समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21अक्टूबर। कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है. करवा चौथ का व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखा जाता है. इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए निर्जल व्रत रखती हैं. करवा चौथ के दिन चंद्रमा के साथ ही शिव-पार्वती , गणेश और कार्तिकेय की पूजा भी की जाती है. करवा चौथ के दिन इसकी कथा का काफी महत्व होता है. कथा के बिना करवा चौथ का व्रत अधूरा माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं करवा चौथ की पूजा की कथा
करवा चौथ कथा-
प्राचीन समय में करवा नाम की एक स्त्री अपने पति के साथ एक गांव में रहती थी. उसका पति नदी में स्नान करने गया. नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया. उसने पत्नी को सहायता के लिए पुकारा.
करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और तत्काल धागे से मगरमच्छ को बांध दिया. उसका सिरा पकड़कर करवा पति के साथ यमराज के पास तक पहुंच गई. यमराज के साथ प्रश्न उत्तर के बाद करवा के साहस को देखते हुए यमराज को उसके पति को वापस करना पड़ा.
जाते समय उन्होंने करवा को सुख-समृद्धि के साथ वर भी दिया- ‘जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा.’ इस कथा में करवा ने अपने सशक्त मनोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की. मान्यता है कि जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी.
व्रत रखने का अर्थ ही है संकल्प लेना. वह संकल्प चाहे पति की रक्षा का हो, परिवार के कष्टों को दूर करने का या कोई और. यह संकल्प वही ले सकता है, जिसकी इच्छा शक्ति मजबूत हो. प्रतीकात्मक रूप में करवा चौथ पर महिलाएं अन्न-जल त्याग कर यह संकल्प लेती हैं और अपनी इच्छा शक्ति की परख करती हैं. यह पर्व संकेत देता है कि स्त्री अबला नहीं, बल्कि सबला है और वह भी अपने परिवार को बुरे वक्त से उबार सकती है.