चुनाव लडने की जिद पर पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा अड़े, कांग्रेस जेडीएस गठबंधन में बढता दरार

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अनामी शरण बबल

नयी दिल्ली/ बंगलुरू। सच कहा जाता है कि एक उम्र के बाद मन और तन से सेक्स की इच्छा भी मिट जाती है, मगर सत्ता की भूख हवस कभी और किसी भी उम्र में ख़त्म नहीं होती है। यह कहावत पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा पर लागू होती है। एक्सीसीडेंटल प्रधानमंत्री बन जाने और इस बार अपनी चौथी पीढ़ी को भी चुनाव में उतारने के बाद भी वंशवाद के सबसे शर्मनाक उदाहरण बनने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा भी इस बार फिर चुनाव लडने के लिए उतावले हैं। देवेगौड़ा की जिद से जेडी सेक्यूलर और कांग्रेस के गठबंधन में दरार संभव है। 
उल्लेखनीय है कि  पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा टुमकुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। जेडीएस सूत्रों के अनुसार संभव है कि  सोमवार को कर्नाटक की टुमकुर सीट से वे नामांकन भरेंगे। मांड्या के बाद यह दूसरी सीट है जिस पर कांग्रेस और जेडीएस के बीच प्रत्याशियों को लेकर मनमुटाव संभव है।
साल 2014 में तुमकुर सीट से कांग्रेस के सांसद एस.पी. मुदाहनुमेगौड़ा ने जीत दर्ज की थी। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए हुए गठबंधन में टुमकुर सीट जेडीएस के खाते में जबरन चली गई हैं। इस गठबंधन के बाद भी मौजूदा कांग्रेस सांसद एसपी. मुदाहनुमेगौड़ा का कहना है चाहे कोई सामने खडा हो मगर मैं चुनाव जरुर लड़ूंगा। उन्होंन कहा कि इसके लिए मैं पार्टी भी छोड़ सकता हूं। कांग्रेस मेरी पार्टी है तो पार्टी को भी अपने लोगों के हित पर ध्यान देना होगा।  वह इस सीट से जरुर नामांकन भरेंगे।
विदित हो कि कर्नाटक की 28 संसदीय सीटों के लिए कांग्रेस 20 और जेडीएस 8 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे और कन्नड़ फिल्मों के मशहूर अभिनेता निखिल कुमारस्वामी ने कहा कि वह मांड्या के लोगों की सेवा करने के लिए तैयार हैं। इसकी संभावना अधिक है कि निखिल कर्नाटक की मांड्या सीट से चुनाव लड़ें। 
लोकसभा चुनाव में देवेगौड़ा सहित एकसाथ चार पीढ़ियों चुनाव मैदान में हैं।  पिछले दिनों ‌‌‌‌‌‌अपनें पोते के लिए प्रचार में गए देवेगौड़ा को जनसमूह ने हूट करके वंशवाद के लिए तीव्र प्रतिक्रिया दी। जनता के भारी रोष को देखते हुए देवेगौड़ा अपने पोते के संग रोने लगे। इसके बावजूद देवेगौड़ा दादाजी अपने बेटों और पोते के संग वंशवाद के सबसे शर्मनाक उदाहरण  बनने के लिए व्यग्र हैं। अब इसका फैसला तो कर्नाटक की जनता को करना है कि सतालोलुप देवेगौड़ा जैसे सता लोभी नेताओं को सबक सिखाएगी अथवा वंशवाद की बेल को ही नियति मान लेगी। इसका फैसला 23 मई को ही पता चलेगा कि जनता जाग गयी है।।

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