समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,24 मार्च। भारत में हर समय कोई न कोई नया काम या परियोजना अपनी शुरुआत करती है, विशेष रूप से अगर वह धार्मिक होता है, तो उसे विरोध और आलोचनाओं का सामना करना ही पड़ता है। हाल ही में भी अयोध्या में बने राम मंदिर के मामले में ऐसा हुआ है। भारतीय राजनीति में धर्म और राजनीति का मिश्रण इस तरह से जड़ें जमा लेता है कि जहां कुछ राजनीतिज्ञ इस मंदिर के निर्माण को भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का पुनर्निर्माण मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसके खिलाफ अपने राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण को जताते हैं। एक ओर जहां कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने राम मंदिर के निर्माण पर आपत्ति जताई थी, वहीं अब यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी एक बड़ी सफलता की ओर बढ़ रहा है।
राम मंदिर के मामले में, जब यह 400 करोड़ रुपये का टैक्स अदा किया गया, तो यह सवाल खड़ा हुआ कि क्या वक्फ बोर्ड और मदरसों को भी इसी तरह के पारदर्शी तरीके से टैक्स का भुगतान करना चाहिए? क्या यह समय नहीं कि सभी धार्मिक संस्थाएं और उनकी संपत्तियां सरकार के नियमों का अनुसरण करें और टैक्स चुकाएं? यदि एक मंदिर इस प्रक्रिया का अनुसरण कर सकता है, तो क्यों नहीं अन्य धार्मिक संस्थाएं भी ऐसा करें?
राम मंदिर का निर्माण और उसका आर्थिक योगदान पेश है आज देश के सामने एक उदाहरण के रूप में। यह व्यवस्था को चुनौती देता है, जो धर्म के नाम पर टैक्स से बचने की कोशिश करती है। सवाल उठता है कि क्या धर्म के नाम पर मिलीं छूटों का फायदा सिर्फ एक ही पक्ष को उठाने का अधिकार है? क्या सिर्फ एक समुदाय या धर्म विशेष को सरकारी नियमों से बाहर रखने की अनुमति दी जानी चाहिए? अगर एक मंदिर को टैक्स देना पड़े, तो क्या अन्य धार्मिक स्थानों को भी इसी तरह से जिम्मेदार ठहराया नहीं जाना चाहिए?
यह ध्यान रखना योग्य है कि जब तक कोई धार्मिक संस्था या संगठन सामाजिक कल्याण, शिक्षा, और चिकित्सा सेवा के रूप में होता है, तब तक उनकी कुछ छूटें दी जा सकती हैं। लेकिन जब वह धार्मिक स्थान या संस्था अधिक संपत्ति जमा करती है, तो उसे टैक्स के दायरे में आना चाहिए। इसके अलावा, सरकार द्वारा उठाए गए टैक्स से प्राप्त आय का इस्तेमाल देश के विकास में किया जा सकता है, जो सभी नागरिकों के लाभ के लिए होगा।
राम मंदिर के मामले का यह सवाल इतना महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि उसने यह साबित कर दिया है कि धर्म आस्थाएं और राष्ट्र का विकास साथ ही चल सकते हैं, बशर्ते धर्म का पालन कानूनी और संवैधानिक तरीके से किया जाए। यह देखना रोचक होगा कि भविष्य में क्या अन्य धर्म संस्थाएं इस प्रक्रिया को अपनाती हैं या नहीं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो निश्चित ही यह देश की प्रगति में योगदान देने वाला कदम साबित होगा।
इस समय जब देश आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और सरकार को अधिकतम राजस्व की आवश्यकता है, तो यह समय है कि सभी धार्मिक संस्थाएं अपनी जिम्मेदारी समझें और सरकारी नियमों का पालन करें। टैक्स का भुगतान न केवल कानूनी दायित्व है, बल्कि यह एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में देश की सेवा करने का एक तरीका भी है।
अंत में, यह कहателейासे आजमाया नहीं जाएगा कि राम मंदिर ने जो उदателейा पेश किया है, वह हमें एक नया दृष्टिकोण देता है। क्या हम चाहेंगे कि अनुत्तरोचित धार्मिक संस्थान भी इस उदाहरण का अनुसरण करें और अपने धर्म और देश के प्रति जिम्मेदारी का पालन करें? अगर हम चाहते हैं कि भारत एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बने, तो हमें धर्म और राजनीति के बीच संतुलन बनाए रखना होगा, और इस दिशा में राम मंदिर का उदाहरण एक मार्गदर्शक बन सकता है।