मराठा आरक्षण आंदोलन : महिला पत्रकारों से दुर्व्यवहार मीडिया ने दी बहिष्कार की चेतावनी

महिला पत्रकारों से दुर्व्यवहार मीडिया ने दी बहिष्कार की चेतावनी

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा 
मुंबई ,1 सितंबर –मुंबई के आज़ाद मैदान में चल रहे मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान सोमवार को हालात तब बिगड़ गए जब कई महिला पत्रकारों ने दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की शिकायत की। इस घटना ने मीडिया जगत में नाराजगी पैदा कर दी है और प्रेस संस्थानों ने आंदोलनकारियों को चेतावनी दी है कि यदि पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की गई तो वे आंदोलन की कवरेज का बहिष्कार करेंगे।

क्या हुआ आज़ाद मैदान में?

सूत्रों के अनुसार, मराठा आरक्षण की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे कुछ लोगों ने कवरेज कर रहीं महिला पत्रकारों के साथ अभद्र व्यवहार किया। कई पत्रकारों ने आरोप लगाया कि उनके साथ धक्का-मुक्की हुई, छींटाकशी की गई और उन्हें धमकाने की भी कोशिश की गई। यह स्थिति तब और गंभीर हो गई जब कुछ पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती साझा की।

पत्रकार संगठनों का सख्त रुख

महाराष्ट्र के प्रमुख प्रेस संगठनों और महिला पत्रकारों की यूनियन ने इस घटना की निंदा की है। उन्होंने कहा कि आंदोलन चाहे किसी भी समुदाय का हो, मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
मीडिया संस्थान ने स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई जाती हैं, तो सभी बड़े चैनल और अखबार मराठा आंदोलन की कवरेज बंद कर देंगे।

पुलिस की भूमिका पर सवाल

पत्रकारों का आरोप है कि घटना के समय पुलिस मौके पर मौजूद थी, लेकिन उन्होंने हस्तक्षेप करने में ढिलाई बरती। इससे आंदोलनकारियों का मनोबल और बढ़ गया। मीडिया संगठनों ने मुंबई पुलिस से तत्काल कार्रवाई और महिला पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है।

आंदोलन और तनाव

मराठा आरक्षण का मुद्दा लंबे समय से महाराष्ट्र की राजनीति में संवेदनशील विषय रहा है। मराठा समुदाय शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है। आज़ाद मैदान में हो रहे इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए हैं। लेकिन पत्रकारों से दुर्व्यवहार की घटना ने आंदोलन की छवि को धक्का पहुंचाया है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

इस घटना पर विपक्षी दलों ने भी चिंता जताई है। नेताओं ने कहा कि लोकतांत्रिक आंदोलन का स्वरूप हिंसक या असहिष्णु नहीं होना चाहिए। वहीं, कुछ नेताओं ने मीडिया से संयम बरतने और स्थिति को भड़काने वाले रिपोर्टिंग से बचने की अपील की है।

निष्कर्ष

महिला पत्रकारों से दुर्व्यवहार की यह घटना न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर भी सवाल उठाती है। यदि आंदोलनकारियों और पुलिस प्रशासन ने तुरंत सुधारात्मक कदम नहीं उठाए, तो मीडिया का बहिष्कार आंदोलन के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।

यह प्रकरण बताता है कि लोकतंत्र में पत्रकारिता और आंदोलनों, दोनों को मर्यादा और सम्मान की सीमाओं में रहना चाहिए।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.