श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष- श्री कृष्ण के अवतारों की प्रासंगिकता पर एक कहानी

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली, 30अगस्त।  कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने !
प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः!!

हे श्री कृष्ण ! हे वासुदेव ! (वसुदेवके पुत्र) हे हरि ! हे परमात्मन ! हे गोविंद ! आपको नमन है , हम सब के सारे क्लेशों का नाश करें, हम आपके शरणागत हैं।।

*आप सभी को सपरिवार कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। इस पावन अवसर पर हम सभी आपके एवं आप के समस्त परिवार के लिए सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं । *
🙏 अवतारों की प्रासंगिकता पर एक क़िस्सा याद आ गया जिसमें मैंने यथोचित परिवर्तन किए हैं –
*एक बेटे ने माँ से पूछा – “माँ, मैं एक आनुवंशिक वैज्ञानिक हूँ | मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ | विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन, आपने उसके बारे में सुना है ?” *

उसकी माँ उसके पास बैठी और मुस्कुराकर बोली – “मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ, बेटा | मैं यह भी जानती हूँ कि तुम जो सोचते हो कि उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में भारत के लिए बहुत पुरानी खबर है |“

*“ क्या ऐसा है माँ !” बेटे ने विस्मय और व्यंग्यपूर्वक कहा *।

“तो अब ध्यान से सुनो,”
माँ ने प्रतिकार किया ,क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है ? विष्णु के दस अवतार ?” बेटे ने सहमति में सिर हिलाया |
“तो मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम्हें और मि. डार्विन को अभी क्या जानना शेष है |

*पहला अवतार था मत्स्य अवतार, यानि मछली | ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ | यह बात सही है या नहीं ?” बेटा अब और अधिक ध्यानपूर्वक सुनने लगा —-उसके बाद आया दूसरा कूर्म अवतार, जिसका अर्थ है कछुआ, क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया ‘उभयचर (Amphibian)’ | तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर विकास को दर्शाया |कहा जाता है कि धरती को कछुए ने उठा रखा है ।दरसल वह प्रतीक है पानी से ऊपर उठकर धरती सम्भालने का *।
तीसरा था वराह अवतार, जंगली सूअर, जिसका मतलब जंगली जानवर जिनमें बहुत अधिक बुद्धि नहीं होती है | डायनासोर भी उसी विकास क्रम की श्रेणी में आते हैं ,सही है न बेटा ? बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई |

*चौथा अवतार था नृसिंह अवतार, आधा मानव, आधा पशु, जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों तक विकास *|
पांचवें वामन अवतार था, बौना मानव जो वास्तव में ऊँचाई में बढ़ने की शुरुआत कर रहा था | क्योंकि मनुष्य दो प्रकार से विकसित होने शुरू हुए , होमो इरेक्टस ( छोटे ब्रेन साइज़ वाले )और होमो सेपिअंस (बड़ी ब्रेन साइज़ वाले)और अंततः होमो सेपिअंस ने बाज़ी मार ली |” बेटा देख रहा था कि उसकी माँ पूर्ण प्रवाह में थी और वह स्तब्ध था |

*छठा अवतार थे परशुराम – वे, जिनके पास हथियार ,धनुष बाण फ़रसा और कुल्हाड़ी की ताकत थी, वो मानव जो गुफा और वन में रहने वाला था | अपनी सुरक्षा के प्रति सजग और गुस्सैल *|
*सातवां अवतार थे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोच युक्त सामाजिक व्यक्ति, जिन्होंने समाज के नियम बनाए और समस्त रिश्तों का आधार *|
आठवां अवतार थे जगद्गुरु श्री कृष्ण, राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी जिन्होंने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में रहकर कैसे विश्व कल्याण किया जा सकता है | नवां अवतार थे भगवान बुद्ध, वे व्यक्ति जो नृसिंह से उठे और मानव के सही स्वभाव को खोजा *| *उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की *और अंत में दसवां अवतार कल्कि आएगा, वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो , अरविंद ने अतिमानव कह कर इशारा किया है और सम्पूर्ण सृष्टि जिसके लिए काम भी कर रही है और अग्रसर भी है | वह मानव जो आनुवंशिक , चिंतन और कार्य व्यवहार के स्तर अति-श्रेष्ठ होगा और सम्पूर्ण सृष्टि से सदा संवेदनशीलता के साथ जुड़ा होगा |वह कृष्ण के ज्ञान भक्ति और कर्म योग और उसके संतुलन का सही अर्थ समझेगा ।
*अपनी बुद्धियों द्वारा सृष्टि में व्याप्त एकात्म का एहसास ,पूरी सृष्टि एक विराट जीवंत शरीर है और हम उसके जीवंत अंग है इस सच्चाई का एहसास ही ज्ञान योग है. *
पूरी सृष्टि के प्रति प्रेम, समर्पण ,श्रद्धा, संवाद और संवेदना का भाव रखना ही भक्ति योग है .
पूरी सृष्टि के प्रति संवेदनात्मक जुड़ाव महसूस करते हुए कार्य करना ,सर्व हित में कार्य करना ,सबके सुख दुःख को समझना ,सबका ध्यान रखना,किसी को विरोधी न मानना ,किसी को पीड़ा न पहुंचाते हुए यथासंभव जीवन यापन करना ,यही कर्म योग है.”
*बेटा अपनी माँ को अवाक होकर देखता रहा | “यह अद्भुत है माँ, भारतीय दर्शन वास्तव में अर्थपूर्ण है |“सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए धार्मिक या वैज्ञानिक *|

*तो आइए कृष्ण जन्माष्टमी की इस पावन बेला में श्री कृष्ण के महत्व को समझें ,
उनके प्रकृति , गाय से लगाव व जीवन और सोच की विराटता को समझें ,ख़ुद को नेपथ्य में रखकर दूसरों को आगे बढ़ाने और दूसरों को श्रेय देने की भावना को समझें;महाभारत युद्ध के मैदान में उनके द्वारा दिखाए गये विराट रूप को ध्यान में रख कर काल, समय और अस्तित्व का अर्थ समझें ;गीता दर्शन को आत्मसात करें *।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.