डूबते को मिलेगा तिनके का सहारा! कुशवाहा खेलेंगे राजनीति की नई पारी, मंत्री बनाये जाने की संभावना

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सुनील अग्रवाल
भागलपुर, बिहार।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और रालोसपा सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा के बीच बढ़ती नजदीकियां कुछ बयां कर रही है।चर्चा तो यह भी है कि शीघ्र ही कुशवाहा की पूरी की पूरी पार्टी का विलय जदयू में होने वाला है और कुशवाहा बिहार सरकार में मंत्री बनने वाले हैं।इस प्रकार बिहार में लव कुश की जोड़ी को नया मुकाम देने की तैयारी की जा रही है।
मालूम हो कि बिहार विधानसभा चुनाव के पूर्व तक महागठबंधन का हिस्सा रहे उपेन्द्र कुशवाहा कल तक यह कहते नहीं थकते थे कि वो महागठबंधन के लिए जहर तक पीने को तैयार हैं मगर महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति न होता देख महागठबंधन को धत्ता बता एकला चलो रे की राह पकड़ ली। नतीजा सबके सामने है। चुनाव में मुंह की खानी पड़ी और शून्य पर आउट होना पड़ा। मुख्यमंत्री बनने का सपना ख्वाब में तब्दील नहीं हो पाया।थक हार कर नीतीश कुमार के समक्ष खुद को आत्मसमर्पण करने को बाध्य होना पड़ा।
विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खरी-खोटी सुनाने वाले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर हमलावर होते ही कुशवाहा को नीतीश कुमार के नजदीक आने का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया।अब वो खोये जनाधार को पुनः प्राप्त करने वास्ते राजनीति की नयी पारी शुरू करने की तैयारी में हैं।हो भी क्यों न,जब ड़ूबते को मिल जाए तिनके का सहारा। ऐसे में नीतीश से अच्छा विकल्प मिलना कुशवाहा के लिए संभव भी तो नहीं था। मंत्री पद पा लेना कोई हंसी मजाक थोड़े है,वो भी बगैर चुनाव लड़े। हां यह अलग बात है कि उन्हें सौगात के तौर पर महामहिम राज्यपाल के कोटे से विधान परिषद भेजे जाने की योजना बनाई जा रही है।मतलब साफ है कि पीछे के रास्ते से सदन तक पहुंचाया जायेगा।
इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने घटते जनाधार और प्रतिष्ठा को पुनः हासिल करने की फिराक में लगे हुए हैं। ऐसे में कुशवाहा कारगर साबित हो सकते हैं। जाहिर तौर पर दोनों एक-दूसरे की आवश्यकता बन गए हैं। यूं भी नीतीश कुमार पर भाजपा का साया हमेशा मंडराते रहता है,जो उन्हें अंदर ही अंदर डराते रहा है। उन्हें यह अहसास तो हो ही गया है कि भाजपा के कृपा के सहारे ही आज सत्ता सुख भोगने का अवसर प्राप्त हुआ है। हालांकि भाजपा होशियारी दिखाते हुए उन्हें गहरा जख्म देने से भी नहीं चुंकी। यही कारण है कि उनके सबसे भरोसेमंद साथी सुशील मोदी को किनारे कर दिया और नकेल कसने वास्ते दो-दो उपमुख्यमंत्री तैनात किया गया।यह बात मुख्यमंत्री को निसंदेह अंदर ही अंदर खाये जा रहा होगा।समय दर समय भाजपा यह अहसास दिलाने से भी नहीं चुकती कि वो अब छोटे से बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है,जो उन्हें नागवार गुजरता होगा। एक तो भाजपा का साया,ऊपर से मजबूत विपक्ष,जो हमेशा झपटा मारने को तैयार, किसी को सहज कैसे रहने दे सकता है। क्या ऐसे समय में कुशवाहा उनके रथ के लिए सही सारथी साबित हो पायेंगे।

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