|| ठोकर से भी सीखें || 

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                                                                                    आज का भगवद् चिंतन

            

  🌞     जीवन में ठोकर लगने का अर्थ ये नहीं कि चलना ही छोड़ दिया जाये अपितु ये है कि अब आगे संभल कर चला जाये और यदि मार्ग ही गलत है तो उसका त्याग किया जाये। जो व्यक्ति एक बार ठोकर खाकर संभल जाता है, वो बड़ी ठोकर खाने से भी बच जाता है लेकिन जो व्यक्ति बार-बार ठोकर खाकर भी उसी मार्ग पर चलता रहता है, वह अपने पतन की आधारशिला स्वयं अपने हाथों से रखता है।

 

   🌞      यदि हमें ठोकर लगकर भी संभलना नहीं आता तो इसका अर्थ है कि हमें जीवन पथ पर चलना भी नहीं आता। ठोकरों से सीख लेकर चलने वाला व्यक्ति एक दिन सकुशल अपने गंतव्य तक पहुँच ही जाता है। ठोकरों की डर से चलना ही छोड़ दिया जाये यह तो कदापि संभव नहीं लेकिन ठोकरों से संभलने और सावधानी से सुपथ पर चलने की सीख अवश्य प्राप्त करनी चाहिए।

           

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