समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 6मई। देश में कोरोना की दूसरी लहर बेहद भयावह रूप ले रही है। कोरोना का विकराल रूप नियंत्रण में आने की बजाय अधिक विकराल होता जा रहा है। इस महामारी के खिलाफ पूरे देश में ‘जंग’ जारी है। संकट के इस दौर में अपनी जान को जोखिम में डालते हुए तमाम पत्रकार अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं और कोरोना को लेकर रिपोर्टिंग भी कर रहे हैं। ऐसे में कई पत्रकारों के कोरोनावायरस की चपेट में आने से मौत की खबरें भी सामने आई हैं, जबकि कई लोग विभिन्न अस्पतालों में उपचाराधीन है। हालांकि, कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इस महामारी पर विजय पाने में सफल रहे हैं। इन्हीं में वरिष्ठ पत्रकार और रिलायंस इंडस्ट्रीज के मीडिया निदेशक व प्रेजिडेंट उमेश उपाध्याय भी शामिल हैं। समाचार4मीडिया के साथ बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने बताया कि उनके लिए कोरोना से संक्रमण का दौर कैसा रहा और कैसे उन्होंने इस महामारी पर विजय पाई। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
आपको कैसे पता चला कि आप कोरोनावायरस से संक्रमित हैं?
मुझे पहले बुखार आया, जिसके बाद मैंने खुद को चेक करवाया तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। हालांकि मेरी पत्नी सीमा उपाध्याय, जो कि भारतीय एयरफोर्स में काम करती हैं, पहले ही कोरोना पॉजिटिव हो चुकीं थीं, तब मैं सुरक्षित था, क्योंकि उस समय मैंने अपना टेस्ट करवाया था, जो निगेटिव आया था। लेकिन जब मुझे बुखार आने लगा, तो मैंने चेक किया, जिसका रिजल्ट पॉजिटिव आया। मेरी पत्नी मेरे अस्पताल में भर्ती होने से पहले दस दिन तक अस्पताल में थीं। जिस दिन मैं अस्पताल में भर्ती होने गया, उसी दिन वे घर वापस आयीं थीं।
पता चलने पर सबसे पहले आपने क्या किया? आप सेल्फ आइसोलेट हुए या किसी डॉक्टर को दिखाया?
एक शाम को अचानक से मेरे गले में खराश होने लगी, आवाज बदलने लगी, इसके बाद मुझे खांसी भी आने लगी, यह सब देखते हुए मैंने तुरंत खुद को आइसोलेट किया। इसके बाद मैंने डॉक्टर से संपर्क किया, तो डॉक्टर ने कहा, ‘यह माइल्ड सा है’, इस पर मैंने डॉक्टर को बताया कि मैंने खुद को आइसोलेट कर लिया है। लेकिन अगले दिन मुझे बुखार भी आने लगा, जिसके बाद मैंने अपना कोरोना टेस्ट करवाया, जो पॉजिटिव आया। इसके बाद डॉक्टर से मेरा लगातार संपर्क बना रहा। डॉक्टर ने फोन पर मेरी बड़ी मदद की। वे हमेशा कॉल और वॉट्सऐप पर उपलब्ध रहते थे। डॉक्टर ने जिस तरह से मुझे सपोर्ट किया है, उसके लिए कोई भी शब्द कहना, कम होगा। लेकिन जब बुखार नहीं उतरा और ऑक्सीजन लेवल भी कम होने लगा, तो डॉक्टर ने मुझे अस्पताल में भर्ती हो जाने की सलाह दी, जिसके बाद मैं दिल्ली के सरिता विहार स्थित अपोलो अस्पताल में भर्ती हो गया, जहां मैं करीब 10 दिनों तक भर्ती रहा। इसके बाद जब मैं घर आया तो मैंने खुद को घर में आइसोलेट कर लिया। यह समय करीब 10 दिनों तक रहा। अस्पताल से पहले भी मैं करीब 4-5 दिनों तक घर में आइसोलेट रहा था, इस तरह से यह समय करीब 25 दिनों का रहा। यहां जानकारी के लिए बता दूं कि अस्पताल आपको रिपोर्ट निगेटिव आने पर ही घर नहीं भेजता है, बल्कि जब आप में कोरोना के लक्षण खत्म हो जाते हैं और आप स्टेबल हो जाते हैं, तभी आपको घर भेजा जाता है।।
इलाज के दौरान आपने खाने-पीने का किस तरह से ध्यान रखा और अन्य कौन सी सावधानियां बरतीं?
सबसे पहले आइसोलेशन में यह बहुत ही आवश्यक है कि कोई भी कोताही नहीं बरतें। यानी आइसोलेशन का अर्थ होता है एकदम अलग हो जाना। किसी से भी आपका संपर्क न हो। जब पहले मैं 4-5 दिन आइसोलेशन में गया, तो मेरे लिए यह एक तरह से नया जीवन था। मैंने स्वयं से दोबारा अपना काम करना सीखा। यानी जिन अलग बर्तनों का मैं प्रयोग करता था, उन्हें स्वयं साफ करना, जिस कमरे में मैं था, उस कमरे को साफ रखना। उसकी डिसइंफेक्टेंट के साथ सफाई करना और खुद के कपड़ों को साफ रखना और धोना।
देखिए, यह संक्रमण है। यह अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, मालिक-नौकर, उद्योगपति-कर्मचारी, बड़े-छोटे अफसर में फर्क नहीं करता। एक तरह से यह सभी चीजों को समतल करता है और मुझे इस बात का अहसास हुआ और मैंने सोचा कि ये सारे काम स्वयं करने हैं। मुझे इससे कष्ट नहीं हुआ, बल्कि मुझे लगा कि ये सभी काम तो कम से कम करने ही चाहिए। जब मैं अस्पताल में गया, तो मैं वहां डॉक्टर्स को देखता था, नर्सेज को देखता था, सफाईकर्मियों को देखता था। उनका काम काफी मुश्किल और जीवट भरा है। दिल्ली में गर्मियों के समय पीपीई किट पहनकर 12-12 घंटे नौकरी करना काफी मुश्किल है। जब आप पीपीई किट पहने होते हैं, तो आपको काफी पसीना आता है, आप इसे पहनकर चाय भी नहीं पी सकते, खाना भी नहीं खा सकते। कहने का मतलब है कि इसे पहनकर 12-12 घंटे ड्यूटी करना कोई आसान काम नहीं है।
आइसोलेशन के दौरान आपने अपना समय व्यतीत करने के लिए क्या किया?
इस दौरान काफी पढ़ना हुआ। ऑनलाइन तमाम किताबें उपलब्ध हैं। काफी इंट्रैस्टिंग सीरीज देखीं मैंने, जिन्हें देखने की काफी रुचि थी। इस दौरान मैंने जिन सीरीज को देखा, उनमें थी ‘द क्राउन’ (The Crown), ‘डेसिगनेटेड सर्वाइवर’ (Designated Survivor), ‘चर्नोबिल’ (Chernobyl), ‘द लास्ट जार’ (The Last Jar)। वहीं मिडिल ईस्ट को लेकर भी मैंने बहुत सीरीज देखीं, जिनमें से एक थी ‘द स्पाई’ (The Spy), जोकि इजरायल के एक असली जासूस की कहानी है। इसके अलावा मैं कमरे में टहलता था। कई बार लोगों को लगता है कि टहलने के लिए जगह चाहिए होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। मैंने कमरे के अंदर ही रहते हुए एक दिन में दस-दस हजार स्टेप किए। इसलिए कहना चाहूंगा कि व्यस्त रहने के लिए चीजों की जरूरत नहीं होती है।
वहीं मेरी पत्नी जब बीमार थीं, तो अस्पताल के वार्ड में ही पेंटिंग बनाना शुरू किया। उन्होंने इस बीच बहुत सारी पेंटिंग बनायीं। वे पहले से पेंटर नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कलर्स मंगवाए और पेंटिंग करना शुरू किया, ताकि वे पॉजिटिव रह सकें। इस तरह से वह खुद को व्यस्त रख सकीं।
इस दौरान परिजनों और अन्य करीबियों का व्यवहार कैसा रहा?
हमारा बड़ा परिवार है। कई मित्र हैं। सभी फोन करते थे और लगातार उनसे बात होती रहती थी। परिवार तो सबसे बड़ी ताकत और संबल है। मेरे सहयोगी और ऑफिस में काम करने वाले लोगों ने भी मेरा बहुत सहयोग किया। मेरे लिए यह एक नूतन जन्म था। जीवन में नई चीजों को देखने की एक नई दृष्टि आयी। मुझे इन पच्चीस दिनों में आत्मनिरीक्षण करने का समय मिला। बहुत सोचने का समय मिला। समाज कैसे काम करता है, मीडिया कैसे काम करती है, इसको देखने-सोचने का समय मिला।
संक्रमण से निजात मिलने पर अब कोरोना से जूझ रहे पीड़ितों को क्या कहना चाहते हैं?
सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि बहुत ज्यादा खबरों को न देखें, क्योंकि हमारे देश में बहुत ज्यादा हताश करने वाली खबरें आती हैं। जीवन में उम्मीद, आशा और आकांक्षा, ये मानव को जिंदा रखते हैं। इसलिए सारी चीजों का नियम से पालन करते हुए उम्मीद बनाए रखें कि आप अच्छे होंगे। विश्वास रखें कि आप दुनिया में अच्छे हैं और आपको लोग ठीक होते देखना चाहते हैं। ये भरोसा रखें कि आपके परिजनों को, आपके पड़ोसियों को, आपके मित्रों को, आपके सहयोगियों को आपकी आवश्यकता और चिंता है। चूंकि मैं मीडिया से हूं, इसलिए इस बात को फिर चिन्हित करना चाहता हूं और बहुत ही संजीदगी और गंभीरता से कहना चाहता हूं कि मीडिया में बहुत ज्यादा नकारात्मक दिखाना कि सब जगह त्राहि-त्राहि है। सबकुछ है, वो ठीक है, लेकिन उसको वस्तुपरक खबरें दिखाना चाहिए, न कि नमक-मिर्च लगाकर, क्योंकि जो आदमी अकेले कमरे में टीवी देख रहा है, उसको आप सिर्फ मौत का मंजर दिखा रहे हैं। यह ठीक नहीं है। आप ये भी दिखाइए कि कितने लोग ठीक हो रहे हैं, आप ये भी दिखाइए कि आशा की किरणें कितनी हैं। ऐसा मत दिखाइए कि सबकुछ तबाह हो गया है, नाश हो गया है, क्योंकि यदि अपने दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों से उनके जीवन की उम्मीद ले लेंगे, तो आप अपने साथ भी अन्याय करेंगे। अमेरिका में पांच लाख से ज्यादा लोग मारे गए हैं। मैं रोज अमेरिका के अखबार पढ़ता हूं। कहीं ऐसी रोज रोने वाली तस्वीरें नहीं दिखाई जाती। सत्य को बताते हैं वो, लेकिन सत्य को डराने के लिए नहीं बताते हैं, बल्कि लोगों को उम्मीद देने के लिए बताते हैं। खबरों को छिपाना नहीं है। खबरें और मीडिया रूदाली नहीं बन सकता, उसको जीवन से आशा को नहीं छीन लेना है। अफसोस की बात है कि हमारे देश में ऐसा हो रहा है।
साभार- समाचार4मीडियाडॉटकॉम