स्वतंत्रता सेनानी और हिंदुत्व विचारक वीर सावरकर की आज 138वीं जयंती, उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28मई। हिंदू धर्म और हिंदू आस्था से अलग, राजनीतिक ‘हिंदुत्व’ की स्थापना करने वाले विनायक दामोदर सावरकर की आज 28 मई को जयन्ती है। भारत के इस महान योद्धा को शत-शत नमन।…. विनायक दामोदर सावरकर ही वीर सावरकर के नाम जाने जाते है।

वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को हुआ था और वो एक राष्ट्रवादी नेता थे। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा (‘हिन्दुत्व’) को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। पेशे से सावरकर एक वकील थे लेकिन उनके अन्दर राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार के गुण भी समाहित थे। उन्होंने परिवर्तित हिन्दुओं के हिन्दू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाये। उन्होंने भारत की एक सामूहिक “हिन्दू” पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द भी बनाया।

विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। बचपन में ही उनके माता पिता चल बसे थे इसलिए उनका पालन पोषण उनके बड़े भाई गणेश नेकिया।
विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू किस्म के सावरकर ने कई कविताएँ भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद उनके बड़े भाई ने उन्हे उच्च शिक्षा दिलाई।
सन् 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। 1902 में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी॰ए॰ किया। इनके पुत्र विश्वास सावरकर एवं पुत्री प्रभात चिपलूनकर थी।

सावरकर ने एक पुस्तक लिखी ‘हिंदुत्व – हू इज़ हिंदू?’ इस किताब में उन्होंने पहली बार राजनीतिक विचारधारा के तौर पर हिंदुत्व का इस्तेमाल किया था। वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि सावरकर के हिसाब से भारत में रहने वाला व्यक्ति मूलत: हिंदू है और यही हिंदुत्व शब्द की परिभाषा है।

वर्ष 1936 की बात है। कांग्रेस के साथ सावरकर का मतभेद हुआ जिसके बाद पार्टी के भीतर विरोध की आवाज तेज होने लगी थी। पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा सावरकर का विरोध किया जाने लगा था। लेकिन कांग्रेस के ही एक व्यक्ति ने सबके आक्रोश का सामना करते हुए सावरकर का साथ दिया। यह शख्स मशहूर पत्रकार, शिक्षाविद, कवि और नाटककार पीके अत्रे थे। अत्रे ने सावरकर के लिए पुणे में अपने बालमोहन थिएटर के कार्यक्रम में स्वागत कार्यक्रम का आयोजन किया। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद हजारों की संख्या में लोग इस कार्यक्रम में आए। इसी दौरान, अत्रे ने सावरकर को वीर की उपाधि से संबोधित किया था और यहीं से विनायक सावरकर का वीर सावरकर के नाम से मशहूर हो गए।

1909 में लिखी पुस्तक ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857’ में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई घोषित किया। वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल भोगी। जेल में ‘हिन्दुत्व’ पर शोध ग्रंथ लिखा। 1937 में वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए। 1943 के बाद वे दादर, मुंबई में रहे। 9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे। आजादी के माध्यमों के बारे में गांधीजी और सावरकर का नजरिया अलग-अलग था।
दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा। 26 फरवरी 1966 को भारत के इस महान क्रांतिकारी का निधन हुआ। उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते हुए ही बीता। वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे।

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