अशोक कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम न केवल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए प्रचंड जीत लेकर आए, बल्कि उन्होंने राज्य की राजनीति में एक नए शक्ति केंद्र को भी स्थापित किया है: महिला मतदाता। भारत निर्वाचन आयोग के आधिकारिक आंकड़ों ने स्पष्ट कर दिया कि इस बार का चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। बिहार में कुल मतदान 66.91% दर्ज किया गया, जो 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव के बाद से सबसे अधिक है।
हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा लिंग-आधारित मतदान प्रतिशत में छिपा हुआ है। इस चुनाव में पुरुष मतदाताओं का मतदान 62.8% रहा, जबकि महिला मतदाताओं का मतदान रिकॉर्ड 71.6% रहा। यह एक 8.8% का जबरदस्त अंतर है, जिसने महिला मतदाताओं को पुरुषों की तुलना में न केवल अधिक सक्रिय साबित किया, बल्कि चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, इस बढ़े हुए मतदान ने सीधे तौर पर NDA के पक्ष में वोटों की बाढ़ ला दी। यह ‘साइलेंट वोटर’ कैसे NDA की सबसे मजबूत ढाल और तलवार बन गई? यह समझने के लिए इस ट्रेंड का विस्तृत विश्लेषण आवश्यक है।
डेटा का सच: महिलाओं ने क्यों पछाड़ा पुरुषों को?
बिहार के चुनावी इतिहास में दशकों तक पुरुष मतदाताओं का दबदबा रहा। 1962 में पुरुषों का मतदान 55% था, जबकि महिलाएं केवल 32% मतदान करती थीं। यह लैंगिक अंतर साल 2000 तक बना रहा। लेकिन 2005 के बाद से यह ट्रेंड बदलना शुरू हुआ और 2025 के चुनाव में यह पूरी तरह पलट गया।
रिकॉर्ड महिला भागीदारी: 71.6% महिला मतदान बिहार के इतिहास में महिला भागीदारी का अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है।
फेज़-वार सक्रियता: महिला मतदाताओं ने दूसरे चरण में तो और भी अधिक उत्साह दिखाया, जहां उनका मतदान 74.03% रहा, जबकि पुरुषों का मतदान 64.1% ही रहा। यह डेटा साबित करता है कि महिला मतदाता अब केवल अपने घरों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं और सत्ता के समीकरण बदलने की क्षमता रखती हैं।
राजनीतिक विश्लेषक इस बड़े अंतर को योजना-आधारित वोटिंग और स्थिरता की तलाश से जोड़ते हैं, जिसने उन्हें जाति और पारंपरिक समीकरणों से परे जाकर एक निर्णायक शक्ति बना दिया।
खामोश क्रांति: ‘लाभार्थी से भागीदार’ तक का सफर
महिला वोट बैंक को अब खामोश क्रांति की संज्ञा दी जा रही है। यह क्रांति अचानक नहीं आई, बल्कि पिछले डेढ़ दशक में नीतीश कुमार की सरकार द्वारा लाई गई लाभार्थी-केंद्रित योजनाओं की देन है। इन योजनाओं ने महिलाओं को केवल लाभ लेने वाला नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदार बना दिया।
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी माने जाने वाले इस महिला वोट बैंक ने जातिगत समीकरणों को तोड़ा और सीधे तौर पर उस सरकार को वोट दिया जिसने उन्हें सशक्तिकरण और सुरक्षा दी।
महिला वोट बैंक: नीतीश कुमार की ‘संजीवनी’
नीतीश कुमार ने कई योजनाएं लागू कीं, जिन्होंने महिला मतदाताओं का स्थायी विश्वास जीता:
जीविका दीदी मॉडल: जीविका स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से राज्य की लाखों महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया गया। ये जीविका दीदी अब ग्रास-रूट स्तर पर न केवल उद्यमिता की मिसाल हैं, बल्कि NDA के प्रचारक के रूप में भी काम करती हैं। इनके खाते में सीधे ₹10,000 की वित्तीय सहायता भेजना एक बड़ा चुनावी दांव साबित हुआ।
पंचायती राज और नौकरियों में आरक्षण: पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50% आरक्षण और सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण ने महिलाओं को केवल राजनीतिक और प्रशासनिक हिस्सेदारी ही नहीं दी, बल्कि यह भी बताया कि नीतीश कुमार महिलाओं के लिए सर्वाधिक प्रतिबद्ध नेता हैं।
शिक्षा पर सीधा निवेश: मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, पोशाक योजना और कन्या उत्थान योजना ने बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया, जिससे महिला मतदाताओं के बीच एक सकारात्मक जनरेशनल झुकाव पैदा हुआ।
सुरक्षा, सुशासन और शराबबंदी का फैक्टर
महिला मतदाताओं के लिए कानून-व्यवस्था (Law and Order) और सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है।
‘जंगलराज’ का डर बनाम सुशासन: महागठबंधन के प्रचार में RJD के हावी होने के कारण ‘जंगलराज’ की वापसी का नैरेटिव प्रबल हुआ। महिला मतदाताओं, विशेषकर मध्यम वर्ग और निम्न-पिछड़े तबके की महिलाओं ने, सुरक्षित माहौल और सुशासन को प्राथमिकता दी।
शराबबंदी का प्रभाव: शराबबंदी (Liquor Prohibition) भले ही आर्थिक रूप से विवादास्पद रही हो, लेकिन इसने घरेलू हिंसा और पारिवारिक कलह को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शराबबंदी को महिला मतदाताओं ने सीधे तौर पर अपने हित से जोड़कर देखा और इसलिए नीतीश कुमार के इस फैसले का समर्थन किया।
NDA की डबल इंजन योजनाएं और सीधा लाभ
NDA की जीत में केंद्र सरकार की योजनाओं ने भी उत्प्रेरक का काम किया। डबल इंजन की सरकार के तहत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाएं सीधे महिलाओं को लाभ पहुँचा रही थीं:
उज्ज्वला योजना: गरीब परिवारों की महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन मिलने से रसोई की समस्याओं में कमी आई।
जन धन और डीबीटी: जन धन खाते और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के माध्यम से महिलाओं को वित्तीय समावेशन मिला, जिससे वे परिवार के वित्तीय फैसलों में भागीदार बनीं।
आवास और शौचालय योजनाएं: घर और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं ने महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया, जिससे उनका विश्वास NDA में गहरा हुआ।
ये योजनाएं जाति या धर्म की सीमाओं को तोड़ती हैं, सीधे लाभार्थी वर्ग को टारगेट करती हैं, और महिला मतदाताओं ने इस विकास की भाषा को समझा और वोट की भाषा में जवाब दिया।
महागठबंधन कहाँ चूका? छवि का बोझ और महिला विमुखता
महागठबंधन, खासकर RJD, महिला मतदाताओं के इस नए, सशक्त समूह को समझने में पूरी तरह विफल रहा।
जाति केंद्रित टिकट वितरण: RJD ने अपने कोटे में यादव उम्मीदवारों को अधिक टिकट देकर गैर-यादव और अति-पिछड़ी महिला मतदाताओं को खुद से दूर कर लिया।
सुरक्षा पर अस्पष्टता: महागठबंधन के नेता ‘जंगलराज’ के नैरेटिव का प्रभावी ढंग से खंडन नहीं कर पाए। महिला सुरक्षा के सवाल पर उनकी अस्पष्टता ने, पुरुषों की तुलना में 8.8% अधिक महिला मतदाताओं को NDA के पक्ष में लामबंद होने का मौका दे दिया।
वोट ट्रांसफर की विफलता: महागठबंधन के पास कोई समान रूप से प्रभावी योजना या महिला केंद्रित मॉडल नहीं था जो नीतीश कुमार के ‘जीविका मॉडल’ का मुकाबला कर सके।
निष्कर्ष और भविष्य की राजनीति
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 71.6% महिला मतदान एक चुनावी आँकड़ा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश है। यह संदेश साफ है: बिहार की महिला वोटर अब किंगमेकर बन चुकी हैं और वे अब जाति या भावनात्मक अपील से नहीं, बल्कि सुरक्षा, सुशासन और सीधे वित्तीय लाभ के आधार पर वोट करती हैं।
NDA की जीत में महिला मतदाताओं का यह मजबूत समर्थन एक निर्णायक कारक साबित हुआ है। यह बिहार की भविष्य की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। अब हर राजनीतिक दल को अपनी रणनीति के केंद्र में महिला कल्याण और सशक्तिकरण को रखना होगा, क्योंकि यह ‘साइलेंट फोर्स’ ही अब बिहार की सत्ता की दिशा तय कर रही है।