समग्र समाचार सेवा नई दिल्ली, 5 जून : भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने एक ऐतिहासिक बयान में कहा है कि उन्होंने और उनके सहयोगी सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक रूप से यह शपथ ली है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई पद या जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने स्पष्ट किया है कि यह फैसला जनता के बीच न्यायपालिका की निष्पक्षता और भरोसे को बनाए रखने के लिए लिया है।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “हमने यह सुनिश्चित किया है कि हम सेवानिवृत्ति के बाद ऐसे किसी भी पद को स्वीकार नहीं करेंगे जिससे यह प्रतीत हो कि हम न्यायिक कार्यकाल के दौरान पक्षपातपूर्ण या लाभ के इच्छुक रहे हैं। न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता सर्वोपरि है।”
CJI गवई ने कहा कि न्यायपालिका का कार्य केवल न्याय प्रदान करना नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की मूलभूत संरचना की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मुख्य न्यायाधीश का यह वक्तव्य उस समयावधि में आया है जब पिछले कुछ सालों से उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सरकारी आयोगों, राज्यपाल पदों या राजनीतिक नियुक्तियों में देखे जाने की प्रवृत्ति पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इस प्रवृत्ति पर देश में बहस रही है कि क्या इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
CJI गवई ने इसका हिस्सा भी जोड़ा कि न्यायपालिका को जनता की नजर में हमेशा एक भरोसेमंद संस्था बने रहना चाहिए, और इसके लिए यह जरूरी है कि न्यायाधीशों का आचरण पूर्ण रूप से निष्पक्ष और नैतिक हो — न केवल कार्यकाल के दौरान, बल्कि उसके बाद भी।
उनकी यह घोषणा भारत की न्यायपालिका में एक नये नैतिक मानक की दिशा दर्शाती है, जिससे आगे कभी न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्वस्थ दूरी बनी रहेगी और जन विश्वास मजबूत होगा।