बढ़ती उम्र कमजोरी नहीं, मेरी ताकत है / शीला दीक्षित

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कांग्रेस की उम्रदराज नेता और दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने कहा नयी दिल्ली। घोर चुनाव के मौसम और राजनीति के गरमागरम तापमान में भी सारे पत्रकार मुझसे राजनीति की बजाय मेरी उम्र के  बारे में सवाल पूछ रहे हैं। मैं बार बार कब तक बताती रहूं कि उम्र मेरी ताकत है और मेरी शक्ति है। मेरा अनुभव मेरी पूंजी है। मेरी सक्रियता मेरा सौभाग्य मेरा साहस और काम के प्रति समर्पण है। यही मेरा वजूद है कि उम्र के इस मोड़ पर भी पार्टी को मेरी सेवाओं की जरुरत पड़ती है। दिल्ली में15 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद 2017 में उत्तरप्रदेश   अध्यक्ष और एक सप्ताह पहले दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्षा बनाई गयी शीला दीक्षित ने देशप्राण के लिए बातचीत करते हुए उम्र को लेकर अपनी पीड़ा का इजहार किया। यह पूछे जाने पर कि फिटनेस के लिए क्या करती हैं तो उन्होंने कहा कि उम्र को कोई परास्त नहीं कर सकता। उम्र के अनुशासन को बनाये रखने के लिए पर्याप्त नींद कम खाना अधिक जल योग ध्यान  हर हाल में खुश रहना और मुस्कान  को  चेहरे की शान बनाए रखना ही मेरी सेहत और सक्रियता का राज है। एक सवाल के जवाब में कहा कि कांग्रेस में नेताओं की कोई कमी नहीं है। दिल्ली में तीन टर्म में लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री रहना कोई मजाक नही है।  बाद में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान मूलत: यूपी से होने के : कारण ठीक चुनाव से पहले वहां भेजी गयी। वहा जाकर मैंने मेहनत भी की। पार्टी कार्यकर्ता भी काफी उत्साहित हुए, मगर जनता का वोट शेयर में तो बढ़ोतरी हुई,मगर चुनाव जीतने में कामयाबी नहीं मिली।मगर दिल्ली में ऐसा नहीं होगा। श्री मती दीक्षित ने कहा कि राजनीति एक बहती हुई नदी की धारा होती है। जिसे न रोका जा सकता है और कोई यह ना माने कि नदी की चंचलता को कोई थाम सकता है। बहती हुई चंचल नदी को रोकना नामुमकिन है।  जीवन भर के लिए कोई सत्तासीन नही रह सकता। आदमी का मिजाज एक छोटे से चंचला बालक की तरह होता है, जो कब क्या कर दे बोल दे। इसका अंदाजा लगा पाना आसान नहीं है। यही राजनीति का रहस्य है कि इसका सटीक आंकलन या अनुमान लगा पाना नामुमकिन है।—–प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन के केवल पांच साल में ही हवा बदल गयी है। पांच साल में ही जादू का असर मंद हो गया है। अभी एक माह पहले भाजपा तीन राज्यों में हार गयी। जनता का मूड बदलने लगा है। एक सवाल के जवाब में कहा कि पब्लिक को कोई भी नेता बेवकूफ नहीं बना सकता है। वह सबकुछ जानती है।अब जनता गाली गलौज नहीं करती। संचार युग में जनता मोबाइल कम्प्यूटर के साथ संचालित हो रहा है। ईवीएम मशीन का बटन दबाना जानती है और  जनता अपनी अभिव्यक्ति बटन दबाकर दे रहा है। विपक्षी दलों की एकता के बारे में पूर्व मुख्यमंत्री शीला ने कहा कि विपक्षी दल  कांग्रेस की तीन राज्यों के जीत को बर्दाश्त नही कर पा रहे हैं। उनको कमजोर कांग्रेस पसंद है कि वे अपनी मनमानी करते रहे। कोई 25-30 सीट जीतकर भी प्रधानमंत्री बनने का सपना पाल सकता है मगर कांग्रेस 100 से भी अधिक सीट पाकर भी इस पद की दावेदारी न करे। उन्होंने कहा कि विपक्षी दल भी भी कांग्रेस से भयभीत रहती है। आज-कल मोदी विरोधी तैयारी के बावजूद यही हो रहा है, कि मोदी को रोकने की बजाय वे लोग राहुल गांधी को रोकने के लिए अधिक चिंतित है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एक सप्ताह के भीतर यह फाइनल हो जाएगा  कि कांग्रेस किसके साथ किससे मिलकर चुनाव की तैयारी की जाएगी। यह कहती हुई उन्होंने बातचीत खत्म कर दी कि चुनावी हवा में परिवर्तन की बयार चल रही है और अगले पांच माह में बहुत कुछ बदला बदला सा नज़र आएगा।

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