जाने प्रदोष व्रत तिथि, महत्व, व्रत कथा, पूजन विधि, शुभ मुहूर्त

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प्रदोष व्रत का शिवभक्तों को खास इंतजार रहता है. ये व्रत साल भर के मंगलकारी व्रतों से एक माना जाता है. इस व्रत को रखने से जीवन से हर तरह के कष्ट दूर होते हैं. भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।

प्रदोष व्रत तिथि
इस माह अगला प्रदोष व्रत 27 नवंबर, शुक्रवार को है. जब प्रदोष व्रत शुक्रवार को होता है तो उसे शुक्र प्रदोष व्रत भी कहा जाता है।

प्रदोष व्रत का महत्‍व
एकादशी की भांति ही प्रदोष व्रत को सौभाग्य का वरदान देने वाला व्रत कहा गया है. इस व्रत को करने से हर तरह की सुख-शांति जीवन में आती है.

प्रदोष व्रत कथा
एक नगर में तीन मित्र रहते थे– राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र. राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे, धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकि गौना शेष था. एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे. ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है.’ धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय कर लिया. तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं, ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता, लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया. ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो ज़िद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी. विदाई के बाद पति-पत्‍नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई. दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे. कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकुओं से पड़ा. जो उनका धन लूटकर ले गए. दोनों घर पहुंचे. वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया. उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा. जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. और कहा कि इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें. धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया जहां उसकी हालत ठीक होती गई. यानि शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए.

पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव का ध्यान करें. व्रत का संकल्प लें. महादेव का स्मरण करें. पूरे दिन व्रत रखें. प्रदोष की पूजा शाम के समय की जाती है. ये समय प्रदोष काल का यानी सूर्यास्त के समय का होता है. कहा जाता है कि इस समय भगवान शिव बेहद प्रसन्न होते हैं और नृत्य करते हैं. इसलिए प्रदोष काल में शिव आराधना की जाती है. ऊं नम: शिवाय का जप करें. सफेद फूल समर्पित करें. आंकड़ा, भांग, धतूरा समर्पित करें. पंचामृत, मिठाई, ऋतुफल, सूखे मेवे का भोग लगाएं. प्रदोष की कथा का वाचन करें.

त्रयोदशी तिथि
कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ – 07:46 एएम, नवम्बर 27
समाप्त – 10:21 एएम, नवम्बर 28
शुभ मुहूर्त
नवम्बर 27, 2020 शुक्रवार
पूजा मुहूर्त- 05:24 पीएम से 08:06 पीएम

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