|| आत्मकल्याण का साधन || 

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                                                                              आज का भगवद् चिंतन               

       आत्मकल्याण के लिए जीवन सदैव सत्संग के आश्रय में जिया जाना चाहिए। यदि बुद्धि को परिमार्जित करते हुए उसमें प्रतिदिन कुछ श्रेष्ठ विचार, कुछ सद्विचार न भरे जाएं तो हमारे वही कलुषित विचार जीवन के लिए जहर बनकर उसकी आत्मिक उन्नति में बाधक बन जाते हैं। भोर की प्रथम किरणों के साथ कुछ पुराने फूल झड़ जाते हैं और नयें फूल खिल उठते हैं व प्रकृति को सुवासित करते हैं।

       उसी प्रकार एक नया दिन एक नईं ऊर्जा और एक नयें विचारों के साथ आता है। एक नया दिन आता है तो साथ में नवीन उल्लास और नईं आश लेकर भी आता है ताकि हम अपने जीवन को नयें विचारों से सुवासित एवं उल्लासित कर सकें। मानव मन को भी प्रतिदिन सद्विचार और सत्संग रूपी साबुन से स्वच्छ करने की आवश्यकता होती है ताकि विचारों की कलुषिता का मार्जन हो सके। सदा सत्संग के आश्रय में रहो ताकि हृदय की निर्मलता और विचारों की पवित्रता बनी रहे।

     आचार्य पं. अशोक मिश्रा मुंबई

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