मौखिक लोक साहित्य सामान्य लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण अंग- डा. अरुणा ढेरे

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 16अगस्त। मौखिक लोक साहित्य मानव को मानव से जोड़ने का काम करता है तथा आधार देता है, इसी कारण यह सामान्य लोगों के जीवन का तत्वज्ञान है, यह प्रतिपादन डा अरुणा ढेरे ने किया.
महाराष्ट्र सूचना केंद्र (एम आई सी) की ओर से चल रहे महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला के तहत ५९ वे व्याख्यान में वह ‘महाराष्ट्र का लोक साहित्य और महिलाओं का योगदान’ विषय पर बोल रही थी. उन्होंने आगे कहा कि मानव के जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी मौखिक परंपरा को लेकर गीत मौजूद है. समूचे जीवन के साथ चलने वाला यह साहित्य है और मानव को जीवन के अलग-अलग चरणों में आधार देता है, उसे उचित दिशा बताता है और साथ ही सामाजिक जीवन और सार्वजनिक जीवन में अच्छाई के बीज बोने का काम मौखिक लोक साहित्य ने महाराष्ट्र में किया है. उन्होंने कहा कि यह राज्य के लिए एक महा दान ही कहा जाना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि लोक परंपरा और उससे जुड़े साहित्य महाराष्ट्र के लिए समृद्ध परंपरा का आधार है. केवल महाराष्ट्र ही नहीं अपितु भारत के सभी भाषाओं में मौखिक लोक साहित्य की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है. राज्य में इस लोक साहित्य से अनेक प्रकार के उप -साहित्य को प्रेरणा मिलने की बात भी उन्होंने बताई.
उन्होंने आगे कहा कि लोक साहित्य का अस्त ना हो इस उद्देश्य से इस साहित्य के अध्ययन की आवश्यकता आन पड़ी तथा इस साहित्य को शब्दों के रूप में संरक्षित करना भी आवश्यक हुआ है. उन्होंने कहा कि राजवाड़े, चाफेकर, दुर्गाबाई भागवत, सरोजिनी बाबर, डा रा ची ढेरे, प्रभाकर मांडे जैसे अध्ययनकर्ताओं ने महाराष्ट्र के लोक साहित्य को समृद्ध किया है. उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में कई प्रकार के लोकगीत है जो विभिन्न जातियों की परंपरा से संबंधित हैं. इनमें कोहली, भारली, आदिवासी समाज का समावेश है और समूचा ग्रामीण जीवन लोकगीतों से भरा होने की बात भी उन्होंने कही.
डा ढेरे ने आगे बताया कि लोककथा का भी मराठी भूमि में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इनमें ऐतिहासिक कथा, अद्भुत भूतों की कथाएं, दंत कथाएं, रहस्य कथा, पौराणिक कथाएं जैसी लोक कथाओं का समावेश है. साथ ही स्रोत, भोपाल्या, पालने, आरत्या, पद, उबालया, लावण्या भी शामिल है. इसके साथ ही लोक नाटकों को आधार देने वाले गीत भी पाए जाते हैं तथा कीर्तन परंपरा का भी एक प्रवाह देखने को मिला है. यह सभी लोक साहित्य की देन है.
उन्होंने आगे कहा कि लोक साहित्य का जतन करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने लोक साहित्य समिति का गठन किया है क्योंकि महाराष्ट्र की संस्कृति के सभी अंग इस लोक साहित्य में पाए जाते हैं.
डा ढेरे ने कहा कि लोक देवता भी लोक साहित्य का एक काफी महत्वपूर्ण हिस्सा है और हजारों वर्षों से मौखिक साहित्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाता रहा है तथा आज इन सभी साहित्य को दर्ज करने और उसकी संज्ञा महत्वपूर्ण है. इसी में से अलग-अलग काल में लोगों के जीवन की जानकारी प्राप्त होगी और साथ ही अलग-अलग समय में संवाद के लिए उपयोग किए गए माध्यम की जानकारी प्राप्त होगी.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि जब महिलाओं को कोई भी अधिकार नहीं थे ऐसे समय में महिलाओं ने लोक साहित्य के माध्यम से अपना सुख -दुख, आनंद, अनुभव, होशियारी को ओव्या के माध्यम से लोगों के समक्ष बयान किया और यही अगली पीढ़ी को मिला. डा ढेरे ने कहा कि यह महिलाएं उस समय की प्रगतिशील महिलाएं थी. साथ ही यह भी कहा कि महाराष्ट्र का लोक साहित्य प्रकृति से संबंधित है. पेड़, परिंदे, प्राणी का मनुष्य से संबंध और सृष्टि के अलग-अलग घटक एक दूसरे को किस तरह से सहायता करते हैं इसके बारे में भी लोक साहित्य के माध्यम से अनेक साहित्यिक व्यक्त हुए हैं. उन्होंने कहा कि पौराणिक कथा से अनेक प्रेरणादायक प्रसंग लोक साहित्य में आए हैं. उन्होंने महालक्ष्मी, विष्णु, लकड़हारे की कहानी, विट्ठल, संत नामदेव, की कथाएं भी सुनाई और साथ में इन कथाओं के उद्देश्य पर भी प्रकाश डाला.

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