डॉ बाबा साहब आंबेडकर ने सामाजिक पुनर्गठन के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन को नई दिशा दी–श्री अर्जुन डांगले

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15अप्रैल।
समाज ने बनाए हुए जाति के नियम, असमानता तथा भेदभाव को दूर करते हुए डा बाबा साहेब आंबेडकर ने सामाजिक पुनर्गठन की संकल्पना रखी तथा वंचित समाज को मानसिक गुलामी से मुक्त करते हुए समाज परिवर्तन को नई दिशा दी, यह प्रतिपादन जेष्ठ आंबेडकरवादी विचारक अर्जुन डांगले ने आज किया.

महाराष्ट्र सूचना केंद्र (एम आई सी) की ओर से आयोजित महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला में आज ‘डा बाबासाहेब आंबेडकर और सामाजिक परिवर्तन की दिशा’ इस विषय पर 27 वे में व्याख्यान में वे बोल रहे थे. उन्होंने आगे कहां कि समाज व्यवस्था ने सत्ता, संपत्ति, प्रतिष्ठा से वंचित रख कर जीवन व्यतीत करने वाले लोगों को सिर पर छत भी मुहिया नहीं होने दी ना ही उन्हें रहने को जगह दी. ऐसे लोगों को डा आंबेडकर ने स्वाभिमान तथा अधिकार से परिचित कराया. इन वंचित, उपेक्षित सामाजिक घटकों को मानसिक गुलामी से बाहर निकालने के लिए तथा स्वावलंबी बनाने के लिए उन्होंने सामाजिक पुनर्गठन की संकल्पना रखी और उसे वास्तविक रूप दिया.

श्री डांगले ने आगे बताया कि डा आंबेडकर के सामाजिक पुनर्गठन की लड़ाई में 1927 का रायगढ़ जिला के महाड का प्रसिद्ध ‘चवदार तल्याचा सत्याग्रह’ (जिसे महाड सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है), 1930 में नासिक में काला राम मंदिर प्रवेश जैसी कई लड़ाइयां बाबा साहब ने लड़ी. वंचितों को स्वावलंबी जीवन दिलाने हेतु 1924 में उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा गठित की तथा ‘सीखो, संगठित हो जाओ और संघर्ष करो’ नारा दिया।

उन्होंने पुराने रीति- रिवाज, मानदंडों का त्याग करके स्वावलंबी शिक्षा प्राप्त करने और इस तरह से अपने स्वयं के पैरों पर खड़े रहने का संदेश दिया. वंचित तथा उपेक्षित सामाजिक घटकों के लिए शिक्षा के द्वार खोलने के उद्देश्य से उन्होंने पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की. इस सोसाइटी के माध्यम से मुंबई में सिद्धार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिंद महाविद्यालय की स्थापना की.

डा आंबेडकर का दृष्टिकोण काफी व्यापक था. दलितों के साथ ही उन्होंने श्रम मंत्री के रूप में काम करते हुए कर्मचारियों के लिए आठ घंटों का दिन निर्धारित किया. साथ ही महिलाओं को मातृत्व अवकाश दिलाने के भरसक प्रयास किए. उन्होंने सभी को कुशल शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज की स्थापना की. किसानों के लिए पूरक व्यवसाय उपलब्ध करवाने का विचार भी उन्होंने रखा और साथ ही जल प्रबंधन को लेकर भी महत्वपूर्ण विचार रखें.

श्री डांगले ने आगे कहा कि समाजशास्त्रज्ञ, शिक्षाशास्त्र, समाज सुधारक, विद्वान पंडित, राजनेता जैसे विभिन्न पहेलु डा आंबेडकर के व्यक्तिमत्व से निखरते थे. समाज के आखिरी घटक को आत्मनिर्भर जीवन दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने समानता, बंधुभाव और स्वाधीनता पर आधारित जीवन पद्धति को कार्यान्वित करने अथक संघर्ष किया तथा इन सभी विषयों पर डा आंबेडकर ने लेखन भी किया. इन्हींलेशन ऑफ कास्ट नामक पुस्तक के माध्यम से उन्होंने भारत में धर्म व्यवस्था का विश्लेषण किया, प्रॉब्लम ऑफ रूपी, बुद्ध एंड हिस धम्मा, रानाडे, गांधी एंड जीना जैसे पुस्तक भी उन्होंने लिखी जिसके माध्यम से भारतीय प्रजातंत्र तथा सुधारनावादी परंपरा बताई. उन्होंने कास्ट इन इंडिया शीर्षक तहत लिखे हुए निबंध में जाति व्यवस्था की समीक्षा की.

उन्होंने यह भी बताया कि ‘सबके लिए शिक्षा’ इस महात्मा फुले के विचार को डा आंबेडकर ने गति दी. छत्रपति शाहू महाराज ने 1920 के मानगांव परिषद में डा आंबेडकर को समर्थन घोषित किया. आगे चलकर फुले -शाहू के विचारों की परंपरा सशक्त हुई. जनता को जागृत करने के लिए राज दल, संघटना स्थापित किए और समाचार पत्र भी प्रकाशित किए. उन्होंने ब्रिटिश द्वारा 1938 में लाए हुए श्रमिक विरोधी काले कानून के खिलाफ मोर्चा खोला. स्वतंत्र मजूर पक्ष, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन, रिपब्लिकन पक्ष स्थापित किया और व्यापक काम किया. उनके समाचार पत्रों में मुकनायक, जनता, बहिष्कृत भारत का समावेश है, जिससे उन्होंने जनता में प्रबोधन किया और पुराने रीति-रिवाजों को छोड़कर आधुनिक मूल्य स्वीकार करने की सीख दी.

श्री डांगले ने यह भी कहा कि तत्कालीन द्विभाषी मुंबई राज्य को समाप्त कर मुंबई सहित संयुक्त महाराष्ट्र निर्माण करने के लिए संघर्ष में विचारक प्रबोधनकार ठाकरे ने बाबा साहब से मुलाकात की. इस भेंट में संयुक्त महाराष्ट्र के लड़ाई को डा अंबेडकर ने समर्थन देने की बात घोषित की, साथ ही इस लड़ाई के लिए सभी राज दलों को साथ आने का आव्हान भी उन्होंने किया.

भारतीय संविधान राष्ट्रभक्ति का प्रतीक

बाबा साहब ने भारत को दिया हुआ संविधान राष्ट्रप्रेम तथा राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है. अभिव्यक्ति स्वतंत्रता, समानता, बंधुभाव जैसे मूल्यों को शामिल कर समाज के आखिरी घटक तक आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से संविधान में अनेक प्रावधान किए गए हैं. बाबा साहब के राष्ट्र निर्माण का स्वप्न और उन्हें अपेक्षित भारत संविधान से झलकता है.

श्री डांगले ने आगे कहा कि डा आंबेडकर को एक जातीय पद्धति पर आधारित राजनीतिक दल स्वीकार नहीं था इसलिए उन्होंने प्रजातंत्र को बनाए रखने के लिए सभी जाति धर्मों के लोगों को इकट्ठा कर ‘रिपब्लिकन पार्टी’ की स्थापना की. इस दल के माध्यम से प्रजातंत्र को बनाए रखने के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी. उन्होंने आधुनिक मूल्यों से मेल खाने वाले बौद्ध धर्म को स्वीकारा. आधुनिक विचार का अधिष्ठान तथा विद्न्यान में विश्वास रखने वाले तथा महिलाओं को समानता देने वाले धम्म को उन्होंने आगे प्रोत्साहित किया.

डा आंबेडकर ने अनिष्ट प्रथाओं के विरुद्ध आवाज उठाई तथा देश पर प्रेम किया. उन्होंने आखिरी व्यक्ति को न्याय दिलवाने के लिए सदा प्रयास किया. प्रजातंत्र का सामाजिकीकरण करके आम लोगों को उनके अधिकार दिलाए. डा आंबेडकर के विचार यदि आचरण में लाए जाते हैं और यह अगली पीढ़ी तक पहुंचाए जाते हैं, तो यह बाबा साहब के लिए सही श्रद्धांजलि होगी, ऐसा भी श्री डांगले ने कहा.

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