गजब की रचना- राजनीति पर तीखे व्यंग्य….

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तुम मायावती सी निर्धन,
मै राहुल सा समझदार प्रिये।
महाराष्ट्र के गठबंधन सा,
है तेरा मेरा प्यार प्रिये।।

मैं आरएसएस का उग्रवाद,
तुम आईएसआईएस का शान्तरूप।
मैं मंदिर का कर्णकटु शंखनाद,
तुम अजान सी मधुर झंकार प्रिये

तुम व्हाट्सएप, मैं टेलीग्राम,
तुम नेट बैंकिंग, मैं मनीऑर्डर।
तुम बुलेट ट्रेन सी द्रुतगामी,
मैं खच्चर-ऊंट सवार प्रिये।।

सोनिया सी त्यागमूर्ति हो तुम,
मैं हूं अटल सा पद लोलुप।
मैं नाम का पीएम मनमोहन,
तुम ही असली सरकार प्रिये।।

तुम रेणुका की सी स्मित मंद,
और मैं स्मृति का अटृहास।
तुम मर्यादित भाषा निरुपम की,
मैं आडवाणी वाचाल प्रिये।

तुम गगनचुम्बी पेट्रोल भाव,
मैं इंटरनेट सा सस्ता हूँ।
लेकिन हम दोनों से ही है,
इस दुनिया की रफ्तार प्रिये।।

तुम लालू जैसी पशुप्रेमी,
निर्दोष टूजी, सीजी बोफोर्स
तुम चिदम्बरम सी ईमानदार,
मुझसे लज्जित भ्रष्टाचार प्रिये।l

तुम सेकुलर कांग्रेस जैसी,
मैं साम्प्रदायिक बीजेपी सा।
तेरी काली करतूतों का,
मैं ढोता सर पर भार प्रिये।।

तुम दिग्विजय-थरूर चरित्रवान,
मैं योगी-मोदी सा पतित।
तुम औवेसी जैसी देशभक्त,
मैं द्रोही गुनहगार प्रिये।।

तुम मासूम हो पत्थरबाजों सी,
मैं तुझसे पिटता क्रूर सैनिक।
तू वोट बैंक का स्ट्रांग रूम,
मैं तेरे आगे लाचार प्रिये।।

तुम वेटिकन का लव लेटर,
तुम देवबंद का फतवा हो।
मैं खामोशी संत महंतों की,
और मिथ्या गीता सार प्रिये।।

मैं कश्मीरी पंडित अतिक्रमी,
तुम पीड़ित निरीह रोहिंग्या हो।
मैं रिफ्यूजी कैंप के हूँ काबिल,
तुम भारत की हकदार प्रिये।।

तुम भारत गौरव जिन्ना हो,
मैं भगतसिंह आतंकवादी।
भारत की आज़ादी के श्रेय पर,
है तेरा ही अधिकार प्रिये।

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