भारत-फ्रांस रिश्तों की कूटनीतिक मजबूती

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पूनम शर्मा

हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच हुई बातचीत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत और फ्रांस के रिश्ते केवल द्विपक्षीय सहयोग तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वैश्विक कूटनीतिक परिदृश्य को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यूक्रेन युद्ध, गाज़ा संकट, अमेरिका और रूस की टकराहट और चीन के आक्रामक रवैये के बीच भारत और फ्रांस का सहयोग “रणनीतिक साझेदारी” से आगे बढ़कर “वैश्विक सह-निर्माण” का स्वरूप लेता जा रहा है।

बहुध्रुवीय विश्व में भारत की भूमिका

आज की दुनिया एकतरफा शक्ति संतुलन से निकलकर बहुध्रुवीय यथार्थ में बदल रही है। अमेरिका की नीतियाँ, रूस की सैन्य सक्रियता और चीन का आर्थिक व सामरिक विस्तार एक नए तनावपूर्ण भू-राजनीतिक समीकरण को जन्म दे रहे हैं। इस परिस्थिति में भारत ने “बहु-संरेखीय नीति” (Multi-Alignment Policy) अपनाई है—यानी हर शक्ति केंद्र से संवाद और सहयोग, बिना किसी एक गुट के साथ पूरी तरह से बंधे हुए।

प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों की हालिया बातचीत इसी नीति की झलक पेश करती है। भारत रूस से ऊर्जा खरीद जारी रखता है, अमेरिका के साथ तकनीकी और रक्षा सहयोग बनाए हुए है और यूरोप, खासकर फ्रांस, के साथ साझेदारी को और गहरा कर रहा है।

फ्रांस क्यों महत्वपूर्ण है?

भारत के लिए फ्रांस का महत्व कई कारणों से है—

रक्षा सहयोग: राफेल लड़ाकू विमानों से लेकर स्कॉर्पीन पनडुब्बियों तक, फ्रांस भारत का भरोसेमंद रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है। दोनों देश भविष्य में भी संयुक्त रूप से रक्षा उत्पादन और तकनीकी सहयोग बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं।

परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी: सिविल न्यूक्लियर सहयोग भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अहम है। फ्रांस के पास उन्नत तकनीक और अनुभव है जो भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य में मददगार होगा।

यूरोप से सेतु: ब्रेक्सिट और जर्मनी की आर्थिक चुनौतियों के बीच, फ्रांस यूरोप का सबसे सक्रिय कूटनीतिक खिलाड़ी है। भारत-फ्रांस रिश्ते यूरोपीय संघ के साथ भारत के गहरे संबंधों का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific): चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच, फ्रांस और भारत मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मजबूती दे रहे हैं। फ्रांस का इस क्षेत्र में अपना भूभाग और नौसैनिक उपस्थिति है, जिससे भारत को एक सशक्त साझेदार मिलता है।

वैश्विक संकटों पर साझा दृष्टिकोण

मैक्रों ने मोदी से बातचीत में यूक्रेन युद्ध और गाज़ा संकट पर विचार साझा किए। भारत ने हमेशा से यह रुख रखा है कि युद्ध का समाधान युद्धक्षेत्र में नहीं, बल्कि बातचीत की मेज पर निकलेगा। फ्रांस भी इसी नीति का समर्थक है। यह समान सोच दोनों देशों को पश्चिम और रूस के बीच पुल की भूमिका निभाने का अवसर देती है।

साथ ही, जब अमेरिका और चीन दोनों अपने-अपने दबाव के ज़रिए भारत को झुकाने की कोशिश कर रहे हैं, तब फ्रांस भारत का ऐसा साझेदार है जो “समानता” के आधार पर सहयोग करता है। यही वजह है कि भारत-फ्रांस संबंधों में “विश्वास” और “साझेदारी” की गहराई दिखती है।

व्यापार और नई तकनीक की दिशा

दोनों नेताओं ने भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (India-EU FTA) पर जल्द निष्कर्ष तक पहुँचने पर सहमति जताई है। यह समझौता भारत को यूरोपीय बाज़ारों तक आसान पहुंच देगा और फ्रांस को भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में निवेश का अवसर।

तकनीकी क्षेत्र में भी दोनों देशों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल नवाचार पर सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया है। 2026 में नई दिल्ली में होने वाला AI Impact Summit इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

बहुपक्षीय मंचों पर साझेदारी

भारत 2026 में BRICS की अध्यक्षता करेगा और फ्रांस उसी वर्ष G7 का नेतृत्व करेगा। दोनों देशों का समन्वय यह सुनिश्चित करेगा कि विकासशील और विकसित देशों के बीच संवाद की खाई पाटी जा सके। यह केवल भारत और फ्रांस का ही नहीं बल्कि वैश्विक दक्षिण और वैश्विक उत्तर का भी साझा एजेंडा होगा।

भारत-फ्रांस रिश्ते आज एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुके हैं जहाँ वे केवल द्विपक्षीय संबंध नहीं बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन का अभिन्न हिस्सा हैं। भारत ने अमेरिका और रूस दोनों के साथ संबंध बनाए रखते हुए यूरोप के प्रमुख खिलाड़ी फ्रांस के साथ भी साझेदारी को और मज़बूत किया है। यह नीति भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” को सुरक्षित करती है और भारत को आने वाले वर्षों में एक निर्णायक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करती है।

इस परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि मोदी-मैक्रों वार्ता केवल दो नेताओं की चर्चा नहीं थी, बल्कि बदलती अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका और उसकी कूटनीतिक परिपक्वता का प्रमाण थी।

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