समग्र समाचार सेवा
टिहरी, 8 मार्च।
शिव और शक्ति के मिलन के पर्व महाशिवरात्रि पर इस साल कई खास योग बन रहे हैं। 11 मार्च को पड़ रही महाशिवरात्रि के दिन शिवयोग, सिद्धियोग और घनिष्ठा नक्षत्र का संयोग आने से पर्व की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। ऐसे में महाशिवरात्रि पर्व की पूजा विधि-विधान के साथ करने से विशेष कल्याणकारी मानी जा रही है।
महाशिवरात्रि देवों के देव महादेव शिव-शंभू, भोलेनाथ शंकर की आराधना, उपासना का त्यौहार है। महाशिवरात्रि पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी को मनाया जाता है। 11 मार्च गुरुवार को त्रयोदशी और चतुर्दशी मिल रही हंै। वहीं महाशिवरात्रि का पर्व शिव योग, सिद्धि योग के दुर्लभ संयोग के साथ आने से और भी अधिक प्रभावकारी बताया जा रहा है। पुराणों में वर्णन है कि भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह इसी दिन हुआ था। भगवान शिव के विवाह में सिर्फ देव ही नहीं दानव, किन्नर, गंधर्व, भूत, पिशाच भी इस विवाह में शामिल हुए थे। महाशिवरात्रि पर शिवलिंग को गंगाजल, दूध, घी, शहद और शक्कर के मिश्रण से शिवलिंग को स्नान करवाया जाता है। फिर चंदन लगाकर फल-फूल, बेलपत्र, धतूरा, बेर इत्यादि अर्पित किए जाते हैं। रात्रि की प्रथम प्रहर की पूजा 7 बजकर 26 मिनट से शुरू होगी। निशिता काल की पूजा का समय रात्रि 12 बजकर 59 मिनट से 1 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। वैज्ञानिक दृष्टि से महाशिवरात्रि की