंबली की तस्वीर दिखा रहे हैं, मैदान में बड़े खिलाड़ी हैं-कांग्रेस, आप, शिरोमणि अकाली दल, भाजपा व अमरिंदर। कांग्रेस और आप के बीच कड़ी टक्कर है, अकाली दल भी जबर्दस्त मुकाबले में है, विश्लेषक बता रहे हैं कि अगर तस्वीर यूं ही बनी रही तो पहली बार आप और भाजपा साथ आ सकती हैं, इस गठबंधन को बसपा और अमरिंदर का भी समर्थन हासिल हो सकता है। कांग्रेस को हराने के लिए यह अजीबोगरीब गठबंधन आकार ले सकता है। (एनटीआई-gossipguru.in)

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