डा; ईश्वर सिंह तेवतिया।
यह समय कितना कड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
सामना जिससे पड़ा है
चैन से हम सो रहे थे
मस्तियों में खो रहे थे
झाड़कर के हाथ सबसे
हाथ सबसे धो रहे थे
आत्मनिर्भर बन रहे थे
पांव नभ पर रख रहे थे
कामयाबी के फलों को
हम निरंतर चख रहे थे
एक करवट वक्त ने ली
दम्भ बिस्तर पर पड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
सामना जिससे पड़ा है
उम्र भर जिसके लिए हम
लड़ रहे थे मर रहे थे
हर तरह से हर जगह से
जेब अपनी भर रहे थे
दिख रहे बेकार वो अब
हैं रखे जो भी खजाने
अब लुटा कर उन सभी को
माँगते हैं दिन पुराने
अंत ये सोचा नहीं था
सामने जो आ खड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
सामना जिससे पड़ा है
खत्म सब सम्वेदनाएँ
हाले दिल किसको सुनाएँ
जो करीं मजबूत अब तक
टूटती सब वर्जनाएं
कोई भी शाश्वत नहीं है
रोज बतलाती कथाएँ
अब सुनाते हैं खुदी को
आज हम खुद की व्यथाएँ
जो ख़िलाफ़त कर रहा है
एक अपना ही धड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
सामना जिससे पड़ा है
दीखता था सब हमी से
आसमां तक इस जमीं से
क्या पता था हम मरेंगे
एक दिन ऐसी कमी से
आज पर्दा हट गया है
हर अंधेरा छंट गया है
सिर्फ अपना था कभी जो
आज सब में बंट गया है
खिल रहा था डाल पर जो
सूख कर वो भी झड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
सामना जिससे पड़ा है।
डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया