समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 23 जुलाई -महाराष्ट्र की महायुति सरकार में अंतर्कलह की आहट एक बार फिर सामने आई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के अधीन शहरी विकास मंत्रालय की शक्तियों में कटौती करते हुए निर्देश जारी किया है कि अब इस विभाग के सभी प्रमुख योजनाओं और परियोजनाओं के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) से पूर्वानुमति अनिवार्य होगी।
सूत्रों के मुताबिक, यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब फडणवीस और उद्धव ठाकरे के बीच हाल के दिनों में बढ़ती नजदीकियों को लेकर राजनीतिक गलियारों में नई संभावनाओं की चर्चा तेज हो गई है। कई मौकों पर फडणवीस को शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे से मुलाकात करते हुए देखा गया, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर समीकरण बदलने की अटकलें लग रही हैं।
शिंदे की बढ़ती पकड़ पर अंकुश?
इस कदम को उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के राजनीतिक वर्चस्व पर एक रणनीतिक ‘चेक’ के तौर पर देखा जा रहा है। शिंदे, जो शहरी विकास मंत्रालय संभाल रहे हैं, आगामी स्थानीय निकाय चुनावों को देखते हुए अपने वफादार विधायकों, पार्षदों और नगर निकायों को मनमाने तरीके से फंड आवंटित कर रहे थे। इससे महायुति के अन्य घटक दलों में नाराजगी बढ़ रही थी, जो अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए अपर्याप्त वित्तीय सहयोग की शिकायत कर रहे थे।
अब मुख्यमंत्री की सीधी निगरानी में फंड वितरण होने से शिंदे की स्वतंत्रता पर अंकुश लगेगा और वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। सरकार के भीतर से ही फंड के ‘राजनीतिक इस्तेमाल’ और ‘पक्षपातपूर्ण वितरण’ को लेकर चिंता जताई जा रही थी।
पारदर्शिता और संतुलन पर जोर
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय राज्य के शहरी विकास कार्यों में पारदर्शिता और समता सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है। अब मुख्यमंत्री कार्यालय सभी योजनाओं और फंड के वितरण पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखेगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि संसाधनों का उपयोग राजनीतिक निष्ठा के बजाय जनता की भलाई के आधार पर किया जाए।
नए आदेशों के अनुसार, किसी भी शहरी योजना के लिए बिना सीएमओ की पूर्व अनुमति के कोई फंड स्वीकृत नहीं किया जा सकेगा। इससे राज्य की सभी नगरपालिकाओं और विकास परियोजनाओं के बीच संतुलित वित्तीय सहयोग संभव हो सकेगा।
महायुति में सहमति, लेकिन तनाव बरकरार
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि यह निर्णय केवल फडणवीस का नहीं था, बल्कि महायुति के तीनों प्रमुख नेताओं—देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार—की आपसी सहमति से लिया गया है। इससे बाहर की दुनिया के लिए यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि गठबंधन में मतभेदों के बावजूद नेतृत्व एकजुट है।
हालांकि, जानकारों का मानना है कि इस कदम से शिंदे खेमे में असंतोष बढ़ सकता है और यह भविष्य में गठबंधन की स्थिरता के लिए एक नई चुनौती बन सकता है। फडणवीस-उद्धव की संभावित नजदीकी, शिंदे की सीमित होती भूमिका और अजित पवार की रणनीतिक चुप्पी—इन सबके बीच महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है।