महाराष्ट्र के सामाजिक परिवर्तन में भूमि संबंधी कानूनों का महत्वपूर्ण योगदान- शक्कर आयुक्त शेखर गायकवाड
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 22मार्च।
कुल कानून नए तत्व कसेल त्याची जमीन (अर्थात जो खेती करेगा उसकी भूमि) को साथ लेकर आया जिसके कारण राज्य के हजारों बेघर और भूमिहीन किसानों को खेती के लिए जमीन मिली. इस कारण भूमि सीलिंग कानून ने महाराष्ट्र के सकारात्मक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, यह प्रतिपादन राज्य के चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड ने आज यहां किया.
महाराष्ट्र परिचय केंद्र की ओर से महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला के चौथे व्याख्यान में वे ‘महाराष्ट्र में भूमि संबंधी कानून’ इस विषय पर बोल रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा प्रभाव भूमि से संबंधित कानूनों के कारण हुआ है.
उन्होंने बताया कि 12 करोड़ जनसंख्या वाले महाराष्ट्र में एक करोड़ लोग खेती करते हैं इसलिए किसानों के जीवन पर परिणाम करने वाले जमीन से संबंधित कानूनों पर गहन विचार-विमर्श आवश्यक हो जाता है. उन्होंने आगे कहा कि महत्वपूर्ण कानूनों का विचार किया जाए तो कुल कायदा और लैंड सीलिंग कानून के कारण महाराष्ट्र के सामाजिक परिवर्तन पर व्यापक परिणाम हुआ है.
उन्होंने यह भी कहा कि ‘खेती करने वाले की जमीन’ इस तत्व को लेकर महाराष्ट्र में आए कुल कानून के कारण जमीन धारण के विषय पर व्यापक परिणाम हुआ है. उन्होंने कहा कि कुल कानून की वजह से राज्य में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिले तथा जहागीरदार और वतनदारों को अपनी जमीन कुल के हाथों सौंप देनी पड़ी.
श्री गायकवाड़ ने यह भी कहा कि इन कानूनों के कारण राज्य के ग्रामीण जीवन पर गहन प्रभाव देखने को मिला और 48 एकड़ जमीन ही कुल की होगी इस तरह का नियम बना जो 1960 से 1975 तक अस्तित्व में रहा. श्री गायकवाड़ ने बताया कि 1939 में पहली बार कुल कानून अस्तित्व में आया. इसके पश्चात 1948 में इस कानून में संशोधन किया गया तथा 1956 में महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए. इसके अनुसार जो व्यक्ति दूसरे की जमीन कानूनी तरीके से खेती के लिए उपयोग करता है और बदले में जमीन के मालिक को हिस्सा देता है, वह कुल जमीन का कानूनी मालिक होगा. इस संशोधन के कारण ही 1 जुलाई 1997 को कृषि दिन माना जाता है.
सीलिंग कानून भूमिहीनों के लिए वरदान
अधिकतम भूमि धारण कानून अर्थात लैंड सीलिंग कानून 1961 में अस्तित्व में आया और राज्य में भूमि को लेकर परिवर्तन में सबसे महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ. इसके कारण किसी भी एक व्यक्ति को अधिकतम जमीन धारण करने की सीमा सुनिश्चित की गई. इस कानून के कारण जमींदारों को झटका लगा तथा राज्य भर में इस जमीन सुधार कानून के अच्छे परिणाम देखने में आए. इस कानून के कारण ही हजारों बेघर तथा भूमिहीन किसानों को खेती के लिए जमीन उपलब्ध हुई. इस कानून में वर्ष 1975 में और भी संशोधन किया गया जिससे कि यह अधिक कारगर बन सके.
महाराष्ट्र राज्य के अस्तित्व में आने से पूर्व ही भूमि विषय कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी. महाराष्ट्र में 400 वर्षों से वतनदारी व्यवस्था अस्तित्व में थी. कनिष्ठ गांव नौकर वतन, पुलिस पाटील इनाम, कुलकर्णी वतन, देशपांडे वतन, इस प्रकार 300 से 400 तक वतन राज्य में उस समय प्रचलित थे. आगे चलकर 1950 से 1952 के बीच महाराष्ट्र के अधिकतर इनामो को रद्द कर दिया गया. राज्य में देवस्थान इनाम को छोड़कर सभी प्रकार के वतन आज राज्य से नष्ट कर दिए गए हैं.
श्री गायकवाड ने यह भी बताया कि छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में रैयतवारी पद्धत राज्य में जमीन को लेकर एक महत्वपूर्ण कानून का रूप ले चुकी थी. ब्रिटिश काल में मनरो ने रैयतवारी पद्धत को प्रगतिशील तथा औपचारिक स्वरूप प्रदान किया. राज्य में जमीन से संबंधित कानून बनाते समय रैयतवारी व्यवस्था का अध्ययन किया गया और इसी में से नए कानूनों ने जन्म लिया. इसका परिणाम अलग-अलग कानूनों पर भी हुआ और साथ ही मानवीय जीवन पर भी इसके परिणाम देखने को मिले.
आयुक्त गायकवाड ने आगे बताया कि राजा -महाराजाओं के दौर से टैक्स के रूप में 1/6 जमीन राजस्व अस्तित्व में था. औरंगजेब के काल में यह १/४ अर्थात २५ प्रतिशत हुआ, जो कि दमनकारी माना गया. परिणाम स्वरूप, अगले डेढ़ सौ वर्षो तक लोग जमीन का राजस्व नहीं भर सके और अपनी जमीन छोड़कर चले गए. इसी के कारण जमीनदारी पद्धत मजबूत हुई.
श्री गायकवाड ने बताया कि महाराष्ट्र में जमीन से संबंधित कानून प्रगतिशील है. उन्होंने सिंचन अधिनियम 1976, नगर रचना कानून, अर्बन सीलिंग कानून, निजी जंगल कानून, 1966 में अस्तित्व में आए जमीन राजस्व कानून, 1971 के पंजीकरण नियम, भूमि संपादन तथा पुनर्वास कानून पर भी प्रकाश डाला.
आयुक्त गायकवाड़ ने बताया कि अपनी संपत्ति को लेकर व्यापक दृष्टिकोण रखने से सामान्य लोगों को भूमि संबंधी राजस्व कानून सरल लगेंगे. उन्होंने कहा कि जमीन से संबंधित कोई भी कानून बनाने का मुख्य उद्देश जनता प्रगतिवादी बने, जनता को कानून में हुए सुधार और अपनी जमीन की ओर ध्यान देने पर बाध्य करें, स्वयं में योग्य परिवर्तन करें, यह है. उन्होंने कानून संबंधी साक्षरता को आवश्यक बताते हुए कहा कि यदि महाराष्ट्र में जमीन से संबंधित मुकदमों को लेकर उचित तरीके से इस और अधिक लक्ष्य दिया गया तो मुकदमे तथा अयोग्य संवाद दूर होने में मदद भी होगी और राज्य के विकास को गति भी प्राप्त होगी.