दुनिया के हिंदुओ जागो, एक हो ..

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*आलोक लाहड
इस्लाम में एकमात्र करने योग्य कर्तव्य जिहाद है, और इस्लाम का एकमात्र उद्देश्य सारी दुनिया को इस्लामिक(गज़वा ए आलम) बनाना है, इन दोनों को निकाल देने पर इस्लाम में कुछ भी नहीं बचता है, बिल्कुल कुछ भी नहीं! ये बात हर गैर मुस्लिम को समझ में आनी चाहिये ! अन्यथा सब मिटोगे एक दिन, क्योंकि आखिरी काफ़िर के रहने तक जिहाद चलता रहेगा, ये उनकी किताबों में बार-बार, सैकड़ों बार लिखा गया है!

क्या करोगे इतनी संपत्ति कमाकर ?

एक दिन पूरे काबुल (अफगानिस्तान) का व्यापार सिक्खों का था, आज उस पर तालिबानों का कब्ज़ा है |

-सत्तर साल पहले पूरा सिंध सिंधियों का था, आज उनकी पूरी धन संपत्ति पर पाकिस्तानियों का कब्ज़ा है |

-एक दिन पूरा कश्मीर धन धान्य और एश्वर्य से पूर्ण पण्डितों का था, उन महलों और झीलों पर अब आतंक का कब्ज़ा हो गया और तुम्हें मिला दिल्ली में दस बाई दस का टेंट..|

-एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनियाँ में जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था | आज उसके पास सुतली बम भी नहीं बचा |

ननकाना साहब, लवकुश का लाहौर, दाहिर का सिंध, चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी माता का मंदिर देखते ही देखते सब पराये हो गए |

पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो ही नदियाँ बची |

यह सब किसलिए हुआ.? केवल और केवल असंगठित होने के कारण। इस देश के समाज की सारी समस्याओं की जड़ ही संगठन का अभाव है |

आज भी बेकारण आया संकट देखकर बहुतेरा समाज गर्राया हुआ है |

कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपने समझ रहा है,

कोई आंध्रा की खदानें अपनी मान रहा है |

तो कोई सूरत का व्यापारी सोच रहा है ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा |

कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था |

उसे केवल अपने घर का ध्यान रहा और लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज को अपने ही राष्ट्र के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया है !

बहुत कमाया बस्तर के जंगलों से… आज वहाँ घुस भी नहीं सकते |

आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर क्या संकट आने वाला है ??*

बचे हुए समाज में से बहुत से अपने आप को Secular मानते हैं |

कुछ समाज लाल गुलामों का मानसिक गुलाम बनकर अपने ही समाज के खिलाफ कहीं बम बंदूकें, कहीं तलवार तो कहीं कलम लेकर विधर्मियों से ज्यादा हानि पहुंचाने में जुटा है |

ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत ही बचता है जो अपने धर्म, सभ्यता, संस्कृति, मूल्य, परम्परा, सरोकारों और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है,

धूर्त Secular ने उसे असहिष्णु और साम्प्रदायिक करार दे दिया|
इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है |

एक रास्ता है शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना ,

और दूसरा तमाम संकटों को भांपकर , सारे मतभेद भुलाकर , संगठित हो कर व संघर्ष कर अपनी धरती और संस्कृति बचाना |

अगर आप पहला रास्ता अपनाते हैं तो आपकी चुप्पी और तटस्थता समय के इतिहास में एक अपराध के तौर पर दर्ज होगी।

अगर आप दूसरे रास्ते पर चलते हैं तो आपके Secular मित्र -संबंधी आपको कट्टर, संघी या अंधभक्त कहकर अपने आपको बड़का वाला चमचा सिद्ध करने की कोशिश जरूर करेंगे लेकिन आप अपनी मातृभूमि और अपने सनातन धर्म के प्रति अपनी निष्ठा और कर्त्तव्य का परिचय देते हुए इस राष्ट्र की मूल संस्कृति को बचाने के लिए पूरी से डटे रहिये!

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