अद्भुत अविस्मरणीय उल्लेखनीय संग्रहणीय और दुर्लभ अंक

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अनामी शरण बबल

पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न, अद्भुत  वक्ता, पत्रकार, कवि, लेखक और  आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के सबसे लोकप्रिय शिखर पुरुष रहे हैं। संभवतः भारतीय राजनीति के वे आखिरी पुरुष हैं, जिनको स्टेट्समैन की श्रेणी में रखा जा सके। जनता के बीच जनछवि रखने वाले बाजपेयी के बहुआयामी व्यक्तित्व को विश्लेषित करना इतना आसान नहीं है। सरल, सरस, मधुर ,सर्वसुलभ होने के बावजूद इनकी बहुआयामी छवि को एक अंक में समेटना बहुत बड़ी चुनौती है, मगर इस चुनौती को इतने कम समय में संयोजित करने और लेखन और संपर्कों के विशाल सागर से नायाब हीरे मोती को निकाल कर बाहर लाने की जिम्मेदारी को निभाया है मासिक पत्रिका साहित्य अमृत ने। उल्लेखनीय है कि साहित्य अमृत के निरंतर प्रकाशन का यह रजत जयंती साल है। जिससे अटल बिहारी वाजपेयी पर इस अंक का आना इसकी महिमा गरिमा को और महत्वपूर्ण बना देता है।–  साहित्य अमृत के इस अंक में अटलजी से संबंधित 100 रचनाएं संकलित है। जिसमे उनके संस्मरण उल्लेखनीय भाषणों, के अलावा उनकी कविताएं दी गयी है। जो उनके रचना खंड की तरह है, अलबता इसे एक खंड की तरह एकसाथ नही पेश किया गया है। लगभग वही सारी कविताएं हैं जिसे वे अक्सर गाते गुनगुनाते और सुनाते रहते थे। अटलजी पर भी छह महिमा मंडित श्रद्धांजलि कविताएं हैं जो पारंपरिक स्तुति गान से अधिक नहीं है। मगर इन रचनाओं से समीक्षार्थ पत्रिका का अंक कालजयी नहीं बना है। इसको यादगार और कालजयी बनाने में उनके उपर लिखे आलेखों और संस्मरणों की भूमिका रही है। अटलजी को अपनी यादों में 30 लेखकों पत्रकारों और सहकर्मियों, समकालीन नेताओं के  लेखन का योगदान रहा है। और संस्मरणों में जिन लोगों ने अटलजी के साथ समय बिताया है उनमें उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राम नाईक,ओम प्रकाश कोहली, लालजी टंडन, गंगा प्रसाद, देवेन्द्र स्वरूप,रमेश पोखरियाल निशंक, बलवीर पुंज, श्याम मोहन दुबे, तरूण विजय, आर.के. सिन्हा, सत्य नारायण जटिया, सैय्यद शाहनवाज हुसैन, सुशील कुमार मोदी, वेद प्रताप वैदिक, वीरेन्द्र जैन, श्याम सिंह शशि, पदमा सचदेव, जवाहर लाल कौल, शैवाल सत्यार्थी, अशोक कुमार टंडन आदि नामी नेताओ नौकरशाहों और पत्रकारों की यादों में अटलजी की रंग बिरंगी छवि और पहलू प्रकट होता है। यादों में इनकी मोहकता पाठकों को अभिभूत करती है। पाठकों को इससे अटल बिहारी वाजपेयी के कद का पता चलता है कि वाकई वे किस तरह के थे। एक से बढ़कर एक अत्यंत सुंदर शानदार यादगार और गज़ब की यादों से सराबोर संस्मरण।इस अंक का एक और महत्वपूर्ण खंड है आलेखों का। जिसमें तीन दर्जन आलेखों का दुर्लभ संकलन है। और जिन लेखकों और उनके समकालीनों ने इसे लिखा है, इसको जानना भी एक रोचक उत्कंठा से कम नहीं है। अटलजी के साथ साए की तरह साथ साथ रहे लालकृष्ण आडवाणी के अलावा मुरली मनोहर जोशी, अमित शाह, माधव गोंविद वैघ, केशरी नाथ त्रिपाठी, नजमा हेपतुल्लाह, नरेन्द्र सिंह तोमर, महेश चंद्र शर्मा, विजय गोयल, सुधीन्द्र कुलकर्णी, प्रभात झा, नंद किशोर गर्ग, शांता कुमार, कलराज मिश्रा, केसी त्यागी, राम बहादुर राय, हेमंत शर्मा,  कमल किशोर गोयनका, बल्देव भाई शर्मा, शेषाद्रि चारी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, रमाकांत वर्मा और सुदर्शन वशिष्ठ के आलेखों को पढ़ना समकालीन समय समाज सता साहित्य चिंतन और क्षरित होते मानवीय सहजता के बीच संबंधों की उष्मा की मंद पड़ती आंच को महसूस किया जा सकता है।  
इतने सारे आलेखों में किसी एक का उल्लेख करना अनर्थ होगा। सबमें सबकी अलग परिभाषा, रंगरूप और यादों की महिमा का बखान है। अभिभूत कर देने लायक इन लेखों को आज पढ़ना और सामयिक है क्योंकि इस तरहां के दुर्लभ नेता कोई नहीं है जिसने समय और दलगत सीमा को पार करके सभी के दिलों में प्यार अपनापन और सम्मान अर्जित किया। संस्मरणों में यदि किसी एक का ही उल्लेख करना हो तो निसंदेह वीरेन्द्र जैन इसमें बाजी मार ले गये। वीरेंद्र के संस्मरण  में अटलजी की एक पत्रकार लेखक की जिज्ञासा जीजिविषा परिलक्षित होती है। किस तरह वे लेखकों को पढ़ते थे। उनकी रचनाओं पर टिप्पणियां देते थे। किस कौतुहल के साथ उनसे मिलते थे। अपनी रचनावली संसद में दिए भाषणों को कई खंड में लाने के लिए वे किस तरह वीरेंद्र जैन के साथ भावनात्मक रूप से जुडे हैं। इस संस्मरण मे एक नेता की राजनीति से इतर एक लेखकीय छवि को देखना सुखद अहसास देता है।-  साहित्य अमृत के इस विशाल 256 पेजी अंक की सबसे कमजोर कड़ी है  साक्षात्कार खंड। जिसमें केवल एक इंटरव्यू है। और वह भी अपूर्ण।  कुछ सवालों के जवाब को कालजयी जवाब की तरह परोसा गया है। इतने विराट छवि के अटलजी के इंटरव्यू को देने में इतनी कंजूसी? यह समझ के परे है। नहीं भी तो अटलजी के एक सौ से अधिक बेहतरीन और महत्वपूर्ण इंटरव्यू हैं। मगर दो पन्नों के सारांश को साक्षात्कार की तरह परोस देना इस अंक के संयोजन संपादक नियोजन का दुर्बल पक्ष है। यह भी नहीं कहा जा सकता है कि इस भारी भरकम अंक को आकार देते देते पूरी टीम थक गयी थी।  दरअसल लेखों और संस्मरणों की भरमार से ऐसा प्रतीत होता है कि  इंटरव्यू के लिए कोई जगह शेष नहीं रही होगी।  बाकी सामान्य साज सज्जा में आवरण जरुर बहुत सुंदर है। और प्रभात प्रकाशन की पत्रिका साहित्य अमृत का मूल्य मात्र एक सौ रुपया, इतना कम जान पड़ता है कि ज्यादातर लोग तो केवल अंक को देखकर ही सहजता से इसे खरीदने में उत्साहित होंगे। बहरहाल, काफी समय के बाद एक अद्भुत उल्लेखनीय सराहनीय अंक सामने आया है। जिसकी गूंज लंबे समय तक पाठको को मोहित करेगी। खासकर राजनीति प्रधान आदमी में से ढेरों आयाम की तलाश की जितनी तारीफ की जाए वो कम है। संपादकीय टीम की जितनी प्रशंसा की जाए वह भी कम है तभी तो एक दुर्लभ अंक सबों के लिए पठनीय बन गया है।                        —-  साहित्य अमृत दिसंबर 2018 (मासिक)  पेज-254, मूल्य- 100 रूपया । संपादक- त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी।       4/19,आसफ अली रोड, नयी दिल्ली-110002

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