कौन था पहला कावड़िया , किसने किया था सबसे पहले शिव लिंग का जल अभिषेक?

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समग्र समाचार सेवा,
नई दिल्ली, 29जुलाई।  श्रावण का महीना आते ही हर कोई शिव की भक्ति में झूमने लगता है। इस पावन त्यौहार में पूरे उत्तर भारत और अन्य राज्यो से कावड़िये शिव के पवित्र धामो में जाते है तथा वहां गंगाजल लाकर शिव का जलाभिषेक करते है ।

कावड़ियो को नंगे पैर बहुत दूर चलकर गंगा जल लाना होता है तथा शर्त यह होती है कि कावड़ये (शिव भक्त), कावड़ को जमीन पर नही रखेगा । इस प्रकार शिव भक्त अनेक कठिनाइयों का समाना करके गंगा जल लाते है तथा उससे शिव का जलाभिषेक करते है ।

परन्तु क्या आपने कभी यह सोचा है की आखिर वह कौन पहला व्यक्ति होगा जो सबसे पहला कावड़िया था तथा जिसने सबसे पहले भगवान शिव का जलाभिषेक कर उनकी कृपा प्राप्त करी व इस परम्परा का आरम्भ हुआ ?
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एक बार राजा ‘सहस्त्रबाहु’, ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचे तो ऋषि जमदग्नि (परशुराम के पिता) ने उनका बहुत अच्छी तरह से आदर सत्कार किया उनकी सेवा में किसी भी तरह की कमी नहीं आने दी । सहस्त्रबाहु ऋषि के आदर सत्कार से बहुत ही प्रसन्न हुआ परन्तु उसे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर एक साधारण एवं गरीब ऋषि उसके और उसकी सेना के लिए इतना सारा खाना कैसे जुटा पाया ?

तब उसे अपने सैनिकों से यह पता लगा कि ऋषि जमदग्नि के पास एक कामधेनु नाम की दिव्य गाय है, जिससे कुछ भी माँगो वह सब कुछ प्रदान करती है ।

जब राजा को यह ज्ञात हुआ कि इसी कामधेनु गाय के कारण ऋषि जमदग्नि संसाधन जुटाने में कामयाब हो पाया तो उस गाय को प्राप्त करने के लिए सहस्त्रबाहु के मन में लालच उतपन्न हुआ।

उसने ऋषि से कामधेनु गाय मांगी परन्तु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु गाय को देने से मना कर दिया । इस पर सह्त्रबाहु अत्यंत क्रोधित हो गया तथा उसने कामधेनु गाय को प्राप्त करने के लिए ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी ।

जब यह खबर परशुराम को पता लगी कि सहस्त्रबाहु ने उनके पिता की हत्या कर दी है तथा वह कामधेनु गाय को अपने साथ ले गया है, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने सहस्त्रबाहु के सभी भुजाओ को काट कर उसकी हत्या कर डाली। बाद में परशुराम ने अपनी तपस्या बल से अपने पिता ‘जमदग्नि’ को पुनः जीवनदान दिया । जब ऋषि को यह बात पता चली कि परशुराम ने सहस्त्रबाहु की हत्या कर दी है, तो उन्होंने इसके पश्चाताप के लिए परशुराम जी से भगवान शिव का जलाभिषेक करने को कहा ।

तब परशुराम अपने पिता की आज्ञा से कई मील दूर चलकर गंगा जल लेकर आये तथा आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का महाभिषेक किया व उनकी स्तुति की ।

इस तरह से जलाभिषेक की परपंरा का प्रारम्भ हुआ ।

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