कर्ज के बोझ तले दबे सहारनपुर के दंपत्ति की दर्दनाक आत्महत्या

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 13अगस्त। कर्ज के जाल में फंसे एक दंपत्ति की दुखद कहानी ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। सहारनपुर के सौरभ बब्बर और उनकी पत्नी ने हरिद्वार में गंगा नदी में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इस घटना से पहले उन्होंने अपने परिवार को एक सुसाइड नोट भेजा, जिसमें उन्होंने कर्ज के बोझ तले दबने की व्यथा को बयान किया।

सुसाइड नोट में सौरभ ने लिखा, “मैं कर्ज के दलदल में इस कदर फंस गया हूं कि बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा। इसलिए मैं और मेरी धर्मपत्नी अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं।” यह शब्द न केवल उनके दर्द और निराशा को दर्शाते हैं, बल्कि समाज की उस कठोर सच्चाई को भी उजागर करते हैं, जिसमें लोग कर्ज के दबाव में अपनी जिंदगी खत्म करने को मजबूर हो जाते हैं।

सौरभ बब्बर ने इस नोट में अपने परिवार से माफी मांगते हुए कहा कि उन्होंने उन्हें इस स्थिति में छोड़ दिया है, लेकिन उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था। उन्होंने अपने बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों से भी विनती की कि वे उन्हें माफ कर दें और उनकी आत्मा को शांति के लिए प्रार्थना करें।

यह घटना केवल एक दंपत्ति की नहीं है, बल्कि उन हजारों लोगों की कहानी है, जो कर्ज के बोझ तले दबकर अपनी जिंदगी को खत्म करने की सोचते हैं। कर्ज की चपेट में आकर आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जो समाज और सरकार दोनों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।

हरिद्वार की गंगा नदी में छलांग लगाने से पहले सौरभ और उनकी पत्नी ने अपने बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए उनके भविष्य की जिम्मेदारी परिवार के अन्य सदस्यों को सौंपी। इस घटना ने समाज में आर्थिक संकट और कर्ज के जाल में फंसे लोगों की स्थिति को उजागर किया है।

इस तरह की घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हम अपने समाज के उन लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं, जो आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। सौरभ और उनकी पत्नी की आत्महत्या ने एक बार फिर से इस मुद्दे को उठाया है कि कर्ज के बोझ तले दबे लोगों की मदद के लिए समाज और सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

इस घटना के बाद सौरभ बब्बर और उनकी पत्नी की आत्महत्या से जुड़ी कई सवाल उठ रहे हैं, जिन्हें हल करने के लिए समाज को जागरूक होना पड़ेगा। कर्ज के जाल में फंसे लोगों के लिए सरकार को सख्त कानून और सहायता योजनाएं बनानी चाहिए, ताकि किसी और को इस तरह का कठोर कदम उठाने की नौबत न आए।

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