ज़िन्दगी का स्वांग

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*एम.एल. नत्थानी

अक्सर खुले गगन में मन

उन्मुक्त उड़ना चाहता है

बंदिशों की बेड़ियों से दूर

फिर विचरना चाहता है ।

मंजिल सामने खड़ी जैसे

ये पैरों में बेड़ियां होती है

अधूरी हसरतों के साथ

आंखों में लड़ियां होती हैं

बेताबी हंसती है मुझ पर

जिंदगी खुश्क रुलाती है

बंदिशों की बेड़ियां समेटे

ख्वाहिशें अश्क बहाती है

बंद लिफाफे सी जिन्दगी

कोई राहत बाकी नहीं है

तमन्नाएं ताउम्र की बेचैन

कोई चाहत बाकी नहीं है

*स्याह तिमिर…….
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घोर नैराश्य के क्षणों में

मन कंपित हो जाता है

अंधकार की चादर ओढ़े

तिमिर भी छंट जाता है।

उत्साह हीन परिश्रम से

श्रम यंत्रवत हो जाता है

उर्जित क्रियाशीलता से

मन मंत्रवत हो जाता है।

समस्या व विपत्ति कभी
भी स्थायी नहीं होते हैं
खुशी एवं दुख दोनों ही
सदा प्रभावी नहीं होते हैं।

विकट समस्या से उत्पन्न
भयावह यह अंधकार है

समाधान युक्त जीवन से
होता अर्थपूर्ण संसार है।

*जिंदगी का स्वांग……..
**************

जिजीविषा से लड़ते हुए

सारी उम्र तमाम हो गई

खुद को पहचानने में ही

जिंदगी की शाम हो गई।

तमाम उम्र जिंदगी मुझसे

सवालों को पूछती रही है

जवाबों को खोजने में ही

सारी उम्र गुजरती रही है

ढहराव के मुस्काते पल
को पाने अनुराग करते हैं

रिश्तों के उधेड़-बुन में ही

अनचाहे से स्वांग रचते हैं

*एम.एल. नत्थानी
रायपुर, छत्तीसगढ़
मो 9893333786

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