सीए चुनाव : हमारा बोया हम ही काट रहे हैं !

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CA Singhayi Sanjay Jain
CA Singhayi Sanjay Jain

 

पिछले कुछ वर्षों से पूरे देश में एक ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश हो रही है कि देश में सारे आर्थिक भ्रष्ट आचरण का जनक चार्टर्ड एकाउंटेंट ही है और उसे इस सबके चलते बहुत तगड़ा आर्थिक लाभ मिलता है जबकि वास्तविकता इससे बहुत अलग है। हमारी इस इमेज के जिम्मेदार हम स्वयं हैं। आप स्वयं सोचिए कि अपने प्रोफेशन की छवि को सँवारने के लिए हमने क्या किया? सच तो यह है कि हममें से अधिकांश इस विषय पर काम करना तो दूर सोचने की जहमत भी नहीं उठाना चाहते हैं। हमें यह भी पता है कि यह आलेख भी अधिकांशतया मित्र दस लाइन से अधिक नहीं पढ़ेंगे और फिर यह कहते फिरेंगे कि प्रोफेशन गड्ढे में जा रहा है।

देश में 1.03 करोड़ पंजीकृत जीएसटी व्यवसाई हैं और 32.71 करोड़ पैन धारी हैं। देश में 1344857 कंपनियां और 33 लाख एनजीओ कार्यरत हैं। इनकी सेवा के लिए वर्तमान में कुल 327081 सीए सदस्य हैं जिनमें से आधे से भी कम केवल 144136 सीए 90796 फर्मों के माध्यम से प्रेक्टिस में हैं जिनके जिम्मे देश के 748 राजस्व जिलों के व्यवसाय को न केवल आद्यतन बल्कि अत्याधुनिक वित्तीय सेवाएं प्रदान करना है। ऐसी अवस्था में तब जब भारत पाँच ट्रिलियन की अर्थ व्यवस्था बनने जा रहा हो यह संख्या बहुत अपर्याप्त है और यदि काम का सम्यक और निरपेक्ष बंटवारा हो तो हर किसी के पास औकात से अधिक काम हमेशा रहेगा !

परेशानी यह है कि हमें नियोजित, नियंत्रित और निर्देशित करने वाले तंत्र का जिम्मा जिन 40 लोगों के हाथ है उनमें से भी 8 सरकारी हैं और जो बाकी 32 चुने जाते हैं उन्हें चुनने का मौजूदा तरीका ऐसा है कि वे क्लास का प्रतिनिधित्व तो करते हैं किन्तु मास और ग्रास का नहीं करते दिखलाई देते हैं। हमारा मेकेनिज़्म ऐसा है कि जिन शहरों में सदस्य अधिक हैं वहाँ से चुना जाना गारंटी माना जाता है और छोटे शहरों का प्रतिनिधित्व न के बराबर होता है। ऐसा नहीं के वे अक्षम, अकर्मण्य और स्वार्थी हैं बल्कि इससे उलट जो भी इंस्टिट्यूट की काउंसिल में जाता है पूरे तीन साल वह अपने व्यवसाय तो छोड़िए परिवार से भी दूर हो जाता है। रात-दिन एक करके न केवल इंस्टिट्यूट के नियमित दायित्वों को निभाना बल्कि वैश्विक स्तर और घरेलू जमीन पर अन्य समानधर्मी प्रोफेशनल विकल्पों के प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण से निपटना कोई सरल काम नहीं है। ऊपर से वर्तमान सरकार में नॉर्थ ब्लॉक की भृकुटी तो हम पर तनी ही हुई है। मगर कहीं तो कुछ ऐसा है जिसे तुरंत ठीक करना सबसे अधिक जरूरी है।

क्या कारण है कि हम सरकारों को समझा नहीं पाते कि सस्ती ऑडिट उसकी आर्थिक दुर्गति का मूल है – कोई बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवस्था नहीं और यह वैसा ही है कि कैंसर का मरीज यूनानी दवाखाने की सस्ती दवाई से दिल बहला कर दुगनी जल्दी भगवान से मिलने की व्यवस्था करे। क्या कारण है कि एक टेंडर किसी बड़ी फर्म को जुगाड़ से मिल तो जाता है पर उसे कुछ नए सीए कौड़ियों के मोल भुगतते हैं ? हमें यह समझना होगा कि 10 क्विंटल शुद्ध दूध भी नीबू की एक बूंद से फट जाता है। क्या कारण है कि हमारी नियमों का संजाल ऐसा प्रतीत होता है कि वह हमारे व्यवसाय को सरल करने के बजाय राह का रोड़ा है ? क्या कारण है कि हम अपनी ही वेबसाइट से अपने प्रोफेशन संबंधी अप-टू-डेट जानकारी नहीं निकाल पाते हैं ? क्यों हम अपने ही इंस्टिट्यूट से अपने किसी अन्य साथी का संपर्क सूत्र तक नहीं जान सकते हैं जबकि वह इंटरनेट पर अन्य सूत्रों से अधिक विश्वसनीय रूप से मिल जाता है ?

हम समझते हैं कि इसके मूल में हमारी ही तटस्थता है। हम सभी रेल के उस यात्री जैसा व्यवहार करते हैं जो जब तक प्लेटफॉर्म पर रहता है बोगी का दरवाजा पीटता रहता है कि जल्दी सवार हो जाए – पर जैसे ही अंदर पहुंचता है उसी दरवाजे की सिटकनी बंद करने में विश्वास करता है। कहता है कि उसे जो कंबल-तकिया मिले साफ सुथरा हो पर उतरते समय उससे जूते पोंछने में कोई झिझक नहीं महसूस करता। अगर हम चाहते हैं कि इंस्टिट्यूट का वातावरण बदले तो हमने कब कलम-पेन उठाया और काउन्सिल को इस बावत आगाह किया ? अधिकांश सीए राजनैतिक विचार शून्यता के शिकार हैं। यह तो छोड़िए अभी जब चुनाव में वोट करने का मौका आएगा तो जिस संस्था में 100% नहीं तो 90% वोट पड़ना चाहिए उसमें जरा देखिएगा कि आपके शहर में क्या हाल है ? यही नहीं जो वोट देने भी जाएगा यह देखेगा कि कौन कहाँ का है ? किसका पार्टनर या रिश्तेदार है ? किस जाति या धर्म का है ? हमने एजेंडा देख कर भी कभी वोट डाला है ? हमने कभी किसी सिटिंग मेम्बर से यह पूछने का साहस किया है कि उसके 1095 दिन के काम का क्या हिसाब है ? क्या हमने किसी छोटे शहर से आने वाले योग्य उम्मीदवार को ध्यान से सुना है ? हमने क्या किसी को भी ध्यान से कभी सुना है ?

वर्तमान चुनाव में करीब 16000 नए सदस्य तो केवल सीआईआरसी क्षेत्र में बने हैं जो इस व्यवस्था को बदलने में महती भूमिका निभा सकते हैं और उन्हें ऐसा इसलिए भी करना चाहिए क्योंकि आने वाले संकटों से उन्हें ही ज्यादा जूझना पड़ेगा। हर सीनियर का कर्तव्य है कि वह अपने आसपास के जूनियर्स का मार्गदर्शन करे। उसे उसके वोट की ताकत का एहसास कराए और यह समझाए कि हमारी वर्तमान वोटिंग प्रणाली यह अवसर देती है कि आप उम्मीदवारों की सूची का अध्ययन और मनन करके उनकी रेटिंग करें और उसी हिसाब अंकित करें। यह ध्यान रहे कि यदि आपके फर्स्ट प्रेफेरेंस का व्यक्ति नहीं भी चुना गया तो भी आपका वोट दूसरे-तीसरे-चौथे और आठवें तक के काम आ सकता है !

यह चुनाव देश के सबसे प्रतिष्ठा प्राप्त प्रोफेशनल्स का है इसलिए सामान्य चुनाव के उलट जब आप वोट देंगे तो यह न केवल उसकी परीक्षा होगी बल्कि आपके स्वयं के विवेक, ज्ञान, नैतिकता और बुद्धिमत्ता की भी परीक्षा होगी। जो जान बूझ कर वोट देने नहीं जाए उसे सामाजिक निकृष्ट की श्रेणी में ही गिना जाएगा क्योंकि :-
समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र !
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध !!

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1 Comment
  1. Awadhesh Kumar Singh says

    बहु उद्देशीय आलेख । बच्चों के लिये अति आवश्यक सुझाव और टिप्स ताकि बचपन ज्यादा खुशहाल रहे । संपादक दल को उनके प्रेरक लेखों के चयन पर अति आभार । शुभकामनाएं।

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