नेगेटिविटी से कैसे बचें- भाग 2

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त्रिभुवन सिंह।

नेगेटिविटी से बचने की आवश्यकता ही क्यों है?
यह दूसरा प्रश्न है। हम जानते हैं कि हमारे शरीर में दो तरह का सिस्टम होता है जो हमारे नियंत्रण में नहीं रहता – उसे ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम कहते हैं। अर्थात यह ऑटोमैटिकली काम करता है – उसका काम है – शरीर की सुरक्षा, शरीर का पोषण और नेक्स्ट जनरेशन।
सृस्टि के लिए परम आवश्यक।

जो सिस्टम रक्षण करता है उसे कहते हैं – सिम्पथेटिक सिस्टम, और जो पोषण करता है उसे परसिम्पथेटिक कहते हैं। एक समय में एक सिस्टम ही ऑन होगा। ऑटोमैटिकली। दूसरा बन्द हो जाएगा।

आपने पढ़ा होगा कि जब हम रक्षात्मक मोड में होते हैं – तो उसे #फाइटयाफ्लाइट कहते हैं। इस मोड में आते ही सिम्पथेटिक सिस्टम ऑन हो जाता है। जिससे शरीर में जो केमिकल निकलते हैं वे आपकी सहायता करते हैं – लड़ने या भागने में। इसको ह्यपोथालमिक पिट्यूटरी एक्सिस कहते हैं।

लेकिन यदि यह केमिकल अधिक मात्रा में और निरंतर स्रावित होते रहें तो अनेक घातक शारीरिक और मानसिक बीमारियों का जन्म होता है यथा, डायबिटीज हाइपरटेंशन डिप्रेशन एंग्जायटी आदि।

नेगेटिविटी का अर्थ है कि आप किसी व्यक्ति, विचार, भाव या वस्तु की यथास्थिति से असहमत हैं। आप उसे बदलना चाहते हैं। और बदलने के लिए संघर्ष करना होगा। लड़ाई करना होगा। झगड़ा झंझट करना होगा। ऐसी स्थिति में आपका सुरक्षात्मक सिस्टम तो ऑन हो जाएगा लेकिन पोषण वाला सिस्टम ऑफ हो जाएगा। परिणाम क्या होगा? यह आपको पता है।

महर्षि पतंजलि कहते हैं:
“वितर्क हिंसादय: कृत कारित अनुमोदित लोभ क्रोध मोहपूर्वका मृदु मध्य अधिमात्रा दुख अज्ञान अनंत फला इति प्रतिपक्ष भावनम”।

अर्थात – मन में नेगेटिविटी के जन्म लेते ही उसे विपरीत विचारों की तरफ ले जाना आवश्यक है, क्योंकि नेगेटिविटी हिंसा आदि विचार, भाव या कर्म – अनंत अज्ञान और दुख देने वाले होते हैं – फिर वे अल्प मध्यम या तीव्र मात्राओं के लोभ, क्रोध या मोह द्वारा स्वयं किये गए हों, दूसरों से करवाये गए हों, या अनुमोदन मात्र ही किये हुए क्यों न हों।

यद्यपि समाज और कानून तो आपको तभी अपराधी सिद्ध करेगा जब आपने हिंसा की होगी। लेकिन व्यक्ति के स्तर पर हिंसा का विचार या भाव आते ही उसका सिम्पथेटिक सिस्टम ऑन हो जाता है। इसलिय योग विज्ञान विचार और कर्म में भेद नहीं करता। विचार बीज हैं। कर्म वृक्ष है उन्हीं विचारों का। अर्थात नेगेटिविटी का विचार मात्र ही हमारे सिस्टम में विष घोलने लगता है।

जिस मात्रा में लोभ मोह या क्रोध होगा – उसी मात्रा में नेगेटिविटी का जन्म होगा। उसी मात्रा में हमारे शरीर से केमिकल या #इमोशनल_टोक्सिन निकलेंगे।

ठीक उसी तरह स्वयं करने, दूसरों से करवाने या मात्र अनुमोदन करने में भी कोई अंतर नहीं होगा – परिणाम के रूप में।
इसीलिए नेगेटिविटी आने पर मन को विपरीत भाव या विचार में उलझाना अत्यंत आवश्यक है।
कोई विपरीत विचार और भाव का व्यक्ति यदि आपकी बात न माने तो कितनी बार मन करता है कि पटक के दे दना दन। दे दना दन। अभी कल पता चला कि एक सम्मानित चिकित्सक, जिनकी उम्र 56-57 साल की होगी, उन्होंने अपने ही हमउम्र पार्टनर को दे दनादन –।

आपके मन में विचार मात्र आया, परंतु यदि आप दे दना दन न भी कर पाए, तो भी माइंड और शरीर में केमिकल का स्राव शुरू हो गया। विष बहने लगा रक्त में।

तो जिसके बारे में आप नेगेटिव हैं उसकी हानि हो न हो – आप अपनी अनंत हानि कर बैठते हैं। करते रहते हैं। इसलिय ऐसी स्थित में प्रीतिकर भाव में मन को उलझावें। पढ़ने से कोई लाभ न होगा। अभ्यास से लाभ होगा।
तैरने के बारे में पढ़ने से आज तक कोई तैरना न सीख पाया। उसी तरह इस विषय में भी पढ़कर कुछ नहीं होगा। अभ्यास करना होगा।
त्रिभुवन सिंह

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