पूनम शर्मा
केरल की पिनराई विजयन सरकार एक बार फिर सबरीमला मंदिर विवाद को लेकर घिर गई है। राज्य के प्रमुख हिन्दू संगठनों ने सरकार से माँग की है कि वैश्विक अयप्पा संगम से पहले युवा महिलाओं के प्रवेश से जुड़े सभी मुकदमों को वापस लिया जाए। उनका कहना है कि सरकार ने पहले आश्वासन दिया था कि परंपराओं की रक्षा से जुड़े मुकदमे हटाए जाएंगे, लेकिन अब पीछे हट रही है।
हिन्दू संगठनों का संयुक्त दबाव
थंत्रि समाज, नायर सर्विस सोसायटी (NSS), श्री नारायण धर्म परिपालना योगम (SNDP) और पंडालम पैलेस सहित कई संगठनों ने सामूहिक रूप से यह माँग तेज कर दी है। अयप्पा सेवा संघम और योगक्षेम सभा जैसे संगठनों ने भी सरकार पर अनुचित रवैया अपनाने का आरोप लगाया। पूर्व मिजोरम राज्यपाल कुम्मनम राजशेखरन ने कहा कि सरकार द्वारा मुकदमे वापस न लेना हिन्दू समाज के साथ अन्याय है।
“परंपरा की रक्षा” और आध्यात्मिक कारण
सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश को लेकर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद राज्य में भारी विरोध हुआ था। हिन्दू संगठनों का कहना है कि यह मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा और अयप्पा भक्ति की आस्था पर चोट है।
परंपरा के पक्षधर यह भी तर्क देते हैं कि सबरीमला जैसे कुछ मंदिरों के गर्भगृह और पूजा स्थल विशिष्ट ऊर्जा व “तनाव-क्षेत्र” (energy fields) वाले होते हैं। उनका दावा है कि यह ऊर्जा कुछ आयु-वर्ग की महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं होती, और इसी कारण सदियों से वहां उनकी एंट्री नहीं होती थी। उनका मानना है कि यह धार्मिक भेदभाव नहीं बल्कि आध्यात्मिक विज्ञान और ऊर्जा-संतुलन का प्रश्न है, जिसे आधुनिक कानून से नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझना चाहिए। वे कहते हैं कि इस तरह की पारंपरिक व्यवस्था में दखल देना एक पूरी परंपरा की आत्मा को प्रभावित करता है।
अयप्पा संगम और राजनीतिक दबाव
20 सितंबर को पम्पा में आयोजित होने वाले वैश्विक अयप्पा संगम को लेकर तैयारी जोरों पर है। यह कार्यक्रम देवस्वोम बोर्ड और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जा रहा है। वहीं, सबरीमला कर्म समिति ने 22 सितंबर को पंडालम में ‘सबरीमला प्रोटेक्शन मीटिंग’ बुलाने की घोषणा कर दी है, ताकि इस मुद्दे को और मुखर बनाया जा सके।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भी इस मामले में सरकार की कथित “दोहरी नीति” को मुद्दा बनाने का ऐलान किया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि सरकार चुनावी लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं से खेल रही है।
सरकार का रुख और नाराज़गी
सरकार ने साफ कर दिया है कि अयप्पा संगम के पहले कोई भी केस वापस नहीं लिया जाएगा। साथ ही उसने देवस्वोम बोर्ड की उस घोषणा पर भी नाराज़गी जताई है, जिसमें बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे को अपडेट करने की बात कही थी। सरकार का कहना है कि अयप्पा संगम के मंच पर सबरीमला रीतियों या सुप्रीम कोर्ट केस पर चर्चा नहीं होगी। कार्यक्रम की शुरुआत संगम के महत्व को दर्शाने वाली प्रस्तुति और पैनल चर्चाओं से होगी।
मंदिर खुला, भक्त उमड़े
इस विवाद के बीच सोमवार शाम को सबरीमला मंदिर कन्निमास पूजा के लिए खुल गया। शाम 5 बजे मंदिर के प्रधान पुरोहित अरुण कुमार नंबूदिरी और थंत्रि कंदरार महेश मोहनार की मौजूदगी में दीप प्रज्वलित कर द्वार खोले गए। हजारों श्रद्धालु भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए पहुँचे।
मंदिर प्रतिदिन सुबह 5 बजे से दर्शन के लिए खुला रहेगा। मंदिर के 18वें पवित्र सीढ़ी के नीचे अग्नि प्रवाहित करने की परंपरागत प्रक्रिया भी पूरी की गई।
व्यापक असर
सबरीमला विवाद केवल धार्मिक भावना का मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह अब केरल की राजनीति का अहम केंद्र बन गया है। विजयन सरकार को इस मुद्दे पर लगातार विपक्ष और धार्मिक संगठनों से तीखी आलोचना झेलनी पड़ रही है। आने वाले दिनों में अयप्पा संगम और समानांतर मीटिंग के चलते यह विवाद और भी उभर सकता है।
निष्कर्ष
वैश्विक अयप्पा संगम के निकट आते-आते सबरीमला मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। हिन्दू संगठन परंपरा की रक्षा के नाम पर केस वापस लेने की माँग कर रहे हैं, जबकि सरकार अपने रुख पर अडिग है। उनका तर्क है कि सबरीमला जैसे मंदिरों में महिलाओं की प्रवेश-प्रतिबंध परंपरा भेदभाव नहीं बल्कि गहरे आध्यात्मिक कारणों और विशिष्ट ऊर्जा संरचनाओं पर आधारित है। इस विवाद ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाया है: क्या आध्यात्मिक या पारंपरिक व्यवस्था को आधुनिक कानून और राजनीति के दबाव में बदला जाना चाहिए? इसका उत्तर ही आने वाले दिनों में केरल की धार्मिक और राजनीतिक दिशा तय करेगा।