*संदीप ठाकुर
भूपेंद्र पटेल गुजरात के नए मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। ये कितने बड़े नेता हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्हें मुख्यमंत्री घोषित किए जाने के बाद भाजपाइयों काे भी इनके बारे में जानने के लिए गूगल का सहारा लेना पड़ा। सवाल यह है कि मुख्यमंत्री बदलना भाजपा की जरूरत है या मजबूरी। असली कारण किसी को पता नहीं है। लेकिन राजनीतिक खिलाड़ियों का मानना है कि राज्यों में पार्टी की लगातार गिरती लोकप्रियता नेतृत्व काे ऐसा करने पर मजबूर करती है। चुनाव से ऐन पहले नए और अनजाने चेहरे काे सामने इसलिए लाया जाता है कि ताकि पार्टी के दबंग नेता उनके चेहरे काे आगे कर मनमर्जी का खेल आसानी से खेल सके।
गुजरात में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को हटा दिया गया। सही कारण ताे किसी काे नहीं पता लेकिन राज्य में आसन्न चुनाव काे देखते हुए माेदी-शाह की जोड़ी ने यह कदम उठाया है। देखा जाए ताे लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने कहीं भी उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया। उसी से पार्टी ने सबक लेकर रणनीति बदली है और चुनावों से पहले मुख्यमंत्री बदलना शुरू किया है ताकि जनता की नाराजगी काे कम किया जा सके। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के तमाम प्रयासों के बाद भी भाजपा का उन राज्यों में हारने या कमजोर होने का सिलसिला शुरू हुआ, जहां दाेनाें ने भाजपा की सरकार बनवाई थी। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद भाजपा शासित तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे। तीनों में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। महाराष्ट्र और झारखंड में तो भाजपा चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हो गई। हरियाणा में जरूर भाजपा की सरकार किसी तरह बच गई, लेकिन उसकी सीटें काफी कम हो गईं। पार्टी काे दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से तालमेल करके सरकार बनानी पड़ी। यह इस बात का संकेत था कि पांच साल सरकार चलाने वाले पार्टी के मुख्यमंत्री अपने कामकाज पर दोबारा सत्ता में लाने में सक्षम नहीं हैं।
2018 के चुनाव में भी पार्टी बड़ी मुश्किल से गुजरात में बहुमत के आंकड़े को पार कर पाई थी। उस समय भी वहां चुनाव से एक साल पहले ही मुख्यमंत्री बदला गया था और दूसरे 16 साल के बाद पहला चुनाव था, जो नरेंद्र मोदी के बिना लड़ा जा रहा था। उत्तराखंड में इसी रणनीति के तहत मुख्यमंत्री बदल गया था और अब गुजरात में भी इसी वजह से सीएम बदला गया है। कर्नाटक में भी भाजपा ने 2023 के चुनाव को ध्यान में रख कर ही मुख्यमंत्री बदला है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश को लेकर जो नाटक चला वह भी इसी का नतीजा था।
वहां भाजपा आलाकमान मुख्यमंत्री नहीं बदल सका तो राज्य सरकार के कामकाज से प्रधानमंत्री के नाराज होने की खबरों का प्रचार हुआ ताकि एंटी इंकंबैंसी कम की जा सके। यदि भाजपा इस रणनीति पर आगे भी अमल करती है तो 2022 और 2023 में जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं वहां के मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।