शीला दीक्षित की दिल्ली में पारी टू आरंभ

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अनामी शरण बबल दिल्ली में पार्टी की कमान शीला दीक्षित ने संभाली नयी दिल्ली। कांग्रेस की वरिष्ठतम नेता शीला दीक्षित ने प्रदेश दिल्ली कांग्रेस अध्यक्षता वाली दूसरी पारी आज़ आरंभ कर दी। पार्टी कार्यभार लेने के समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाईटलर की मौजूदगी के चलते पूरे आयोजन को 1984 के दंगे से जोड़ने की कोशिश की गयी।इस मौके पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन सहित दर्जनों वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी मौजूदगी रही।  जबकि फिलहाल किसी भी दल के साथ चुनावी तालमेल की संभावना को नकारा। इनका कहना है कि इस बाबत हाईकमान की रजामंदी के बाद ही फैसला लिया जाएगा। इस मौके पर सभी कार्यकर्ताओं नेताओं को जनाधार मजबूत करने के लिए जोर लगाने का अनुरोध किया। इस अवसर पर उत्साहित माहौल को श्री मती शीला दीक्षित ने कहा कि यह एक सकारात्मक  संकेत है.।  उल्लेखनीय है कि दिल्ली के सात संसदीय सीटों के अलावा 70 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का स्कोर शून्य है। संसद और विधानसभा में खाता तक नहीं खओलह पाने वाली कांग्रेस का यह प्रदर्शन सबसे कमजोर और शर्मनाक है। 1998 से लेकर 2013 तक  तीन टर्म में लगातार 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं ‌ मगर 2013 कांग्रेस इस बुरी तरह से चुनाव हारी कि दिल्ली में खाता तक नहीं खुल पाया। और आप की आंधी में सारे दल बाहर हो गए। आप ने 67/70 के साथ आप दिल्ली की सता पर काबिज हुई।  कांग्रेस जीरो और भाजपा के केवल तीन विधायक ही आप और अरविंद केजरीवाल की आंधी में विजयी हो सके।—–: दिल्ली की सता गंवाने के बाद शीला दीक्षित को उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 2017 में यूपी प्रदेश कांग्रेस काअध्यक्ष बनाकर लखनऊ भेजा गया। और सूबे में कांग्रेस बुरी तरह पराजित रही। इसके बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में किसी युवा पीढ़ी को आगे बढ़ाने की बजाय एकबार फिर 80 साल की शीला दीक्षित पर ही दांव खेला। हालांकि शीला दीक्षित के साथ ज्यादातर कांग्रेसी सामने आ रहे हैं, मगर देखना है कि पहले लोकसभा चुनाव और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस तैयार हो रही है अथवा अपने ही परिवार और परिजनों में उलझकर बेदम होती रहने को अभिशप्त रहेगी।—- यानी शीला की पहली पारी  180 माह लंबी अवधि की रही। मगर विधानसभा चुनाव दूसरी पारी से पहले लोकसभा चुनाव में  पार्टी का क्या खाता खुलेगा या नहीं ? यह एक यक्ष सवाल है जिसको लेकर पार्टी में खामोशी और अपने उपर यकीन नहीं है।।

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