किंगमेकर बनने की लालसा में यूपीए और कांग्रेस संकट में |

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अनामी शरण बबल

भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता की हवा निकलती जा रही है। भाजपा एनडीए के समानांतर यूपीए को मजबूत बनाने की बजाय किंगमेकर बनने के लिए उतावले नेताओं और दलों के जमघट से यूपीए और कांग्रेस का पलड़ा हल्का होता दिख रहा है।  कई दलों के बागी तेवरों से आक्रांत भाजपा विपक्षी एकता में सेंध देखकर राहत महसूस करेंगी।—- कभी कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होने वाली सभी दल अब गैरभाजपाई एकता की राजनीति करते हैं। भाजपा समर्थक एनडीए के खिलाफ कांग्रेस समर्थित यूपीए में शामिल हैं। यूपीए और एनडीए की राजनीतिक दौड़  से बाहर अलग अलग सूबों के ताकतवर सूबेदारो ने एक अलग गठबंधन या राजनीतिक तालमेल की जोड़ तोड़ आरंभ की। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव की अगुवाई में विपक्षी दलों को साधने का अभियान चला। और देखते ही देखते बंगाल की ममता बनर्जी  आप के अरविंद केजरीवाल मायावती अखिलेश यादव  ‌‌तेजसवी सब यूपीए को मजबूत। की बजाय किंगमेकर बनने के लिए उतावले हैं।—- टीएमसी की ममता बनर्जी के नेतृत्व में तीसरा धडा बनता बिगड़ता दिख रहा था, तभी  यूपी में बुआ और बबुआ की जोड़ी ने सबसे पहले बाजी मार ली। यूपीए और कांग्रेस को दरकिनार करके  किंगमेकर बनने का पहले गेम में तो माया अखिलेश ने बाजी मार ली। ममता बनर्जी चंदशेखर राव  आप के अरविंद केजरीवाल की तिकड़ी के सामने माया अखिलेश ने तीसरे विकल्प की नींव डाल दी है। मायावती की अगुवाई में राव अरविंद ममता का एक साथ आना आसान नहीं है। तो इन तीनों का यूपीए में आकर राहुल गांधी को बाॅस मानना भी सरस सरस सरल नहीं है। बिहार के पूर्व पर मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव ने भी माया अखिलेश का दामन थाम लिया है। भाजपा से अलग होकर फिलहाल अकेले अकेले घूम रहे शिवसेना की पहेली को भाजपा बूझ नहीं पा रही है। जिससे तीसरा मोर्चा किंगमेकर बनने का मुंगेरी सपना लग रहा है।  टउधर सपा बसपा से दरकिनार कर दिए गए कांग्रेस ने सभी मामले में चुप्पी साध ली है। अकेले अपने बूते चुनाव लडने की ताकत आज़ कांग्रेस में नहीं है। 80 सीट पर चुनाव लड़कर संभव है कि 50-55 सीटों पर कांग्रेस को अपनी  जमानत बचाना भी कठिन हो सकता है, मगर लगभग हर सीट पर वोट कटवा पार्टी की तरह कांग्रेस भाजपा के लिए सबसे नुकसानदेह हो सकती है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद भी विपक्षी दल कांग्रेस के इस उभार कएब बर्दाश्त नही कर पा रहे हैं। सांसदों के संख्या बल के बूते प्रधानमंत्री के निर्धारण के गणित में माया और ममता बनर्जी कहीं ठहरते नहीं है। लिहाजा 56-60 सांसदों के बल पर सरकार बनाने के लिए अपनी शर्तों को मनवाने जिसे राजनीतिक शब्दावली में ब्लैकमेलिंग कहते हैं के अनुसार मनचाही मुराद पाने की ललक ही किंगमेकर होने का मन काम कर रहा है। अब देखना है कि गैरभाजपाई एकता के नाम पर कांग्रेस समर्थित यूपीए का वजूद फिलहाल इस चुनाव में बच पाता है या नहीं?।

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