RSS की शाखा में सबको जगह, लेकिन पहचान छोड़नी होगी: मोहन भागवत
100 साल पूरे होने पर संघ प्रमुख का बड़ा बयान, संघ सबका है, बस भारत माता के पुत्र बनकर आइए।
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मोहन भागवत बोले, संघ में न ब्राह्मण, न मुसलमान, न ईसाई सब भारत माता के पुत्र हैं।
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कहा मुस्लिम और ईसाई भी शाखा में आते हैं, पर हम उनकी गिनती धर्म के आधार पर नहीं करते।
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पाकिस्तान पर कहा भारत शांति चाहता है, पर जब तक वह नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा, जवाब ज़रूर मिलेगा।
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1971 युद्ध का ज़िक्र करते हुए बोले पाकिस्तान को याद रखना चाहिए कि भारत से सहयोग करना ही उसके लिए बेहतर है।
समग्र समाचार सेवा
बेंगलुरु, 12 नवंबर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसी क्रम में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में आयोजित एक विशेष समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शिरकत की। समारोह के दौरान जब उनसे सवाल पूछा गया कि “क्या मुस्लिमों को संघ में शामिल होने की अनुमति है?” तो उन्होंने बेहद दिलचस्प और स्पष्ट जवाब दिया जिसे सुनते ही पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
मोहन भागवत ने कहा,
> “संघ में किसी भी जाति या पंथ को अलग पहचान के आधार पर नहीं देखा जाता। कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र कोई मुसलमान या ईसाई किसी को भी उसकी पहचान के कारण संघ में विशेष स्थान नहीं मिलता। संघ में आने के लिए केवल एक पहचान होती है भारत माता का पुत्र और हिन्दू समाज का सदस्य।”
उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि,
> “संघ में मुसलमान भी आते हैं, ईसाई भी आते हैं, जैसे तथाकथित हिन्दू समाज की विभिन्न जातियों के लोग आते हैं। लेकिन हम किसी की गिनती नहीं करते, न यह पूछते हैं कि कौन किस धर्म या जाति का है। शाखा में जब कोई आता है, तो वह अपनी विशेष पहचान बाहर छोड़कर केवल भारत माता के पुत्र के रूप में आता है। संघ का तरीका ही यही है सबको जोड़ना, बाँटना नहीं।”
मोहन भागवत ने कहा कि हिंदुत्व किसी धर्म-विशेष का नाम नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक पहचान और जीवन दर्शन है। “हम सब इस भूमि के संतान हैं चाहे वह किसी भी पूजा-पद्धति को मानने वाला क्यों न हो,” उन्होंने कहा।
पाकिस्तान पर कड़ा रुख
कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख ने पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति पर भी सख्त बयान दिया। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा शांति चाहता है, लेकिन पाकिस्तान बार-बार अशांति फैलाने का प्रयास करता है।
> “हम पाकिस्तान के साथ शांति चाहते हैं, लेकिन जब तक वह भारत को नुकसान पहुंचाने में संतोष महसूस करता रहेगा, तब तक उसे कड़ा जवाब देना ही होगा,” उन्होंने कहा।
भागवत ने आगे कहा कि पाकिस्तान को 1971 का सबक याद रखना चाहिए, जब उसने भारत पर आक्रमण किया था और अपनी 90,000 सैनिकों की पूरी सेना खो दी थी। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पाकिस्तान अपने पुराने रवैये पर कायम रहा, तो उसे फिर वही परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
> “भारत से सहयोग करना, प्रतिस्पर्धा या संघर्ष करने से बेहतर है। पर अगर वे समझने को तैयार नहीं हैं, तो हमें उसी भाषा में जवाब देना होगा जो वे समझते हैं,” उन्होंने जोड़ा।
शताब्दी वर्ष का संदेश
संघ प्रमुख ने 100 वर्षों की यात्रा को भारत के सामाजिक एकीकरण और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि संघ ने जाति, भाषा, धर्म और प्रांत की सीमाओं को पार कर एक ऐसे भारत की कल्पना की है जहाँ हर नागरिक ‘भारत माता का पुत्र’ बनकर समान रूप से सम्मानित हो।
> “संघ का उद्देश्य किसी को अलग करना नहीं, बल्कि सबको साथ लाना है। इसी भावना से संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है,” उन्होंने कहा।
निष्कर्ष
मोहन भागवत का यह बयान एक ओर समावेशन की दिशा में संदेश देता है, वहीं दूसरी ओर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा को भी मज़बूती से रेखांकित करता है। उनके इस बयान पर देशभर में चर्चा तेज़ हो गई है कुछ लोगों ने इसे “संघ का खुला दरवाज़ा” बताया, जबकि कुछ ने “पहचान छोड़ने की शर्त” पर सवाल उठाए हैं।