आह! जिंदगी से अहा! जिंदगी तक

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अंशु सारडा’अन्वि’।
पिछले रविवारीय लेख से इस लेख को लिखने के बीच न जाने नदियों में कितना पानी बह चुका होगा, न जाने कितने शवों को गंगा में यूं ही बहा दिया गया होगा, न जाने कितनों ने अपने प्रिय परिवार जनों को खोया होगा, कितनी ही जिंदगियां जीवन जी सकती थीं पर अब नहीं हैं और उन सब से बढ़कर न जाने कितनों ने जिंदगी के प्रति अपने विश्वास के दम पर इस जिंदगी को वापस भी पाया होगा। यूं तो बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा है खुद को ऐसे समय में सकारात्मक रख पाना और लिख पाना भी, जब हम लगातार अपने ऊपर एक तनाव सा महसूस कर रहे हैं और वह भी सामूहिक तनाव। यूं कहें कि अब हम थकने लगे हैं, हम उकताने लगे हैं, निराश, उदास, असहजता और अपराध बोध में जी रहे हैं। ऐसे ही इसी सप्ताह में मैंने अपने एक अजीज दोस्त को खोया है, बहुत सारे उधार छोड़ गया है वह मुझ पर, जिसकी भरपाई उसके जीते जी मैं नहीं कर पाई पर चूंकि उससे वादा है इसलिए अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को जितना सकारात्मक विचार और ऊर्जा दे सकूं उतना ही उस उधार का भार कम होता जाएगा। उस दोस्त की ही दो पंक्तियां उद्धृत करती हूं,
” ढूंढ रहा हूं जिंदगी की किताब का आख़री पन्ना,
कहीं पढ़ा था कि अंत में सब ठीक होता है।”

रॉबिन शर्मा की पुस्तक “द मोंक हू सोल्ड हिस फरारी” में पढ़ा था कि अगर आप एक आदमी को एक मछली देते हैं तो आप उसके एक दिन के खाने का प्रबंध कर रहे हैं पर अगर आप एक व्यक्ति को मछली पकड़ना है या पालना सिखाते हैं तो आप उसको जिंदगी भर के भोजन का प्रबंध करना सिखा रहे हैं। इस बात को हम अपने ऊपर यूं लागू करके देखते हैं कि अगर किसी ने आपको मुश्किल समय में सकारात्मक सोच दी है उन मुश्किलों से उबरने में, तो वह सकारात्मकता आपके पास सीमित समय के लिए ही होगी। अगर आपने उस सकारात्मक सोच को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया है तो यह आपके साथ-साथ औरों की जिंदगी को भी संवार देगी। कभी-कभी निराशा के इतने काले बादलों के बीच आशा की किरण को देख पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में असफलता हमारे हाथ लगना निश्चित ही है पर क्या हमें आज की असफलता से डर जाना चाहिए। नहीं! एप्पल के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स ने कहा था, “आज की असफलता में ही कल की सफलता जुड़ी हो सकती है।” इसलिए आज को मत नकारो, अपने दिल की सुनों और आत्मविश्वास बनाए रखो। हमें है भरोसा करना ही होगा कि हमारे आज के जीवन की यह घटना कहीं ना कहीं हमारे आगे के जीवन में कुछ अच्छा परिवर्तन जरूर लाएगी। अगर आप तयशुदा रास्ते से अलग रास्ता चल रहे हैं तो आप जरूर कुछ अलग कर पाएंगे और बस यही बात मायने रखती है। आज का यह परिवर्तन कल एक विचार बनकर जरूर हमारे सामने आएगा। एक- एक कड़ी को जोड़ते रहना ही एक सकारात्मक उम्मीद का आश्वासन होता है और इसी उम्मीद को कायम रखना है हमें जिंदगी भर। जिंदगी से एक बात जेहन में आई कि हमारी जिंदगी इस समय आह और अहा के बीच झूलती चल रही है। मात्र दो शब्द हैं आह! जिंदगी और अहा! जिंदगी में। पर सिर्फ एक मात्रा के हेरफेर से कितने अर्थ बदल जाते हैं न शब्दों के, उतने ही अक्षर, उतनी ही मात्राएं हैं दोनो शब्दों में। ना एक जमा बड़ा है और ना एक घटा कम है । एक शब्द भय को, डर को, बुरे को, खीझ को इंगित करता है तो दूसरा सकारात्मकता, सुख, उम्मीद और चाहत को। यही होता है शब्दों की ताकत का करिश्मा। इस तरह के भाषाई संक्रमण से उबरना बहुत जरूरी है। जिस तरह से मात्र एक मात्रा के रद्दोबदल से जिंदगी के मायने बदल जा रहे हैं, उसी तरह अपनी जिंदगी के किसी एक अवगुण को बदल लेने से या उसको प्रतिस्थापित कर देने से हमारी जिंदगी भी आह से अहा में बदल जाएगी। यह एक प्रयोग है, अब हमारे -आपके ऊपर है कि हम इसमें कितना सफल होते हैं। चाहे तो खुद को नकारात्मकता से जोड़ लें और चाहें तो मामूली बदलाव के साथ सकारात्मकता से जुड़ जाऐं।
अपने मित्र को खोने के साथ-साथ कुछ ऐसे भी मित्र रहें जिन्होंने अपने आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच के द्वारा इस जंग को जीता भी है। जो जा चुका है उसकी अच्छी यादों को याद करते हुए और जो वर्तमान में है उसकी अच्छाइयों को स्वीकार करते हुए ही इस जिंदगी को और आगे बढ़ाना है। यह भी मात्र एक संयोग ही कहा जाएगा कि कल 17 मई को विश्व दूरसंचार दिवस के साथ-साथ विश्व उच्च रक्तचाप दिवस भी है। महामारी के कारण जहां हम घरों में बंद रहने को मजबूर हैं, वहीं हमारा तनाव और चिंताऐं लगातार बढ़ती जा रही हैं जो कि सीधे हमारे ब्लड प्रेशर पर असर डालती हैं और हमारे ब्लड प्रेशर को बढ़ा दे रही हैं, जिसके कारण हमारे तनाव का ग्राफ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इन सब के बीच हम एक दूसरे के साथ, अपने परिवार के साथ निरंतर संपर्क में है क्योंकि हम एक दूसरे से संचार और तकनीकी माध्यमों के द्वारा जुड़े हुए हैं। इनकी हमारी जिंदगी में कितनी बड़ी अहमियत है इस समय में, यह हम इन दिनों देख भी रहे हैं और महसूस भी कर रहे हैं। घर के अंदर हैं फिर भी दुनिया के संपर्क में हैं। अगर उच्च रक्तचाप से दूरी बढ़ानी है तो संचार तकनीक का इस्तेमाल जरूर करें। अब चिट्ठी -पत्र जैसे माध्यम तो रहे नहीं कि हम दूसरे तक अपनी संवेदनाएं, अपने भाव और अपनी खुशी और गम को पत्र में लिख भेजें। यह काम अब फोन और मैसेज के जरिए हो रहा है, इसके जरिए ही एक दूसरे का हालचाल जानते रहें और संपर्क में बने रहे क्योंकि संपर्क एक सर्वश्रेष्ठ उपाय है अपने तनाव को, अपने रक्तचाप को नियंत्रण में रखने का। यह दौर कठिन जरूर है मगर गुजर जाएगा यह विश्वास भी है।

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