फैक्टरिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) बिल, हुक्मरानों के मित्रों के हित साधने का साधन मात्र है सांसद : श्री नीरज डांगी

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,30जुलाई। राजस्थान से राज्यसभा सांसद श्री नीरज डांगी ने संसद के मानसून सत्र में फैक्टरिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) बिल, पर राज्य सभा में कांग्रेस की ओर से एक मात्र वक्ता के रूप में फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट, 2011 में संशोधन करने को कुटिल प्रयास एंव वर्तमान हुक्मरानों के अपने समर्थित व्यापारिक मित्रों के हितों को साधने का साधन मात्र है, बताया है।

श्री डांगी ने सदन में अमेंडमेंट बिल पर विस्तृत चर्चा करते हुए सदन को अवगत कराया है कि यह अमेंडमेंट बिल सदन में पेश करने से पूर्व सरकार ने बड़ी चतुराई से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इंटरप्राइजेज की परिभाषा ही बदल दी है। एमएसएमई की परिभाषा बदल जाने से यह अमेंडमेंट बिल एमएसएमई को सहायता अथवा उद्यमियों को आ रही समस्याओं के निराकरण हेतु नहीं अपितु वर्तमान हुक्मरानों के अपने समर्थित व्यापारिक मित्रों के हितों को साधने का साधन मात्र है।

श्री डांगी ने तरनुम्म कानपुरी के एक मषहूर शेर का जिक्र किया कि -ऐ काफिले वालों, तुम इतना भी नही सम़झे, लूटा है तुम्हे रहजन ने, रहबर के इषारे पर। इस संशोधन को सरकार का एक कुटिल प्रयास बताया ताकि उन संस्थाओं के दायरे को बढ़ाया जा सके जो फैक्टरिंग व्यवसाय में संलग्न हो सके।‘‘

श्री डांगी ने आगे चर्चा में बताया कि एम.एस.एम.ई की परिभाषा के विस्तार करने के सरकार के इस कुटिल कृत्य का एम.एस.एम.ई संघटनों ने विरोध करते हुए चिंता व्यक्त की है और सरकार के इस निर्णय को ‘‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए विचलित करने वाला, विनाशकारी और अनुपयुक्त करार दिया हैं। विरोध करने वालों में भा.ज.पा. और आरएसएस से संबद्ध अनुसागिंक संघटन लघु उद्योग भारती भी शामिल है।

‘हम व्यापारियों या खुदरा विक्रेताओं के खिलाफ नहीं हैं। कोई भी निर्माता व्यापारिक समुदाय के खिलाफ नहीं हो सकता क्योंकि वे वही हैं जो अंततः उपभोक्ताओं को उत्पाद पहुंचाने में मदद करते हैं। परन्तु व्यापारियों को निर्माताओं के साथ मिलाने के बजाय उनके क्षेत्र के लिए प्रासंगिक लाभ दिए जाने चाहिए।‘‘

उनका कहना था कि “खुदरा और थोक व्यापारियों को शामिल करने के नए प्रावधान के साथ, पीएसएल की उपलब्ध धनराशि विभाजित हो जाएगी और परिणामस्वरूप एम.एस.एम.ई की फंडिंग में कमी आएगी। यह एमएसएमआई को नकदी के गहरे संकट में डाल देगा।

“बैंकर आमतौर पर बड़ी मात्रा में उद्यमों को छोटे ऋण की पेशकश करने के बजाय उच्च-मूल्य वाले उधार देने का पक्ष लेते हैं। इसलिए, वे थोक व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं से प्राथमिकता वाले क्षेत्र के ऋण के तहत अपने लक्ष्यों को पूरा करना पसंद करेंगे, विशेष रूप से वे जो कार डीलरों और वितरकों आदि जैसे उच्च मूल्य की वस्तुओं से निपटते हैं।

इस कदम से विनिर्माण क्षेत्र में संकुचन होगा, जिसके परिणामस्वरूप कई सूक्ष्म और छोटी इकाइयां बंद हो जाएंगी, जिससे रोजगार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे आयात, रीपैकेजिंग और असेंबलिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में वृद्धि होगी, जो मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल, आत्मानिर्भर भारत अभियान जैसे सरकार के कार्यक्रमों के विपरीत होगा। इस मामले में सरकार की रणनीति अपनी नीतियों का का ही खंडन कर रही है।‘‘ उन्होनें सदन में सरकार की इस निति पद सागर खय्यामी का एक षेर पढा-कितने चेहरे लगे हैं चेहरो पर, क्या हकीकत है और सियासत क्या।

सांसद श्री डागी ने इस बिल की न केवल बिल की कुछ कमियां उजागर की अपितु सरकार को कुछ महत्वपूण सुझाव भी दिये। उन्होने कहा कि घरेलू फैक्टरिंग कंपनियों को अपने वैश्विक साथियों के बराबर लाने और क्रेडिट फाइनेंस को एमएसएमई के लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए बेस्ट ग्लोबल प्रेक्टिसेज को अपनाने की आवश्यकता है।

इसी प्रकार एमएसएमइ सेक्टर जो कोविड 19 महामारी के पहले से ही लिक्विडिटी क्रिसिस से जूझ रहा था, आज महामारी के पश्चात उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी है। सरकार ने इस सेक्टर के लिए जो राहत पैकेज घोषित किया था, आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत, उसमें मुख्यतया क्रेडिट फेसिलिटी को बढाया है। आज की अवस्था में, जहां डिमाण्ड में बहुत बडी कमी आ चुकी है, एमएसएमई को इसकी आवश्यकता नहीं है अपितु उन्हे आवश्यकता है ऐसे समाधान की जो उन्हे सीधा लाभ पहुंचा सके। उनके जो फिक्सड पेमेंट एण्ड चार्जेज हैं, जैसे कि बिजली के बिलों में छूट प्रदान करना, इस दिशा में एक कदम हो सकता है।

कोविड-19, महामारी के बाद जहां चीन से व्यवसाय करने में वैश्विक असंतोष बढा है, वहीं गुड्स एण्ड सर्विस में प्रमुख निर्यातक बनने, का भारत के लिए यह एक अच्छा अवसर साबित हो सकता है। ऐसे में सरकार को एक्सपोर्ट फैक्टरिंग की बढती हुई आवश्यकता पर भी ध्यान देना चाहिए।

वर्ष 2018 में, उस समय के वित्त मंत्री स्व. श्री अरूण जेटली जी ने अपने बजट भाषण में वादा किया था कि वो TReDS को जी.एस.टी डेटाबेस से लिंक करवाऐगें। ऐसा करने से एमएसएमइ में विष्वसनीय जानकारी का आदान-प्रदान होता जिससे कि निष्चित रूप से फैक्टरिंग व्यवसाय को बढ़ावा मिलता। परन्तु दुर्भाग्य से अब तक इस दिषा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे कि फैक्टरिंग व्यवसाय में उचित छूट दर का निर्धारण हो सके। बाज़ार में लिक्विडिटि प्रदान करने के लिए फाईनेंसर्स जो छूट दर फीस के रूप में चार्ज करते है उसका नियमन होना अत्यन्त आवष्यक है। ऐसा करने से छूट दर बाजार भाव से निर्धारित नहीं होगी एवं एमएसएमई को लाभ पहुंचायेगी।

संशोधन बिल भागीदारी के लिए सीमा को हटाकर फैक्टरिंग में भाग ले सकने के लिए एनबीएफसी के दायरे को बढ़ाता है। परन्तु एमएसएमई की परिभाषा बदल जाने से मौजूदा 7 एनबीएफसी-फैक्टर्स की संख्या में विस्तार के साथ अचानक हजारों संभावित फक्टोरिंग व्यवसाय के लिए रजिर्स्टड होगें इससे आरबीआई को एक विशाल नियामक जिम्मेदारी निभानी होगी। इससे आरबीआई पर अनावष्यक वित्त एंव प्रषासनिक भार बढेगा। यदि ‘फैक्टर‘ शब्द को ‘कंपनी‘ शब्द से बदल दिया जाये तो यह सभी एनबीएफसी को पंजीकरण की आवश्यकता नही होगी एवं यह उन्हे फैक्टरिंग करने में सक्षम बनाएगा।

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