महाराष्ट्र की राजनीति: एकनाथ शिंदे ने गृह मंत्रालय की मांग की, विभागों के आवंटन पर गतिरोध बरकरार

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,7 दिसंबर।
महाराष्ट्र की राजनीति में सत्ता के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे, जो पहले मुख्यमंत्री पद को लेकर अड़े हुए थे, अब राज्य के गृह मंत्रालय की मांग कर रहे हैं। वहीं, डिप्टी सीएम ने भी गृह विभाग की जिम्मेदारी भाजपा को देने की मांग दोहराई है। हालांकि, विभागों के आवंटन को लेकर सहयोगी दलों के बीच सहमति अभी तक नहीं बन पाई है।

विभागों के बंटवारे पर गतिरोध

राज्य में नई सरकार बनने के बाद से ही विभागों के आवंटन को लेकर भाजपा और शिवसेना गुट के बीच खींचतान जारी है। गृह मंत्रालय, जिसे सबसे महत्वपूर्ण विभाग माना जाता है, दोनों दलों के बीच चर्चा का मुख्य केंद्र बना हुआ है।

एकनाथ शिंदे, जिन्होंने लंबे समय तक डिप्टी सीएम पद स्वीकारने में सस्पेंस बनाए रखा था, अब गृह मंत्रालय की मांग को लेकर मुखर हो गए हैं। उनके मुताबिक, गृह मंत्रालय उनके गुट को दिया जाना चाहिए ताकि राज्य में कानून-व्यवस्था को प्रभावी तरीके से संभाला जा सके।

शपथ के बाद शिंदे का बयान

शपथ ग्रहण के बाद एकनाथ शिंदे ने कहा था कि वे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को हरसंभव सहयोग देंगे और एक टीम के रूप में काम करेंगे। उन्होंने यह भी संकेत दिया था कि वह राज्य के विकास और जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता देंगे।

“हम मिलकर महाराष्ट्र के विकास के लिए काम करेंगे। जनता ने हम पर भरोसा किया है और हम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे,” शिंदे ने कहा।

भाजपा और शिवसेना के बीच वार्ता

सहयोगी दलों के बीच विभागों के बंटवारे पर वार्ता चल रही है, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। भाजपा, जो गठबंधन में प्रमुख दल है, गृह मंत्रालय को अपने पास रखना चाहती है। दूसरी ओर, शिंदे गुट इसे अपने लिए आवश्यक मान रहा है।

राजनीतिक विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि विभागों के आवंटन पर सहमति न बन पाना सत्ता साझेदारी के मॉडल पर सवाल खड़ा करता है। यह खींचतान महाराष्ट्र की जनता के लिए परेशानी का कारण बन सकती है, क्योंकि इससे शासन की प्रक्रिया में देरी हो रही है।

निष्कर्ष

महाराष्ट्र में सत्ता के बंटवारे को लेकर खींचतान से यह साफ है कि सहयोगी दलों के बीच समन्वय की कमी है। गृह मंत्रालय को लेकर दोनों दलों के बीच चल रही रस्साकशी यह दर्शाती है कि सत्ता का संतुलन बनाए रखना कितना चुनौतीपूर्ण है। अब यह देखना होगा कि विभागों के बंटवारे को लेकर बातचीत कब तक सफल होती है और यह गठबंधन राज्य की जनता के लिए कितनी प्रभावी सरकार प्रदान कर पाता है।

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